काव्य :
मिला जन्म मानव न रोकर बिताना
///////////////पूर्णिका////////////////
मिला जन्म मानव न, रोकर बिताना।
नहीं भाग्य पर रुक,कर्म करते जाना।
कोई शेर जब तक परिश्रम न करता,
तो मर जाएगा,पाएगा न वह खाना।
अगर कोई गहराई, से डरता रहता,
नहीं मोती पा सकता,करके बहाना।
कोई धैर्य से जाके चढ़ता शिखर पर,
मिलेगा उसे लक्ष्य,जो मन में ठाना।
करें जब कृपा,ईश्वर देता मनुज तन,
उठा लाभ जीने का सावन सुहाना।
तेरे कर्म से दिल दुखें न किसी का,
दुखें कोई दिल ,ऐसे न मुस्कुराना।
जन्म लेकर मरना,सुहाता न निर्मल,
करो कर्म अच्छे,जो भव पार पाना।
- सीताराम साहू'निर्मल'छतरपुर मप्र
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