काव्य :
बाजार में हूं
जीत में न हार में हूं
मैं तुम्हारे प्यार में हूं
धूल उड़ती है निरंतर
क्या मैं अब बाजार में हूं
जिससे कल तक प्यार था
लो आज उससे रार में हूं
कुछ तो खाना ही पड़ेगा
इस कदर इसरार में हूं
साफ दिखता ही न कोई
धुंध के संसार में हूं
दुनिया मुझको लूट लेगी
ऐसे ही आसार में हूं
- आर एस माथुर , इंदौर
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न प्यार में हूं न इजहार में हूं
ReplyDeleteमैं तो आजकल बस तकरार में हूं
So beautiful creation mathur sir ka क्या मैं बाजार में हूं