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काव्य : दस्तक - मिष्टी गोस्वामी , दिल्ली


 काव्य : 

दस्तक


समय के साथ साथ 

वो अपना सा लगने लगा था मैंने भी उसे खूब सजाया संवारा था

पर उसके एक डायलॉग ने

सब धराशाई कर दिया

वो एक डोर बैल 

मेरा दरवाजा खोलना

उसका पूछना

पहचाना?

मेरा ना में सिर हिलाना

उसका बोलना

मकान मालिक!

सब खत्म,सारे सपने,सारा सजाना संवारना

भूल ही गई थी, कि हम तो किराएदार हैं 

उस एक दस्तक ने

सारे भूलेखे झंझोड़ दिए

अचानक से तूफान आ  गया मेरे अंदर

अब ये घर नहीं,फ्लैट था

जो अगले महीने खाली करना था

नम आंखों से निहारा उसे

फिर किसी नए फ्लैट को

सजा संवारकर 

घर बनाना था

अपने घर का ख्वाब देखना था

ख्वाब देखने के लिए भी

छत तो चाहिए होती है ना


 - मिष्टी गोस्वामी , दिल्ली

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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