लोकमंगल के लिए महाकवि कालिदास ने प्रकृति से प्रेम करने का संदेश दिया - कालिदास मंदसौर की अमूल्य धरोहर
कालिदास प्रसंग में हुआ परिसंवाद का आयोजन
मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट
मंदसौर। कालिदास प्रसंग के दो दिवसीय आयोजन के द्वितीय दिवस महाकवि कालिदास के साहित्य में लोकमंगल विषय परिसंवाद का आयोजन हुआ जिसमें मुख्य वक्ता प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान डॉ. रघुवीर प्रसाद गोस्वामी भोपाल, डॉक्टर जे एन त्रिपाठी भोपाल और डॉ., किरण आर्य सागर ने अपने व्याख्यान दिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. कैलाशचंद्र पांडेय ने की ।
परिसंवाद में संबोधित करते हुए डॉ. गोस्वामी ( भोपाल ) ने कहा कि महाकवि कालिदास ने अपने साहित्य में प्रकृति प्रेम को इस रूप में प्रदर्शित किया कि उसके के मूल में लोकमंगल के भाव थे ।उन्होंने आम जनमानस को यह बताया कि लोकमंगल तभी हो सकता है यदि हम प्रकृति को ईश्वर का रूप मानकर उसका संरक्षण करें यानी प्रकृति की क्रमबद्धता और उसका संतुलन ही लोकमंगल का सबसे बड़ा कारक होता है। आपने कहा कि महाकवि कालिदास ने अपने ग्रंथों में महाकालेश्वर की नगरी उज्जैनी और अष्टमूर्ति यानि पशुपतिनाथ की नगरी दशपुर का उल्लेख किया है जिससे यह सिद्ध होता है कि इन दोनों ही नगरों से उनका कितना भावनात्मक संबंध रहा है। आपने कहा कि महाकवि कालिदास का साहित्य विश्व की ऐसी धरोहर है जो भारत की संस्कृति और यहां के लोक मानस को पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय सोपान हैं।
व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए इतिहासकार और पुरातत्व विद्वान डॉ. कैलाशचंद्र पांडेय ने कहा कि महाकवि कालिदास के मेघदूत और अभिज्ञान शाकुंतलम में दशपुर और अष्टमूर्ति का जो वर्णन किया है वह सिद्ध करता है कि मंदसौर से उनका कितना गहरा संबंध रहा है। डॉ पांडेय ने अपने शोध पूर्ण व्याख्यान में अनेक तथ्यात्मक उदाहरण के माध्यम से बताया कि महाकवि कालिदास का जन्म मंदसौर में हुआ। उन्होंने मंदसौर के विद्वानों पं. मदनलाल जोशी पं. मदन कुमार चौबे डॉ. रुद्रदेव त्रिपाठी, पंडित क्षितिकंठ शास्त्री केशव प्रकाश विद्यार्थी पं. रामचंद्र तिवारी डॉ बाबूलाल शर्मा भरत प्रसाद त्रिपाठी का उल्लेख करते हुए कहा कि इन विद्वानों ने महाकवि कालिदास को आदर्श मानकर मंदसौर से उनके संबंध को पुष्ट किया।
आपने जानकारी देते हुए बताया कि सन 1915 में कलकत्ता के प्रकाण्ड संस्कृत विद्वान श्री हरप्रसाद शास्त्री ने शोध लेख माध्यम से अवगत कराया था कि महाकवि कालिदास की जन्मभूमि दशपुर - मंदसौर मानी गई है । अपने शोध में श्री शास्त्री ने बताया कि कालिदास के साहित्य में वर्णित वनस्पतियों का विशेष उल्लेख है और वे मालवा ओर दशपुर मंदसौर क्षेत्र में ही पाई जाती है । बाद में विद्वानों के अलग अलग तर्क हैं पर प्रमाणित रूप से उक्त शोध लेख बड़ा आधार है कि कालिदास मंदसौर की अमूल्य धरोहर है ।
डॉ पांडेय ने कहा कि मंदसौर में 1955 में भी कालिदास जयंती मनाई जाती रही बाद में क्रम टूटा पर अब लगातार कालिदास प्रसंग गरिमामय ढंग से मनाया जारहा है
डॉ जे एन त्रिपाठी( भोपाल ) ने कहा कि कवि कुलगुरू कालिदास अपनी रचनाओं के कारण आज भी प्रासंगिक एवं अमर है उनका मालवा क्षेत्र से भावनात्मक संबंध रहा है मंदसौर के लिए यह विशेष गौरव की बात है कि जिस अमर रचना के कारण कालिदास साहित्यकारों में सर्वश्रेष्ठ हैं उस अभिज्ञान शाकुंतलम् का आरंभ अष्टमूर्ति पशुपतिनाथ की वंदना से किया है न केवल अभिज्ञान शाकुंतलम में वरन मेघदूतम में भी महाकवि ने मंदसौर का अत्यंत अपनत्व के साथ उल्लेख किया।
डॉ किरण आर्य ( सागर ) ने कहा कि महाकवि कालिदास की रचनाएं संपूर्ण मानवता के लिए उपयोगी है जिसके माध्यम से वह पर्यावरण संरक्षण का महान्याय संदेश देते हैं यहीं पर वह समाज को भोग की प्रवृत्ति से त्याग और तपस्या की ओर प्रेरित करते हैं उनका प्रकृति प्रेम पर्यावरण संरक्षण का मूल आधार बन सकता है वह जल स्रोतों जिला सहयोग वन उपवन उद्यान आदि के प्रेमी है और यही सब घटक पर्यावरण के कारक होते हैं कालिदास ने हमारी परिवार व्यवस्था गुरुकुल का महत्व आदर्श राजा और राजनीति के महत्वपूर्ण संकेत अपने ग्रंथों में दिए हैं ऐसे बहुत विरले कवि होते हैं जो नाटक ,खंड काव्य और महाकाव्य इन तीनों विधाओं में पारंगत होते हैं।
आरंभ में मां सरस्वती और महाकवि कालिदास के चित्रों पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलन अतिथि विद्वानों के साथ ही इतिहासकार डॉ. कैलाश चंद्र पांडेय, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मदनलाल राठौर पुरातत्व के विद्वान गिरिजा शंकर रूनवाल महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ जेएस दूबे, शिक्षाविद रमेश चंद्र चंद्रे, डॉ.रवींद्र कुमार सोहनी,डॉ घनश्याम बटवाल ब्रजेश जोशी आदि ने किया गया
कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन के कार्यक्रम प्रभारी अनिल कुमार बारोड़ ने अकादमी की ओर से मंचासीन विद्वानों का शाल श्रीफल और पुष्प गुच्छ भेंट कर सम्मान किया।
संचालन महाविद्यालय संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ के आर सूर्यवंशी ने किया आभार वरिष्ठ पत्रकार डॉ. घनश्याम बटवाल ने माना।
व्याख्यान समारोह में कांतिलाल राठौर विक्रम विद्यार्थी भगवती प्रसाद गेहलोत सुदीप दास डॉ प्रतिभा श्रीवास्तव यशवंत प्रजापति प्रकाश कल्याणी नरेंद्र भावसार नंदकिशोर राठौर नगेन्द्र श्रीवास्तव समीक्षा बडोलिया अशोक शर्मा विजयसिंह पुरावत जयेश नागर सुनील व्यास दिलीप जोशी अजिजुल्लाह ख़ालिद राजाराम तंवर श्रीमती अर्चना दवे महेश त्रिवेदी डॉ सीमा जैन जिला प्रेस क्लब अध्यक्ष पुष्पराज सिंह राणा अजय बडोलिया डॉ दिनेश तिवारी अशोक नागदा बद्रीलाल जोशी जिला पंचायत सदस्य बसंतीलाल मालवीय नरेंद्र त्रिवेदी लोकेश पालीवाल सहित बड़ी संख्या में नगर के प्रबुद्ध जन साहित्यकार पत्रकार उपस्थित थे।