करते जाएँ सतत अपडेट स्वयं को हम
हमारे जीवन का प्रारंभ और अंत तो कर्मों का परिणाम है पर दो घटनाओं के मध्यकाल में जीवन को कैसे जीना है तो निश्चित ही हमारा काम है । वह चिन्तनशील इसे स्मरणीय अनुकरणीय बना कर जीते हैं और युगों-युगों तक याद किए जाते हैं। वहीं विवेकहीन इसे गफलत में गँवा देते हैं। हमारा हर दिन नया उच्चतर रूप में बनें । वह हर रोज हमारा सही से अपग्रेडेड स्वरूप निखरे। वह हमको अपना गुस्सा सतत थोड़ा कम करना होगा । हम हरदम विनम्रता को बढ़ाते जाएँ। वह दिल में कभी कोई गम न रखें । हमारा ध्यान-साधना का नित-क्रम हो। हम हर क्षण समय की कद्र करना सीखें ।हम ऐसे छोटे-छोटे अपडेटों से ही तो हरदम शक्तिशाली बनते जाएँगे । हम मानव कहलाते हैं । हमारा मूल स्वभाव मानवता है पर सभ्यता के विकास के साथ-साथ इस पर स्वार्थपरता व अन्य निषेधात्मक लक्षणों का प्रभाव पड़ता गया और यह मूल स्वभाव क्षीण होता गया । हमको आवश्यकता है यह स्मरण रखने की कि मानवोचित गुणों रहित कोई भी मानव कैसे हो सकता है। दया धर्म का मूल है , पाप मूल अभिमान।तुलसी दया न छोड़िए जब लग घट में प्राण। संत तुलसीदास ने यही सटीक कहा है। हमारे द्वारा दया में कभी अहं भाव नहीं होना चाहिए । वह दया तभी सारभूत है जब सहज स्वभाव बन जाती है ।वह यहाँ तक कि जिस वस्तु से हमें सरोकार है उसे सहज भाव से त्याग कर दे दी जाए जिसको उसकी दरकार है । हमको मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलता है । यह पूर्व जन्मों के पुण्य कर्मों से ही कमल खिलता है। यह हमारा जीवन तभी सार्थक है जब हम इस दुर्लभ जीवन को सार्थक व विवेकपूर्ण जिएँ, आध्यात्मिक उन्नयन की पृष्ठभूमि बनाएँ। हम इस तरह हरदम विनम्रता बढ़ाते जाएँ। वह दिल में कभी कोई गम न रखें। हमारा ध्यान-साधना का नित-क्रम हो। हम हर क्षण समय की कद्र करना सीखें । वह हम ऐसे छोटे-छोटे अपडेटों से ही तो हरदम शक्तिशाली बनते जाएँगे । वह जो इंसान स्वयं को अपडेट यों बनाता जाता है , समय के साथ हर दिन प्रासंगिक ज्यों का त्यों रहेगा ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )