काव्य :
जिन्दगी
जिन्दगी रफ्तार है
ठहरती नहीं,
शान्त, अथाह सागर,
विस्तृत अपार गगन,
सुबह,और शाम,
अंधकार और रंगीं रोशनी,
रँगा समुद्र,
रंग बिखेरता आसमान,
है सब कुछ तो यहाँ
रुक पथिक
देख सब दृश्य ये,
पेट की भूख और
अपनी प्राप्तियों से पृथक,
ले आनन्द, इस सबका,
देख ,देख फिर,
जिन्दगी है
यही,
जी ले जिन्दगी,
तनिक ,*विश्राम कर*
क्रम, चलता रहेगा जीवन का,
भोग इसे भी,
फिर अपना काम कर
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र ,भोपाल
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