पर्व विशेष ∆
छठ पूजा: एक आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और सामाजिक महापर्व
- अध्यात्मवेत्ता विजय प्रकाश पारीक
प्रस्तुति - डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर
छठ पूजा आस्था और आत्मसंयम का बड़ा पर्व है कार्तिक मास दीपावली त्यौहार बाद देश भर मनाया जा रहा है और सामाजिक प्रशासनिक रूप से भी व्यापक तैयारी है।
छठी मैया और सूर्य देव आप सभी के जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि, सुख-शांति और संतान सुख प्रदान करें।
यह पर्व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, आत्म-शुद्धि और सामूहिक एकता का प्रतीक है। इस अवसर पर हम सब मिलकर पर्यावरण की रक्षा और परिवार की खुशहाली का संकल्प लें।
*जय छठी मैया!*
छठ पूजा, जिसे छइठ या षष्ठी पूजा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख लोकपर्व है जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह सूर्योपासना का अनुपम त्योहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नेपाल के तराई क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। मध्यप्रदेश राजस्थान गुजरात छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र आदि प्रान्तों में भी छठ पर्व पर उत्सवी माहौल रहता आया है चूंकि बिहार के लोगों की बड़ी कामकाजी संख्या इन राज्यों में है ।मैथिल, मगही और भोजपुरी संस्कृति का यह अभिन्न अंग है। यह पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है और ऋग्वेद में वर्णित सूर्य एवं उषा पूजन की परंपरा को जीवित रखता है। छठ पूजा सूर्य देव, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है। छठी मैया को मिथिला में रनबे माय, भोजपुरी में सबिता माई और बंगाली में रनबे ठाकुर कहा जाता है। यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है - चैती छठ (चैत्र मास में) और कार्तिकी छठ (कार्तिक मास में)।
पर्यावरणविदों के अनुसार, यह सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्योहार है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग होता है और नदियों-तालाबों की सफाई पर जोर दिया जाता है। आज यह पर्व प्रवासी भारतीयों के माध्यम से विश्वभर में फैल चुका है।
*इतिहास और उत्पत्ति*
छठ पूजा की जड़ें प्राचीन वैदिक काल में हैं। ऐतिहासिक रूप से, मुंगेर में स्थित सीता चरण मंदिर से इसकी शुरुआत जुड़ी हुई है, जहां माता सीता ने छठ व्रत किया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवासुर संग्राम में देवताओं की हार पर देव माता अदिति ने छठी मैया की आराधना की, जिससे उन्हें तेजस्वी पुत्र आदित्य (सूर्य देव) प्राप्त हुए, जिन्होंने देवताओं को विजय दिलाई। रामायण के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने लंका विजय के बाद छठ पूजा की थी। महाभारत में द्रौपदी और पांडवों ने भी इस व्रत को किया था। नामकरण के संदर्भ में, "छठ" षष्ठी का अपभ्रंश है, क्योंकि यह कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। षष्ठी देवी को कात्यायनी माता भी कहा जाता है, जो नवरात्रि में पूजी जाती हैं। यह पर्व प्राकृतिक सौंदर्य, परिवार कल्याण और स्वास्थ्य लाभ के लिए जाना जाता है।
*अनुष्ठान और विधि: चार दिवसीय उत्सव*
*छठ पूजा* चार दिनों का कठोर व्रत है, जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक चलता है। व्रतधारी (परवैतिन) 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखते हैं। स्त्री-पुरुष सभी इस व्रत को करते हैं। अनुष्ठान में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
पहला दिन: नहाय-खाय (चतुर्थी)
यह दिन सफाई और शुद्धि से शुरू होता है। घर की सफाई की जाती है, व्रती गंगा या नदी में स्नान करते हैं और गंगाजल से भोजन बनाते हैं। भोजन में कद्दू की सब्जी, चना दाल और चावल होते हैं। सेंधा नमक और घी का उपयोग किया जाता है। भोजन कांसे या मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। व्रती पहले भोजन ग्रहण करते हैं, फिर परिवार।
दूसरा दिन: खरना या लोहंडा (पंचमी)
व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं। शाम को गुड़ और गन्ने के रस से बनी खीर, रोटी और चावल का पिट्ठा बनाया जाता है। नमक या चीनी का उपयोग नहीं होता। व्रती एकांत में प्रसाद ग्रहण करते हैं, फिर परिवार को वितरित करते हैं। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है। रात में ठेकुआ (गुड़ और आटे से बना प्रसाद) तैयार किया जाता है।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (षष्ठी)
पूरे दिन प्रसाद तैयार किया जाता है, जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू, फल (नारियल, केला, गन्ना, हल्दी, नींबू आदि)। दउरा (बांस की टोकरी) में सामग्री रखकर छठ घाट पर जाते हैं। महिलाएं गीत गाती हैं। सूर्यास्त से पहले घुटने भर पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। दीप जलाए जाते हैं और परिक्रमा की जाती है।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य (सप्तमी)
सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती पानी में खड़े होकर सूर्योदय का इंतजार करते हैं। अर्घ्य के बाद पारण (व्रत खोलना) किया जाता है, जिसमें प्रसाद ग्रहण किया जाता है। परिवार और समुदाय के साथ खुशी मनाई जाती है।
क्षेत्रीय भिन्नताएं: बिहार में गंगा घाट पर, नेपाल में तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। मिथिला में महिलाएं बिना सिलाई की धोती पहनती हैं।
*आध्यात्मिक महत्व*
छठ पूजा पूर्ण रूप से आध्यात्मिक पर्व है, जो सूर्य देव और छठी मैया की आराधना से आत्म-शुद्धि, संयम और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता सिखाता है। यह अहंकार त्याग और भक्ति का प्रतीक है। मान्यता है कि इससे संतान सुख, स्वास्थ्य और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। छठी मैया सूर्य की बहन हैं, जो परिवार की रक्षा करती हैं। यह पर्व जीवन शक्ति के स्रोत सूर्य की प्रत्यक्ष पूजा है, जो वैदिक परंपरा से जुड़ा है। व्रत से आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है और बाधाएं दूर होती हैं।
*वैज्ञानिक महत्व*
छठ पूजा न केवल धार्मिक है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। सूर्य की उपासना से शरीर में विटामिन डी की प्राप्ति होती है, जो हड्डियों और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है। निर्जला व्रत शरीर की डिटॉक्सिफिकेशन प्रक्रिया को बढ़ावा देता है, जिससे विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने से पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से रक्षा होती है, क्योंकि इस समय किरणें कम हानिकारक होती हैं। जल में खड़े होकर पूजा से सकारात्मक ऊर्जा का अवशोषण होता है। नासा वैज्ञानिकों के अनुसार, उपवास से शरीर ऊर्जा ग्रहण करता है। सूर्य की किरणें रंग विज्ञान (क्रोमोथेरेपी) से जुड़ी हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य सुधारती हैं। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है, क्योंकि नदियों की सफाई और प्राकृतिक प्रसाद का उपयोग होता है।
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