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"गरज रहा हर कोना कोना पहना है बरखा ने सोना"


 

"गरज रहा हर कोना कोना  पहना है बरखा ने सोना"

मुजफ्फरनगर । हिन्दी उर्दु साहित्यिक संस्था समर्पण की सावन माह की गोष्ठीकावड़ यात्रा को नज़र में रखते हुए ऑनलाइन हुई है।

  संचालन  डाक्टर आस मोहम्मद अमीन  और  अध्यक्षता ईश्वर दयाल गुप्ता गीतकार की रही , मुख्य अतिथि प्रीतमसिंह प्रीतम (शामली) और विशिष्ट अतिथि डाक्टर सहदेव सिंह (देव) , संरक्षक अब्दुल हक सहर और योगेन्द्र सोम जी रहे!

गोष्ठी में  अनेकों रचनाकार साहित्यकार कवि कवयित्री की गरिमामयी उपस्थिति से गोष्ठी बहुत सफल रही ।

सभी रचनाकारों की  एक से बढ़कर एक रचना ने मन मोह लिया,

"समय कुम्हार है जो चाक पर नचाता है 

ये ज़िंदगी तो सुराही का नाचना भर है "

*चंदर वाहिद शाहदरा दिल्ली* 

 

कामना होती है पूरी, मन में जब विश्वास हो,

आस्था के साथ गंगा जल ज़रा लेकर चलो।

शान्ती के साथ हो तो यात्रा होगी सफल,

बात जिस से भी करो तुम प्रेम से बातें करो।

            *अब्दुल हक़ सहर*


हो गया महरुम भाई भाई के दीदार से 

खत्म झगड़े हो गये है सहन की दीवार से 

            *सलामत राही*


मंजिलें यूं ही चलेंगी पासबां चाहिए ।

जमीन पर अपना आसमां चाहिए ।

मुट्ठियों में कैद हैं भाग्य की लकीरें -

धर्म में कर्म का आशियाँ चाहिए ।।

*योगेन्द्र सोम*


उठा  ले  तू  काँवड़   बढ़ा  ले   क़दम 

ज़रा  बोल  मन  से  तू  भोले  की बम

 *वीर सिंह* ' फराज़'


जब भी उदास दिल हुआ तो याद आये तुम,

सहरा में जैसे झील का मंज़र उतर गया 

*प्रकाश* 'सूना'


पहले चार दिन से मुझे बुखार आ गया 

इस बुखार पे भी मुझे प्यार आ गया 

दूर से ही देख के कहने लगी है वो 

लो लौट कर फिर मेरा बीमार आ गया 

*अनिल पोपट कामचोर*, शामली


गंगाजली उठा कांवड़िए,बम -बम भोले गायें।

हरिद्वार से कांवड़ लेकर पुरा महादेव जायें।

भोले -भोली की लगी है कतार भोले।

देना दर्शन हमें भी इक बार भोले।।

*सुशीला शर्मा* "सुवर्ण किंशुक"


किसी का बचपन, किसी की जवानी, किसी का बुढ़ापा ले गया...

वो रद्दी वाला आज घर से कई कहानियां ले गया...

           ---हिमकर


"जीवन पथ की सच्चाई को गर तू भी अपनाये। 

दुनिया के दुखियों के आँसू तेरी आँख में आयें। ।"-  

     *प्रीतम सिंह प्रीतम* शामली


आया महीना सावन-सावन  

है बहुत ही यह पावन -पावन

चहुं ओर छाई  है हरियाली 

सब कुछ मन भावन-भावन।

       *विजया गुप्ता*


शब्द मोन त्रिनेत्र मुखर हो, छन्द कोई चित्त से फूटे

कोष-कोष आल्हाद में डूबे, नाडी़ - नाडी़ नृत्य करे

जो सृष्टि के सब अर्थ मंत्र दे, वो नटराज मुझे दे दो

रहे सत्य पथ पर अडिग देव, अखंड राम मुझे दे दो

-डा सहदेव सिंह आर्य!!देव!!

साथ असंभव सा था कुछ उनका असीम,

प्रेम दोनों का कभी जुदा ना कर सका.....

(शिव शक्ति)

             *टिम्सी ठाकुर* 


जिस दिन दीवारें बोल उठेंगी,

उस दिन इतिहास रोएगा।

जिस दिन चुप्पी चीख़ बनेगी,

सुलीवाला बाग बोलेगा।

     *अंजली उत्तरेजा*


शब भर तुम ने तारे जो गिनवाऐ हैं। 

दिन में हम ने कितने आँसू बहाऐ हैं। ।

पल दो पल तुम पास तो बैठो मेरी जां।

दिल में लेकर कितने अरमाँ आऐ हैं। ।

*डॉक्टर आस मुहम्मद अमीन*


गरज रहा हर कोना कोना

पहन लिया बरखा ने सोना

घिर घिर बादल काले काले 

बरसत बादल धोले धोले

*सुनीता मलिक सोलंकी*

 ऑनलाइन गोष्ठी  सफल रही सभी रचनाकारों - सहदेव सिंह, अंजली उत्तरेजा, टिमसी ठाकुर , सुशीला शर्मा, विजया गुप्ता ,प्रकाश सूना, अनिल पोपट,वीर सिंह फराज आदि सभी ने अपनी सुन्दर प्रस्तुति से गोष्ठी की शान बढाई। अंत में अध्यक्ष द्वारा सभी का धन्यवाद कहकर सभा समापन की।

सचिव समर्पण-

सुनीता सोलंकी 'मीना' मुजफ्फरनगर उप्र




देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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