श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर में मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग का पूजन एवं अभिषेक किया गया
इटारसी । सावन मास खासकर महिलाओं के लिए विशेष धार्मिक पूजन का अवसर होता है। सनातन हिंदू महिलायें सावन मास में भगवान शंकर को प्रसन्न करने के प्रत्येक जतन करती है ताकि उनके सुहाग की रक्षा भगवान भोलेनाथ करते है।
श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर लक्कड़गंज में सावन मास के पुनीत अवसर पर पार्थिव ज्योर्तिलिंग निर्माण पूजन और अभिषेक का कार्यक्रम चल रहा है।
पार्थिव ज्योर्तिलिंग निर्माणकर्ता एवं मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे ने भगवान भोलेनाथ के मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग का निर्माण किया और पूजन अभिषेक कराया उनका सहयोग पं. सत्येन्द्र पांडेय एवं पं. पीयूष पांडेय ने किया। यजमान सुरेंद्र राजपूत श्रीमती बीना राजपूत, निधि चौहान एवं मनीषा राजपूत ने पूजन अभिषेक किया।
मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग दुनिया में अद्भुत है। आंध्रप्रदेश के कुर्नुल जिले के श्रीशैल मल्लिकार्जुन का क्षेत्र एक पवित्र स्थान है। जिसकी तलहटी में कृष्णा नदी ने पाताल गंगा का रूप लिया हुआ है।
ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस कदली बिल वन प्रदेश में भगवान शंकर आते थे। इसी स्थान पर उन्होंने दिव्य ज्योर्तिलिंग के रूप में स्थाई निवास किया। यह स्थान कैलाश निवास भी कहलाता है।
यह ज्योर्तिलिंग आंध्रप्रदेश के कृष्णा नामक जिले में श्री शैल पर्वत ,जिसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है, से प्रवाहित होने वाली कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। महाभारत में वर्णन है कि शैल पर्वत पर आकर शिव पूजन से अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है इस स्थान पर भगवान शिव का आविर्भाव किस प्रकार हुआ और ज्योर्तिलिंग रूप में वे कैसे परिणित हुए ,तत्सम्बन्ध में पौराणिक कथा इस प्रकार है-
शिव पुत्र द्वय स्वामी कार्तिकेय और श्री गणेशजी में सर्वप्रथम विवाह के लिये स्पर्धा उत्पत्र हुई।
माता-पिता ने यह निर्णय लिया कि जो सर्वप्रथम पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर लेगा उसका विवाह पहले होगा। निर्णय स्वीकार करते ही स्वामी कार्तिकेय दौड़ने लगे। चूंकि स्थूलकाय श्री गणेशजी के लिये यह सम्भव न था। अतएव बुद्धि का आश्रय लेकर वे इस निर्णय पर पहुंचे कि माता-पिता अर्थात् भवानी शंकर की ही परिक्रमा कर ली जाय और तुरन्त प्रदक्षिणा करके उन्हीं का पूजन किया । इस कथा के अनुसार श्री गणेशजी पृथ्वी की प्रदक्षिणा के पूर्ण रूप से अधिकारी बन गये। उधर स्वामी कार्तिकेय जब लौटकर आये उसके पूर्व ही भगवान मंगल मूर्ति श्री गणेशजी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की ऋद्धि तथा सिद्धि नामक कन्याओं के साथ सम्पत्र हो चुका था और उनकी संतान भी माँ की गोद में खेल रही थी।
देव ऋषि नारद जी से पहले ही यह संवाद पाकर स्वामी कार्तिकेय क्रोध से जल उठे और माता-पिता के चरण छू कर वे कौच्य नामक पर्वत पर चले गये। पुत्र मोह के कारण पार्वतीजी ने और पुत्र प्रेम के कारण शिवजी ने नारदजी के द्वारा स्वामी कार्तिकेय को बुलाने का प्रयास किया,
पर वे वापस न आयें। अन्ततः भगवती शिवा भगवान शिव साथ कौच्य पर्वत पर पहुँच गये। वहाँ भगवान शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए। यहीं पर मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग है।
इस ज्योर्तिलिंग को लेकर नारद जी और कार्तिकेय की कथा शंकर और अर्जुन युद्ध, वनवासी राजकन्या, छत्रपति शिवाजी एवं सेवक राजवंश की कथाए भी प्रचलित है।
सोमवार को त्रयंम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग के पार्थिव स्वरूप की पूजन एवं रूद्राभिषेक किया जायेगा।