काव्य :
त्यौहार सजाना
मन में एक बाजार सजाना।
अच्छा सा व्यापार सजाना।
गम और खुशी आएंगे बारी।
तुम तो बस त्यौहार सजाना।
खामोशी भी कुछ कहती है।
आवाजों का धार सजाना।
शोर बस्तियों में होता है।
उनसे भी इकरार सजाना।
बाद ज़रा में बढ़ जाएगी ।
कभी नहीं तकरार सजाना।
क्या ठाकुर मंदिर में रहता।
तुम उसका दीदार सजाना।
यहीं कहीं उसका भी घर है।
तुम आने का वार सजाना।
- आर एस माथुर , इंदौर
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