ad

समाज में आज भी व्याप्त है छुआछूत - अमन कुमार


समाज में आज भी व्याप्त है छुआछूत 

 अमन कुमार 

( डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर ,मध्य प्रदेश)

    आज देश के संविधान लागू हुए 75 साल के बाद भी भारत के कई ऐसे गांव है जहां आज भी वर्ण व्यवस्था, जाति के आधार पर छुआछूत विद्यमान है। डॉ.अम्बेडकर ने छुआछूत को समाप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज को बुलंद किया, सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी। उन्होंने शिक्षा, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सकारात्मक नीतियों के माध्यम से दलितों को सशक्त बनाया। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश में वर्ण व्यवस्था को समूल नाश करने के लिए लगा दिए। अम्बेडकर जी ने जाति व्यवस्था को अन्यायपूर्ण और अमानवतावादी बताया और इसके उन्मूलन के लिए संघर्ष किए  क्योंकि  जब डॉ. अंबेडकर छोटे थे और स्कूल में पढ़ते थे, तब उन्हें और उनके साथी दलित बच्चों को स्कूल में अलग बैठाया जाता था। एक बार जब उन्हें बहुत प्यास लगी, तो उन्होंने स्कूल में रखे मटके से पानी पीने की कोशिश की, लेकिन शिक्षक और ऊंची जाति के छात्रों ने उन्हें डांटा और अपमानित किया। इस घटना ने उन्हें छुआछूत के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने दलितों को शिक्षा और रोजगार के अवसर दिलाए और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाई। 
* रामजी की सीख–
डॉ. अंबेडकर के पिता रामजी ने हमेशा उन्हें शिक्षा के महत्व के बारे में बताया। रामजी की यह सीख थी कि "अगर तुम्हें इज्ज़त चाहिए, तो ज्ञान का मार्ग अपनाओ।" यही सोच अंबेडकर के जीवन भर ज्ञान मिशन का आधार बनी।
* महाड़ सत्याग्रह (1927) –
महाड़ नामक स्थान पर एक तालाब था जिसे केवल ऊँची जातियों के लोग ही उपयोग कर सकते थे। डॉ. अंबेडकर ने वहां एक आंदोलन चलाया और दलितों के साथ उस तालाब का पानी पीकर यह सिद्ध किया कि पानी पर किसी एक जाति का अधिकार नहीं हो सकता। यह आंदोलन सामाजिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम था और उन्होंने इसे प्रकार समाज और देश के हर कोने में पहुंचने के लिए देश का संविधान बनाया और 
भारतीय संविधान में उन्होंने अस्पृश्यता के उन्मूलन को शामिल किया, जो आज भी लागू है। अगर आप अनुच्छेद –17 देखे तो उसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि" किसी भी जाति के व्यक्ति के साथ छुआछूत का व्यवहार नहीं किया जाएगा। "अम्बेडकर  जी ने मंदिर प्रवेश, पानी के कुओं तक पहुंच और सार्वजनिक स्थानों पर पहुंच बनाए । 
भारतरत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर न केवल भारत के बल्कि दुनिया के भी एक अग्रणी समाज सुधारक थे। उन्होंने अछूत, शोषित, पिछड़े और महिलाओं के उत्थान के लिए बहुत काम किया है तथा उनके अधिकारों के लिए भी लंबे समय तक संघर्ष किया। आपको बता दें कि बाबासाहेब आंबेडकर से पहले कई महामानव हुए जिन्होंने छुआछूत को खत्म करने का प्रयास किया था लेकिन वे ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। न केवल दलितों के लिए बल्कि बाबासाहब आंबेडकर दुनिया भर के शोषितों के लिए लड़े और उनकी प्रेरणा बने। समाज में अछूतों का जीवन कैसा है, उनकी सामाजिक स्थिति कैसी है, इसकी पूरी जानकारी और व्यावहारिक ज्ञान डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के पास था। उन्होंने स्वयं भी छुआछूत का दंश झेला था, इससे वे भली-भांति जानते थे कि अस्पृश्यता बहुत ही ज्यादा गलत एवं सबसे बड़ी कुरीति है। इसी वजह से बाबासाहेब ने उनके जीवन का लक्ष्य छुआछूत को खत्म करना बनाया लेकिन आज भी समाज में कई स्थानों पर जाति प्रथा और छुआछूत की स्थिति देखने को मिलती है। आज लोग एक तरफ आधुनिकता के दौर में आगे बढ़ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई समाज में रूढ़िवादिता वाली सोच  अब भी मौजूद हैं। मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूं।
(1) सुजानपुर, टीकमगढ़ - मध्य प्रदेश का एक ऐसे गांव हैं जहां आज भी छुआछूत की प्रथा देखने को मिलती है।, जहां अलग-अलग जातियों के लिए अलग-अलग कुएं हैं और लोग अपनी-अपनी जातियों के कुओं से पानी भरते हैं।
(2) दमोह जिले के हिनौती गांव में एक ही तालाब के अलग-अलग घाटों से अलग-अलग जातियों के लोग पानी भरते हैं.। अगर कोई अन्य जाति के लोग अपने घाट से अलग घाट से पानी भरे तो उसे गांव से बाहर निकाल दिया जाता है।
(3) चित्रकूट - जहां आज भी छुआछूत, पाठा गांव में अनुसूचीत जाति के लोगों को पानी भरना मना है।बुंदेलखंड के चित्रकूट का पाठा बूंद-बूंद पानी के लिए जद्दोजहद करता दिख रहा है.। वहीं, पानी के बूंद - बूंद के लिए लोगों को भटकना पड़ता है. वहीं, जिले के कई गांवों में आज भी अनुसूचित जाति के लोग छुआछूत का दंश झेलते हुए पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. इनकी समस्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है जब प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। इस गांव में निचली जाति के लोगों को ऊंचे जाति के लोग अपने नल, गांव के कुआं, तलाब में पानी नहीं भरने देते हैं।
(4) महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में महाड तालुका के निकट मुगवली गांव में आज भी छुआछूत का भेदभाव देखा जाता है. दलितों को भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है। ऊंची जाति के लोग दलितों को त्योहारों और समारोहों में शामिल होने नहीं देते, उन्हें खाने पर नहीं बुलाते, और न ही उनके बुलावे पर आते हैं।
(5) बिहार के लखीसराय जिला के बघोर गांव में आज भी बड़े वर्ग के लोग पिछड़े वर्ग एवं अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार करते है, उन्हें हर तरह से दबा कर रखा जाता है।
(6) इन गांवों के अतिरिक्त कई ऐसे गांव हैं जहां आज प्रत्यक्ष रूप से छुआछूत देखने को मिल जाती है। इसके अलावा मध्यप्रदेश ,राजस्थान के कई इलाकों में उच्च जाति के लोग अपने यहां आए मजदूरों या छोटी जाति के लोगों को अलग बर्तनों ,अलग गिलासों में चाय, पानी पिलाई जाती है ताकि वह उनके घर के बर्तन में न सटे नहीं तो पूरा घर के बर्तन अछूत हो जाएंगे और वह अपवित्र हो जाएंगे।
अतः आज भारतीय संविधान के बनने के 75 साल के बाद भी यह स्थिति बनी हुई है इस प्रथा को कैसे खत्म किया जाए ? ये बड़ी बात है । जाति प्रथा व्यवस्था को समाप्त करने के महत्वपूर्ण उपाय इस प्रकार हो सकते हैं –
* हम लोगों को व्यक्तिगत रूप से अपने इस संकीर्ण विचारधारा को बदलना होगा। आज शिक्षा में सभी के पहुंच के बावजूद भी यह देखने को मिल रही है तो यह हमारे संविधान को तहस-नहस करने के बराबर है। इस जाति प्रथा छुआछूत को खत्म करने के लिए हम सभी को एक होना होगा। 
कबीर जी ने कहा था–
"जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तलवार का परण रहन दो म्यान ।" 
इस बात को समझना होगा कि लोगों को हम उनकी जाति से नहीं बल्कि उनके ज्ञान से जानना होगा। हम सभी को समाज में व्याप्त छुआछूत का समूल नाश करना होगा। 
* हमे लोगों में जागरूकता लानी होगी और जात– पात से ऊपर उठकर हमे भाईचारे की भावना को बढ़ाना होगा। 
* जो आज भी समाज में पिछड़े है उन्हें शिक्षा का महत्व बताना होगा और ये बुराई हमारे समाज से शिक्षा के द्वारा की खत्म हो सकता है क्योंकि बाबा साहब कहते थे - 
 "शिक्षा वह शेरनी का दूध है,
  जो जितना पियेगा वह उतना दहाड़ेंगे।"
आज समाज को समझना होगा कि हमारा भारत धर्मनिरपेक्ष बन चुका है, हमारा भारत विश्व गुरु रहा है अगर इसे पुनः विश्व गुरु बनाना है और यहां व्यवस्था को अन्य देशों से बेहतर और शांति स्थापित करनी। है तो हमें जात-पात को जड़ से मिटाना होगा।
देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post