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पौराणिक मिथकों को आधुनिक संदर्भ में लिखना साहस का काम है - गिरीश पंकज


पौराणिक मिथकों को आधुनिक संदर्भ में लिखना साहस का काम है - गिरीश पंकज


भोपाल । 21 अप्रैल,जन सरोकार मंच द्वारा संतोष श्रीवास्तव के नवीनतम उपन्यास “उर्वशी पुरुरवा” पर एक विशद चर्चा आयोजित की गई। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री गिरीश पंकज जी ने की  तथा चर्चा में भाग लिया डॉ. नीलिमा रंजन,रानी सुमिता,मधुलिका सक्सेना और शकुंतला मित्तल ने ।
मधुलिका सक्सेना ने उपन्यास के सत्रह अध्यायों में से कई अध्यायों की चर्चा की । उन्होंने उपन्यास पर समग्र रूप से बात की और ऐसे पौराणिक विषय जिस पर अनेक बार लिखा जा चुका है, पर  लेखन को एक साहसी कदम बताया ।
 रानी सुमिता ने उपन्यास के चरित्रों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने इस उपन्यास लेखन को एक चुनौती पूर्ण कार्य बताया और उपन्यास में प्रेम विषय के बावजूद अन्य पात्रों के चरित्रों के व्यक्तित्वों को सफलता पूर्वक उभारने को लेखिका की कलम को विलक्षण बताया। 
 उन्होंने उपन्यास के  छोटे-बड़े दृश्यों को उद्धृत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि एक स्त्री के नाते स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी का मानसिक स्तर जानने की एक पाठक के मन में उत्सुकता होना स्वाभाविक है और कई स्थानों पर उर्वशी एक मानसिक समृद्ध स्त्री के रूप में दिखती है। यानि इस उपन्यास में लेखिका ने उर्वशी के पात्र का सफल मानवीकरण किया है।
अपना वक्तव्य रखते हुए वरिष्ठ लेखिका शंकुतला मित्तल ने उपन्यास से उठाये गये अनेक ज्वलंत प्रश्नों की ओर ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने कहा…
वैदिक संस्कृति की पहली प्रेमकथा उर्वशी पुरुरवा के पुरातन कथानक को सरल सरस प्रभावपूर्ण तार्किक और प्रामाणिक उपन्यास के रूप में प्रस्तुत कर साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव जी ने सभी पात्रों को आधुनिक विचार धारा के अनुरूप मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषित कर प्रस्तुत किया है। 
वरिष्ठ लेखिका डॉ. नीलिमा रंजन ने अपने वक्तव्य में कहा
"इस प्राचीनतम प्रेमकथा के सूत्रों को पौराणिक, ऐतिहासिक प्रसंगों से चयन कर एक स्वरूप देना अवश्य ही दुरूह रहा होगा क्योंकि  इन्द्रदेव की राजसभा और भूलोक में प्रतिष्ठानपुर के चंद्रवंशी राजा पुरुरवा की प्रेमकथा का सतयुग से या कहें कि जब से इतिहास लिखा गया तभी से उल्लेखित है। बहु-उल्लेखित होने से कथा की विषय-वस्तु परिचित लगती है किंतु सुधीजन यह तो स्वीकारेंगे कि जहाँ परिचय अधिक हो उस विषय पर कहना और लिखना रचना अत्यन्त कठिन होता है। साधुवाद है संतोष जी को इस साहस पर कि इतनी परिचित और बरसों बरस ना जाने कितनी बार दोहराई जा रही कथा को नवीन कलेवर देने के लिये ना केवल चयन किया बल्कि उसकी अक्षुण्णता के साथ भी न्याय ही किया। 
एक तथ्य और भी है कि किसी विषय विशेष पर कितना भी लिखा-बोला जाए, कुछ ना कुछ अछूता रह ही जाता है तो संतोष जी ने निश्चय ही ऐसे बिंदुओं को लेकर, पड़ताल कर , शोध कर प्रस्तुत किया है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कथानक और पात्रों के चरित्रों का साम्य बैठाना अत्यधिक जटिल काम है क्योंकि एक सुपरिचित विषय पर 151 पृष्ठों का उपन्यास रचना एक विलग ही अनुभव रहा होगा।
कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार श्री गिरीश पंकज ने संतोष श्रीवास्तव के उपन्यास लेखन शैली और विषय के प्रस्तुतिकरण की बहुत प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि पौराणिक  विषय को जो कि प्रेम कथा है को सम्मानजनक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए लेखिका प्रशंसा की पात्र हैं। इसके साथ ही उन्होंने साहित्यकारों द्वारा उपन्यास पर विशद चर्चा को साहित्य चर्चा का एक सराहनीय कदम बताया। उन्होंने  कहा कि लेखकों ने उपन्यास की ईमानदारी से समीक्षा की । इसका अर्थ यह है कि सभी वक्तागण लेखन के प्रति जबावदेह और अपने कार्य के प्रति  ईमानदार हैं। अगर इस तरह लेखक समीक्षात्मक टिप्पणी दें तो साहित्य चर्चा खेमे में बंटा कभी नहीं दिखेगा। उनके अनुसार हमारे बहुत समृद्ध पुरातन ग्रंथों में वर्णित चरित्रों को पुनः लेखन द्वारा एक रूप देने के लिए संतोष जी सदा साधुवाद की पात्र रहेंगी।
पौराणिक मिथकों को आधुनिक संदर्भ में लिखना साहस का काम है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए संतोष श्रीवास्तव ने तीन वर्षों के गहन शोध के पश्चात लिखे गये इस उपन्यास पर अपनी लेखन  यात्रा के बारे में बताया। 
 इस अति महत्वपूर्ण चर्चा के लिए जन सरोकार मंच के देवेंद्र जोशी एवं उनकी समस्त टीम बधाई की पात्र है।
देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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