विषैला होता माँ का अमृत समान दूध
- डॉ हंसा व्यास
मां का दूध और बदलता पर्यावरण -एक वैज्ञानिक विश्लेषण
मां का दूध बच्चों के लिए अमृत माना जाता है समय बदला परिस्थितियां बदली हमारे खेतों की मिट्टी रासायनिक उर्वरकों और पेस्टीसाइड से जहरीली हो गई। और साथ ही माँ का अमृत समान दूध विषैला हो गया। हम समझ ही नहीं पा रहे हैं क्यों नवजात शिशु अनेक बीमारियाँ माँ की कोख से लेकर आ रहा है। क्यों रोग प्रतिरोधक क्षमता वाला दूध बच्चों को पोषक तत्व नहीं दे पा रहा है। हमें वर्तमान में बदलती जीवनशैली पर बहुत ही गंभीरता से विचार करना होगा। इस मुद्दे पर संवेदनशीलता के आधार पर चिंतन और मनन के साथ समाधान ढूंढने के साथ - साथ जीवन पद्धति को बदलने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाना होगा। बच्चे हमारे अपने हैं। हम अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते।
आईये देखते हैं कुछ महत्त्वपूर्ण वे बातें जो हमारे दैनिक जीवन-शैली में शामिल हैं । त्वचा विशेषज्ञ डॉ समृद्धि सक्सेना का कहना है कि डॉ की सलाह लिए बिना सुंदर और युवा दिखने की होड़ में जिन रासायनिक सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग किया जा रहा उन सौंदर्य प्रसाधनों से हानिकारक तत्व हमारी त्वचा से होते हुए हमारे शिशु तक गर्भावस्था में ही पहुंच जाते हैं। और परिणाम हमारे सामने है कि बच्चों में अनेक समस्याएं जन्म के साथ ही दिखाई देती है।
यही वस्तुस्थिति खाद्य पदार्थों की है । एक वर्ष पहले एक स्वयं सेवी संस्था ने स्तनपान कराने वाली महिलाओं के दूध की जांच कराई तो जो परिणाम सामने आए वो हैरान करने वाले परिणाम थे। हम तो सोच भी नही सकते की खेत की मिट्टी,आरो का पानी और हवा हमारे नवजात को कैसे नुकसान पहुंचा सकते हैं। पर अब समय आ गया है कि खेतों में काम करने वालों से लेकर बड़ी कम्पनियों की महिलाएं और पुरुष यह समझ लें कि खाने की थाली से लेकर पानी,फल, हरी सब्जियों दाल,चांवल ,दूध और रोटियों से जो कुछ माँ के शरीर में पहुंच रहा है वही उसके अपने शिशु को उसके दूध से मिल रहा है। मिलावटी दूध और पनीर से मेलामाइन शरीर में जा रहा है। मेलामाइन के बर्तन माइक्रोवेव में इस्तेमाल करना वैसे तो सबके लिए ही हानिकारक है पर गर्भवती महिला और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अत्यंत ही हानिकारक है। इतना ही नहीं माँ के दूध में डिटर्जेंट, यूरिया, अमोनियम सल्फेट व फार्मलिन माल्टोडेक्सट्रीन एवं हानिकारक कीटनाशक का मिलना चिंताजनक है। इसकी पुष्टि डब्ल्यू एच ओ (WHO) ,एफ ए ओ (FAO ) एवं अभी हाल में ही 20 जुलाई 2025 के दिल्ली दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट से भी होती है ।
मां का दूध सदियों से शिशु के लिए सर्वोत्तम पोषण और प्रतिरक्षा प्रणाली का आधार माना गया है। यह प्राकृतिक अमृत है, जिसमें बच्चे को आवश्यक पोषक तत्व, एंटीबॉडी और जीवाणुनाशक गुण पाए जाते हैं। लेकिन आज का दौर, जिसमें पर्यावरण प्रदूषण, रासायनिक उर्वरक, पेस्टीसाइड और औद्योगिकीकरण ने जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है, इस प्राकृतिक व्यवस्था को खतरे में डाल रहा है।
प्रमुख कारण और प्रभाव -
प्रदूषित पर्यावरण एवं जल स्रोत -
औद्योगिकीकरण और बढ़ती आबादी के कारण वायु, जल और मिट्टी में भारी मात्रा में हानिकारक रसायन, भारी धातुएं और विषैले तत्व मिल गए हैं। जल स्रोतों में डिटर्जेंट, कीटनाशक और औद्योगिक अपशिष्ट मिलकर शिशु के लिए खतरा बन गए हैं।
रासायनिक उर्वरक और पेस्टीसाइड का उपयोग -
कृषि में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग मिट्टी की उर्वरता को तो बढ़ाता है, परंतु यह मिट्टी की प्राकृतिक जैविक संरचना को नष्ट कर रहा है। ये रसायन भूमि में स्थायी रूप से जमा होकर पौधों और अंततः पशु-पक्षियों के माध्यम से मानव और शिशु के शरीर में प्रवेश कर रहे हैं।
मां के दूध में विषाक्तता-
शारीरिक अवशोषण और मेटाबोलिज़्म के माध्यम से रासायनिक तत्व मां के शरीर में जमा होते हैं और दूध में प्रविष्ट हो जाते हैं । यह विषाक्तता शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकती है, जिससे अनेक बीमारियों और एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है।
शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली का कमज़ोर होना -
प्राकृतिक मां का दूध, जिसमें एंटीबॉडी, प्रोबायोटिक्स और विटामिन होते हैं, के स्थान पर रासायनिक प्रदूषित दूध, पोषक तत्वों की कमी और विषाक्त पदार्थों के कारण शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो रही है। इससे शिशु अनेक बीमारियों जैसे डायरीया, सांस की समस्या, एलर्जी आदि का शिकार हो रहे हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
मिट्टी और जल में रासायनिक प्रदूषण -
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, रासायनिक प्रदूषण के कारण मिट्टी और जल का जैविक संतुलन बिगड़ रहा है। यह प्रदूषण खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर मानव शरीर में जमा हो रहा है।
रासायनिक अवशोषण और मेटाबोलिज़्म -
रसायनों का अवशोषण मां के शरीर में होता है, जहां वे फैट टिशू और अंगों में जमा हो जाते हैं। ये रसायन दूध में प्रविष्ट होकर शिशु के शरीर में पहुंचते हैं।
शिशु की प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट -
प्राकृतिक मां के दूध की तुलना में विषाक्त दूध शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली को बाधित करता है, जिससे संक्रमण और रोगों का खतरा बढ़ता है।
समाधान
प्रदूषण नियंत्रण -
औद्योगिक और कृषि गतिविधियों में रासायनिक उपयोग को नियंत्रित करना। जल स्रोतों का नियमित परीक्षण और स्वच्छता सुनिश्चित करना।
प्राकृतिक कृषि का प्रवर्धन -
रासायनिक उर्वरक और पेस्टीसाइड का विकल्प जैविक खेती को प्रोत्साहित करना। मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता बढ़ाने के लिए कम्पोस्ट और जैविक खाद का प्रयोग।
मां के खानपान का ध्यान -
मां के शरीर में जमा रसायनों को कम करने के लिए स्वस्थ जीवनशैली और खानपान अपनाना। समय-समय पर चिकित्सकीय जांच और आवश्यकतानुसार उपचार।
शिक्षा और जागरूकता -
किसान, उद्योग और आम जनता के बीच जागरूकता फैलाना। मां और गर्भवती महिलाओं को प्राकृतिक और विषाक्त मुक्त आहार के प्रति जागरूक करना।
वैज्ञानिक अनुसंधान-
रासायनिक प्रदूषण के कारणों और उनके प्रभाव पर निरंतर अध्ययन। विषाक्तता के स्तर को मापने के लिए निगरानी प्रणालियों का विकास।
निष्कर्ष-
प्राकृतिक मां का दूध शिशु के समुचित विकास और प्रतिरक्षा का आधार है, लेकिन वर्तमान पर्यावरणीय संकट और रासायनिक प्रदूषण ने इसे विषाक्त बनाने का खतरा पैदा कर दिया है। इसके समाधान के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। प्राकृतिक और जैविक जीवनशैली अपनाकर हम न केवल अपने पर्यावरण की रक्षा करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य की भी सुरक्षा कर पाएंगे।
सवाल यह है कि यह जहर माँ के अमृत समान दूध में कहां से आ रहा है ? और इसका सीधा सा जवाब है कि वर्तमान खान पान और जीवनशैली नवजात शिशुओं के लिए जहर बनती जा रही है। इसका एक मात्र समाधान जैविक खेती,ऋषि खेती ही है । अच्छा , स्वस्थ , शुद्ध खान पान ही हमारी नवजात पीढ़ी में प्रतिरोधक क्षमता का विकास कर सकता है।
- डॉ हंसा व्यास
नर्मदापुरम
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