काव्य :
धवल चाँदनी
सजल सरोवर नीरवता में
बिखर रही है धवल चाँदनी ।
जल कमलिनी और अंबर में
गूंज रही है मधुर रागिनी ।
केशो में वेणी सजती है
गौर वस्त्र पर लाल किनारी ।
सौम्य भीगी मुस्कान सलोनी
मंदिर में जैसे मूरत प्यारी।
जल में ज्यों ही पग धरे तो
जल भी निर्मल सा हो जाए ।
प्रकृति सम सृजन की धात्री
आशीष सृष्टि का पाती जाए॥
- नीता श्रीवास्तव श्रद्धा , भोपाल
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