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काव्य : धराली देवदार का शाप। - राम वल्लभ गुप्त "इंदौरी"


 काव्य : 

धराली देवदार का शाप

धराली  पृथ्वी की हरियाली

देवताओं का प्रकृति दान 

जहां स्वर्ग की छठा निराली 

आज बन गई देखो शमशान 


गिरि श्रृंखलाओं  का श्रृंगार

बहती नदियां थी कल कल 

मिटा या उनका सिंदूर सिंगार 

भोग रहा है मानव  प्रतिफल


प्रकृति परम रूप मातेश्वरी 

तुम उसका करो अर्चन 

मानव जीवन की फुलवारी

पर तुमने कर दिया हनन


देखा तुमने अपना स्वार्थ 

जो थे देवताओं के उपहार

वे सब काट डाले बे आरथ

अब रो रही मानवता बेकार


काट डाले 2 लाख देवदार

सोचा नहीं, एक भी बार 

यह प्रकृति पर सच्चा प्रहार

अब कौन सुने तुम्हारी गुहार 


देवताओं का था जो वरदान 

बना देखो अभिशाप महान 

प्रकृति का काउंटर अटैक

आयेगा तुम सबको हार्ट अटैक

रचना मौलिक एवं अप्रकाशित


- राम वल्लभ गुप्त "इंदौरी"

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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