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लघुकथा : कावड़ - डॉ अंजना गर्ग ,दिल्ली


 

लघुकथा : 

कावड़    

     तंबू में सोते हुए कई कावड़िएं एकदम हड़बड़ा कर उठे गए जब सड़क पर जोर से कुछ टकराने की आवाज सुनी। सुरेंद्र एकदम उस तरफ भागा। देखा एक जवान लड़का सड़क पर तड़प रहा है। उसकी मोटरसाइकिल दूर टूटी पड़ी थी। खून बह रहा था। सुरेंद्र ने भाग कर मटके से पानी लेना चाहा तो देखा मटका खाली, एक पल सोचा, झट खूंटी से अपनी कावड़ उतारी। सब चिल्लाने लगे, ' सुरेंद्र क्या कर रहा है? कल यह जल शिवलिंग पर चढ़ाना है।' उसने किसी की नहीं सुनी।  कावड़ से गंगाजल लेकर उस घायल के मुंह पर छींटे मारने लगा। उसे जरा होश आया तो वही गंगाजल चुल्ली भर भर कर उसको पिलाने लगा। साथ ही साथ वह अन्य कांवड़ियों से कह रहा था कि किसी सवारी को रूकवाओ, इसको हॉस्पिटल लेकर जाना है। उसके साथी कहने लगे,' अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर तू क्या कर रहा है।  तेरी कई साल की बोली हुई मन्नत कल शिवलिंग पर गंगाजल चढा कर पूरी हो जाएगी।' इतने में उसके हाथ देने से एक थ्री व्हीलर वाला रुका। सुरेंद्र ने घायल लड़के को उठा कर उसमें डाला और साथियों से बोला,' कावड़ तो मैं अगले साल फिर ला सकता हूं पर इसकी सांस अगर टूट गई तो फिर कभी नहीं लौटेगी।' 

   -    डॉ अंजना गर्ग 

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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