काव्य :
मातृ दिवस
घर के जंजाल से
तुमने उबारा मुझे,
मस्तक पर मुकुटमणि
सा तुमने धारा मुझे।
तुम्हारी नेह छांव थी
कि धूप में भी चल सकी
आंगन से निकल
देश सेवा में ढल सकी।
अब भी रगों में
तुम्हारा रक्त बह रहा
दिव्य प्रकाश हो मां
मन मेरा कह रहा।
-डाॅ. सुधा कुमारी
नई दिल्ली
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