[प्रसंगवश – 21 अगस्त: विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस]
बुजुर्ग – संस्कृति के संरक्षक, जीवन के मार्गदर्शक
[एक स्नेहिल स्पर्श से बदल सकता है बुजुर्गों का जीवन]
उन चेहरों पर समय की लकीरें नहीं, बल्कि जीवन की अमर गाथाएँ अंकित हैं। उनकी आँखों में समाया है अनुभवों का अथाह सागर, और उनके हाथों में बसी है हमारी संस्कृति की नींव। हमारे बुजुर्ग—हमारी जड़ें, हमारा अभिमान, हमारी अमूल्य धरोहर। 21 अगस्त को मनाया जाने वाला विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक आह्वान है—उन अनमोल आत्माओं को सम्मान देने का, जिनके कंधों पर हमारा वर्तमान टिका है। यह दिन हमें झकझोरता है, रुकने को मजबूर करता है और सवाल उठाता है: क्या हम सचमुच अपने बुजुर्गों को वह प्यार, सम्मान और समय दे पा रहे हैं, जिसके वे सच्चे हकदार हैं?
बुजुर्ग हमारे समाज का वह जीवंत दर्पण हैं, जो अतीत की गहराइयों को उजागर करते हैं और भविष्य की राह रोशन करते हैं। उनके अनुभवों में छिपा है वह अनमोल ज्ञान, जो ग्रंथों में नहीं समाता। उन्होंने युद्धों के दंश झेले, आजादी के लिए संघर्ष किया, और बदलते भारत के हर युग को आत्मसात किया। उनके किस्सों में बसती हैं वे सीखें, जो हमें जीवन की जटिल राहों पर दिशा देती हैं। फिर भी, आज की आपाधापी भरी दुनिया में हम अक्सर उनकी उपस्थिति को नजरअंदाज कर देते हैं। उनकी अनकही कहानियाँ, अनसुनी इच्छाएँ और अनदेखी जरूरतें आधुनिकता की चमक-दमक में कहीं गुम हो जाती हैं।
क्या हमने कभी उनकी अनकही इच्छाओं के गहरे अर्थ को सच्चे मन से टटोलने की कोशिश की? शायद वे चाहते हैं कि कोई उनकी जवानी के सुनहरे किस्सों को दिल की गहराइयों से सुने। शायद वे अपने अनुभवों के अनमोल खजाने को नई पीढ़ी तक पहुँचाना चाहते हैं। या फिर, शायद उनकी ख्वाहिश बस इतनी-सी है कि कोई उनके साथ बैठे, चाय की चुस्कियों के बीच उनकी बातों को आत्मीयता और अपनत्व से सुने। विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस हमें यह एहसास दिलाता है कि उनकी ये छोटी-छोटी इच्छाएँ उतनी ही अनमोल हैं, जितना उनका हमारे जीवन और समाज में अमर योगदान।
आज के दौर में हमारे बुजुर्ग कई अनदेखी चुनौतियों से जूझ रहे हैं। डिजिटल युग की चकाचौंध में उनकी भागीदारी एक अनसुलझा प्रश्न बनी हुई है। स्मार्टफोन और इंटरनेट के इस तीव्र गति वाले समय में कई बुजुर्ग तकनीक की जटिलताओं से अनजान हैं, जिसके चलते वे ऑनलाइन स्वास्थ्य सुविधाओं, बैंकिंग सेवाओं या सामाजिक मंचों तक पहुँच नहीं बना पाते। यह डिजिटल खाई उनके लिए एक नया अकेलापन लेकर आई है, जो उनकी दुनिया को और सिमटा देता है। इसके साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य जैसे गंभीर मसले पर हमारा समाज खामोश रहता है। अकेलापन, अवसाद, और स्मृति से जुड़ी समस्याएँ बुजुर्गों के लिए गहरी चुनौतियाँ हैं, पर इन पर खुलकर बात करने का साहस हममें कम ही दिखता है। हमें ऐसी संवेदनशील व्यवस्थाएँ गढ़नी होंगी, जो उनकी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक जरूरतों को न केवल समझें, बल्कि उन्हें पूरी तरह संबोधित करें।
भारत, जहाँ परिवार और संस्कृति हमारी आत्मा का आधार हैं, वहाँ बुजुर्गों का स्थान हमेशा से पवित्र और पूजनीय रहा है। लेकिन बदलते दौर की चुनौतियों के बीच हमें अपनी परंपराओं को नई दृष्टि और संवेदनशीलता के साथ पुनर्जनन करना होगा। हमें अपनी नई पीढ़ी को यह सिखाना होगा कि बुजुर्गों का सम्मान केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि एक गहरा जीवन मूल्य है, जो हमारी पहचान को मजबूती देता है। कई बुजुर्ग आज भी अपने अथाह ज्ञान, कला, और अनुभवों के खजाने से समाज को समृद्ध करने की इच्छा रखते हैं। हमें उन्हें ऐसा मंच प्रदान करना होगा, जहाँ उनकी प्रतिभा न केवल नई पीढ़ी तक पहुँचे, बल्कि उसे प्रेरणा और दिशा भी दे।
विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि बुजुर्गों की देखभाल हमारी साझा नैतिक जिम्मेदारी है। सरकार को ऐसी नीतियाँ गढ़नी होंगी जो किफायती स्वास्थ्य सुविधाएँ, सामाजिक सुरक्षा, और सम्मानजनक जीवन की गारंटी दें। सामुदायिक केंद्रों का निर्माण, जहाँ बुजुर्ग एक साथ समय बिता सकें, उनकी बातें साझा कर सकें, और सामाजिक-मानसिक जरूरतों को पूरा कर सकें, एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। और हमारा योगदान? एक स्नेहपूर्ण फोन कॉल, एक आत्मीय मुलाकात, या उनकी छोटी-सी इच्छा को पूरा करना—ये छोटे-छोटे प्रयास उनके जीवन में अपार खुशी और अर्थ ला सकते हैं।
उम्र महज एक संख्या है, पर उनके जुनून और रचनात्मकता की कोई सीमा नहीं। आज भी कई बुजुर्ग अपने अटूट जोश और प्रेरक कर्मों से समाज को नई दिशा दे रहे हैं। वे लेखक बनकर अमर कहानियाँ रच रहे हैं, सामाजिक कार्यकर्ता बनकर परिवर्तन की लौ जला रहे हैं, या अपने परिवार को एकजुट रखकर नई पीढ़ी को जीवन के मूल्यों का पाठ पढ़ा रहे हैं। हमें उनकी इन अनमोल क्षमताओं को न केवल पहचानना होगा, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित कर एक मंच देना होगा, जहाँ उनकी प्रतिभा समाज को और समृद्ध करे।
इस विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस पर एक पवित्र संकल्प लें, हम अपने बुजुर्गों को न केवल सम्मान और स्नेह देंगे, बल्कि उनकी अनकही इच्छाओं और अनसुनी जरूरतों को दिल से समझेंगे। वे हमारी जड़ें हैं, जिनके बिना हमारा वजूद अधूरा है। उनकी कहानियों को आत्मीयता से सुनें, उनके अनुभवों से जीवन की गहरी सीख लें, और उनके जीवन को प्रेम, सम्मान और खुशियों से सजाएँ। यह दिन केवल उत्सव का नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का प्रतीक है—एक ऐसे समाज के निर्माण का, जहाँ हर बुजुर्ग को वह प्यार, गरिमा और सम्मान मिले, जिसके वे सच्चे हकदार हैं।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)
बुजुर्ग है संस्कारों के वाहक
ReplyDeleteजीवन में है यही सहायक
बहुत सुंदर लेख sir 🙏🏻 बुजुर्गों का साथ ही जीवन को सुदृढ़ बनाता है।