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काव्य : बूढ़े दादाजी - भीमराव 'जीवन' बैतूल



गीत 
बूढ़े दादाजी 

रोज खाँसते रात-रात भर, अपने दादाजी।। 

जब देखों तब मिले लगाते, बीड़ी का सुट्टा।
पाबंदी  के  हर  फंदे  से, लगते  वह  छुट्टा।। 
चली जरा-सी हवा लगे तब, कँपने दादाजी।।

रात दिवस करता पूरा घर, उनकी परिचर्या।
लगता वे अब भूल गए है, अपनी दिनचर्या।।
ईश्वर अल्ला लगते जब-तब, जपने दादाजी।।

मर्जी  चाहे  जब  सो  जाते,,,,,,,,लेते  खर्राटे।
मीन-मेख गिन-गिनकर सबके,जब चाहे डाँटे।।
चलो घुमा दे, कहते  दुखते, टखने  दादाजी।। 

बतियाते तो दोष जमाने के, गिनवाते हैं।
खुलती यादों की पेटी जब, ही मुस्काते हैं।।
बुझी-बुझी आँखों में रखते, सपने दादाजी।। 

- भीमराव 'जीवन' बैतूल
देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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