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अग्नि-प्राइम: भारत की सुरक्षा कवच में जुड़ा स्वर्णिम अध्याय -प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)


 

अग्नि-प्राइम: भारत की सुरक्षा कवच में जुड़ा स्वर्णिम अध्याय

[भारत की मिसाइल क्रांति: चलती ट्रेन से इतिहास रचती ‘अग्नि-प्राइम’]

        भारत ने रक्षा प्रौद्योगिकी में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, जो उसकी सामरिक शक्ति को नई ऊंचाइयों तक ले जाती है और वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को मजबूत करती है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और त्रि-सेवा सामरिक बल कमांड (एसएफसी) के संयुक्त प्रयास से रेल-आधारित मोबाइल लॉन्चर प्रणाली से मध्यम दूरी की ‘अग्नि-प्राइम’ मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया है। 2,000 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली यह मिसाइल अचूक सटीकता और विनाशकारी शक्ति के साथ लक्ष्य भेदने में सक्षम है। रेल-आधारित लॉन्चर प्रणाली अद्वितीय गतिशीलता और परिचालन लचीलापन प्रदान करती है, जो आधुनिक युद्ध के जटिल परिदृश्य में त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करती है। यह उपलब्धि भारत को रेल-आधारित मिसाइल प्रक्षेपण क्षमता वाले चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल करती है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को और बल मिलता है।

‘अग्नि-प्राइम’ की तकनीकी श्रेष्ठता इसे अपनी श्रेणी में बेजोड़ बनाती है। नवीन प्रणोदन प्रणाली (प्रो-पल्शन सिस्टम), समग्र रॉकेट मोटर केसिंग और अत्याधुनिक नेविगेशन व मार्गदर्शन प्रणाली से सुसज्जित यह मिसाइल अपनी कैनिस्टर-लॉन्च प्रणाली के कारण प्रक्षेपण समय को न्यूनतम करती है। यह सुविधा मिसाइल को सड़क या रेल मार्ग से तीव्र गति से स्थानांतरित करने और लंबे समय तक सुरक्षित भंडारण के बाद तत्काल प्रक्षेपण की क्षमता प्रदान करती है। डीआरडीओ के अनुसार, यह पहला प्री-इंडक्शन नाइट लॉन्च था, जिसे सामरिक बल कमांड ने संचालित किया, जो भारत के परमाणु शस्त्रागार के प्रबंधन में केंद्रीय भूमिका निभाता है। ‘अग्नि-प्राइम’ धीरे-धीरे 700 किलोमीटर रेंज वाली ‘अग्नि-I’ का स्थान लेगी, जिससे भारत का सामरिक शस्त्रागार और अधिक आधुनिक, प्रभावी और विश्वसनीय बनेगा। इसकी रेंज और गतिशीलता इसे क्षेत्रीय खतरों, खासकर पड़ोसी देशों से उत्पन्न चुनौतियों, के खिलाफ एक जबरदस्त हथियार बनाती है।

इस परीक्षण का सामरिक महत्व अपार है। भारत का पड़ोस, जहां तनाव और सामरिक प्रतिस्पर्धा सतत बनी रहती है, ऐसी तकनीक की मांग करता है जो त्वरित, सटीक और प्रभावशाली जवाबी कार्रवाई सुनिश्चित करे। ‘अग्नि-प्राइम’ को विशेष रूप से क्षेत्रीय खतरों को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है, जबकि 5,000 किलोमीटर रेंज वाली ‘अग्नि-V’ व्यापक क्षेत्रीय कवरेज प्रदान करती है। डीआरडीओ के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत ने पिछले दो दशकों में अपनी बैलिस्टिक मिसाइल क्षमताओं को निरंतर उन्नत किया है। ‘पृथ्वी-II’ (350 किमी), ‘अग्नि-II’ (2,000 किमी), ‘अग्नि-III’ (3,000 किमी), और ‘अग्नि-IV’ (4,000 किमी) जैसी मिसाइलें पहले ही तैनात की जा चुकी हैं, और अब ‘अग्नि-प्राइम’ इस शस्त्रागार को और सशक्त बनाएगी। यह उपलब्धि न केवल भारत की रक्षा रणनीति को मजबूती प्रदान करती है, बल्कि विश्व मंच पर उसकी तकनीकी और सामरिक प्रभुता को स्पष्ट रूप से स्थापित करती है।

भारत ने ‘अग्नि-प्राइम’ मिसाइल के रेल-आधारित लॉन्च के साथ रक्षा प्रौद्योगिकी में एक ऐसी क्रांतिकारी छलांग लगाई है, जो उसकी सामरिक शक्ति को अभेद्य बनाती है और वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को और सशक्त करती है। इस प्रणाली की सबसे बड़ी ताकत इसकी अप्रत्याशित गतिशीलता और लचीलापन है। पारंपरिक स्थिर लॉन्चरों के विपरीत, रेल-आधारित प्रणाली मिसाइल को देश के विशाल रेल नेटवर्क पर तेजी से स्थानांतरित करने की सुविधा देती है, जिससे दुश्मन के लिए इसका पता लगाना और निशाना बनाना लगभग असंभव हो जाता है। रक्षा विशेषज्ञ इसे आधुनिक युद्ध की ‘हिट-एंड-रन’ रणनीति का प्रतीक मानते हैं, जो सामरिक युद्ध में निर्णायक बढ़त प्रदान करती है। कैनिस्टर-लॉन्च प्रणाली मिसाइल को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के साथ-साथ तात्कालिक प्रक्षेपण की क्षमता प्रदान करती है, जो भारत को रक्षा और आक्रामक रणनीतियों में अभूतपूर्व श्रेष्ठता देती है। यह तकनीक भारत के रेल नेटवर्क की विशालता का उपयोग कर मिसाइल तैनाती को इतना अप्रत्याशित और प्रभावी बनाती है कि यह सामरिक दृष्टिकोण से एक गेम-चेंजर साबित होती है।

भारत की रक्षा नीति का मूलमंत्र आत्मनिर्भरता और तकनीकी नवाचार है। डीआरडीओ के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2000 के दशक से अपनी मिसाइल रेंज को 350 किलोमीटर से बढ़ाकर 5,000 किलोमीटर तक विस्तारित किया है, जो क्षेत्रीय और वैश्विक खतरों से निपटने की उसकी अडिग प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ‘अग्नि-प्राइम’ का यह परीक्षण इस दिशा में एक और मील का पत्थर है, जो भारत के सामरिक शस्त्रागार को और अधिक आधुनिक और प्रभावशाली बनाता है। इसके साथ ही, स्वदेशी विमानवाहक पोत, ड्रोन प्रौद्योगिकी, और लेजर-आधारित हथियारों जैसे क्षेत्रों में भारत की प्रगति आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को रेखांकित करती है। ये उपलब्धियां न केवल तकनीकी उन्नति का प्रतीक हैं, बल्कि भारत की वैश्विक छवि को एक सशक्त, नवाचार-प्रधान और स्वावलंबी राष्ट्र के रूप में स्थापित करती हैं।

‘अग्नि-प्राइम’ का यह सफल परीक्षण केवल तकनीकी या सामरिक उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक प्रभुता का एक शक्तिशाली घोषणापत्र है। यह प्रणाली भारत को उन चुनिंदा देशों की कतार में ला खड़ा करती है, जो आधुनिक युद्ध की जटिलताओं को न केवल समझते हैं, बल्कि उनका जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार भी हैं। यह उपलब्धि क्षेत्रीय स्थिरता और शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान देती है, साथ ही भारत की रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाती है। यह परीक्षण भारत के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और सामरिक बलों के अथक परिश्रम और दृढ़ संकल्प का परिणाम है, जिन्होंने दिन-रात मेहनत कर देश को इस गौरवशाली मुकाम तक पहुंचाया है।

‘अग्नि-प्राइम’ का यह ऐतिहासिक परीक्षण भारत के लिए गर्व का एक स्वर्णिम क्षण है, जो रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और तकनीकी श्रेष्ठता का प्रतीक है। यह विश्व को स्पष्ट संदेश देता है कि भारत अपनी संप्रभुता और सुरक्षा के लिए किसी भी चुनौती का सामना करने को तत्पर है। यह उपलब्धि भारत के नवाचार, दृढ़ता और सामरिक दूरदर्शिता का जीवंत उदाहरण है, जो देश की रक्षा यात्रा में एक नया अध्याय जोड़ती है। ‘अग्नि-प्राइम’ न केवल भारत की तकनीकी प्रगति का द्योतक है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि भारत वैश्विक मंच पर एक ऐसी शक्ति के रूप में उभर रहा है, जो भविष्य की हर चुनौती के लिए सक्षम और सजग है। यह उपलब्धि भारत को न केवल क्षेत्रीय, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक अजेय शक्ति के रूप में स्थापित करती है, जो अपनी सुरक्षा और संप्रभुता के लिए हर कदम पर तैयार है।

  -  प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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