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काव्य : मृगतृष्णा - रीना वर्मा प्रेरणा,हजारीबाग


 काव्य : 

मृगतृष्णा

एक मृगतृष्णा ह्रदय मे लिए

वो चली आ रही एक सफर मे 

इधर उधर नैना उसके ढूंढ़ते 

सुकून भरी आवाज़ अपनेपण की..


भूल वश अँधेरी गली की ओर 

खींचती आवाज थी उसे कोई 

कुछ दूर अचानक पता चला 

वो एक यूँ छद्म छलावे सा था,


ठिठक कर अकबकाती सी 

मुड़ी वापस यूँ तेजी से वो 

स्वयं को समझती समझाती 

प्रश्न था उसका उत्तर नहीं था,


क्यों मोह जाल की जाल सा 

बिछा जाता है ऐसे कैसे कोई 

 मासूमियत कुचल जाता कोई 

ठगी सी वो निशब्द अबतक,


ये मृगतृष्णा सी है जिंदगी 

 मन का मृग भटके कबतक 

रुको ऐ मन देखे न जरा दर्पण 

तुम ही हमसफ़र स्वयं की सुनो..


खुशी शांति सुकून का सफर 

बहते झरने सा है तो तेरे अंदर 

बस महसूस कर सुन तो जरा 

प्यार कर खुद से अब तो जरा 


 - रीना वर्मा प्रेरणा,हजारीबाग

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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