काव्य :
'यारों काले काम न करना'
यारों काले काम न करना।
पुरखों को बदनाम न करना।
मुश्किल चाहे जो भी आये,
पर इज्जत नीलाम न करना।
करने को तुम नाम जगत में,
हरदम ही आराम न करना।
पाने को पथ आसानी से,
कोई काली शाम न करना।
मजबूरी कैसी भी हो पर,
कोई कत्लेआम न करना।
करके कोई गफलत यारों,
अपनी नींद हराम न करना।
पाने को तुम अपनी मंजिल,
अपने यत्न विराम न करना।
ऊंचा नीचा भाव जगाकर,
नफरत का पैगाम न करना। '
दीपक' धोखे की चालों से,
अपना दुख अंजाम न करना।
- रजनीश मिश्र 'दीपक' खुटार शाहजहाँपुर उप्र
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