साहित्यकार शोभा शर्मा की काव्यकृति प्रणयधारा का लोकार्पण हुआ
छतरपुर । काव्यसंग्रह प्रणयधारा का लोकार्पण विदुषी वामा मंच के बैनर तले, मंच के तीन वर्ष पूरे होने पर, आयोजन गांधी आश्रम, छतरपुर में किया गया। प्रणयधारा पुस्तक में ६४ कविताएं शामिल की गईं हैं, जिनमें स्त्री हृदय की भावनाओं के उद्गार लिखे गए हैं। इस अवसर पर नगर के सभी साहित्यकारों की आनंददायक उपस्थिति रही। सभी ने कवियत्री की पुस्तक को अपना स्नेह, आशीष दिया जो सदैव हृदय में प्रेरणाज्योति बन कर ऊर्जावान करता रहेगा।
अध्यक्षता डॉ. प्रो.गायत्री बाजपेयी ने की। उन्होंने सूरदास की एक पंक्ति पढ़ते हुए जो इस काव्यकृति के शुरू में ही ली गई है, "ऊधौ, मन भए दस बीस, एक हतौ सो गयौ श्याम संग, को अवराधै ईश।" कहा कि शोभा जी, स्त्री मन की गंभीर अध्येता हैं।"
मुख्य अतिथि डॉ.बहादुर सिंह परमार ने सूत्रात्मक रुप में शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सारी सृष्टि के केंद्र में प्रेम ही है प्रेम के व्यापक स्वरुपों में नवरस घुले हुए हैं। आदि कवि वाल्मीकि से प्रसाद के आंसू तक,भूत से वर्तमान तक प्रेम ही केंद्र बिंदु है चाहे वह भाई बहन का हो या पिता पुत्री का या फिर प्रेमी का प्रेम। शोभा जी की कविताओं में सभी रूपों का वर्णन है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राघवेंद्र उदैनिया 'सनेही' ने कहा,"बिना कल्पना के कविता पूर्ण नहीं होती। प्रणयधारा में अत्यंत भाव पूर्ण कविताएं हैं।"
डॉ.प्रो. गायत्री वाजपेयी ने समीक्षा करते हुए कहा,"जब प्रेम इंद्रियों से ऊपर उठ जाए तब लौकिक से यह अलौकिक तक, अतीन्द्रिय प्रेम बनकर पराकाष्ठा का रूप ले लेता है, अहं का अस्तित्व मिट कर हम हो जाए यथा, "समय नदी गहराई बाधा, मन पक्षी का मिलन करा दे" कभी रहस्य तो कभी आध्यात्मिकता भी दिखाई देती है ।
चाहतें दूर रखती हूं, नियत मिलन की नहीं, मिलन की रेख हथेलियों में है नहीं", फिर भी है प्रेमी के लिए दुआएं,नियामत की तरह मिलें हम आरजू है यही
आभा श्रीवास्तव ने अपनी शुभकामनाएं दीं । काव्यसंग्रह की ये पंक्तियां पढ़कर जब प्रेमी अपनी कवियत्री प्रेमिका से अनायास ही मिल जाता है तो पूछ बैठता है -
"क्या तुम्हारी कविताओं में मैं भी हूँ कहीं? क्या उनमें होता है मेरा जिक्र? क्या उनमें होता है मेरा अक्स?"
उन्हें वे पंक्तियाँ भी अच्छी लगीं,"स्त्री क्या चाहती है? वह चाहती है उसके मन को समझने वाला सोने से खरे दिल वाला पुरूष"।
जब उसके दिल को वह नहीं समझ पाता तो स्त्री धीरे धीरे उससे दूर जाने लगती है।
विशिष्ट अतिथि श्रीमान वीरेंद्र प्रताप सिंह बुंदेला, ने शुभकामनाओं के रुप में एक गीत सुनाया। "चांद आहें भरेगा.. विनीता गुप्ता ने किताब के कुछ कविताओं को पढ़ते हुए अपने उद्गार कहे कि प्रेम में विछोह जैसे नदी के दो किनारे साथ चलकर भी मिल नहीं पाते और साथ- साथ होते हुए भी रह जाती है केवल प्रतीक्षा प्रतीक्षा.….स्त्री मन को समझे जाने की!
स्मिता जैन 'रेवा', ने प्रेम में पगी कविता पढ़ी।
तथा विशिष्ट अतिथि संध्या श्रीवास्तव 'सांझ' शानदार संचालन करते हुए पुस्तक की एक कविता को प्रेम की पराकाष्ठा बताते हुए पंक्ति पढ़ी "नाम भर याद करने से है ताजगी।"
नीरज खरे ने शुभकामनाएं कुछ इस तरह दीं, "प्रेम शाश्वत है और भावलहरी जब सरिता का रुप लेती है तो बनती है प्रणयधारा। लेखन के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं होता। जीना इसी का नाम है। जीने और सृजन के लिए आयु की गिनती का नंबर नहीं होता।
उन्होंने कहा कि उम्र के इस पड़ाव पर कवियत्री सिर्फ गद्य पद्य ही नहीं रच रहीं वे इंस्टा फेसबुक के साथ यू ट्यूबर भी हैं और अच्छी खासी फैन फालोईंग के साथ स्टोरी टेलर भी हैं।
आन लाइन, मंचीय एवं आकाशवाणी, दूरदर्शन पर अपनी काव्य प्रस्तुति देने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामभरोसा पटेल 'अनजान', ने अपनी मंगलकामना इस तरह दी, "शोभा शर्मा जी की पुस्तक प्रेम कविताओं की *प्रणयधारा* का अजस्त्र प्रवाह निरंतर रहे।
यह पुस्तक निश्चित ही पाठकों, साहित्याकाश में सराही जाएगी एवं अपना स्थान बनाएगी ऐसी शुभकामनाएं प्रणयधारा के लिए छतरपुर के वरिष्ठ कवि आदरणीय सीताराम साहू जी ने देते हुए कहा, "इसका उत्कृष्ट सृजन प्रशंसनीय है। इसमेंकी कविताएं निश्चित रूप से पाठक वर्ग के दिल को छुएंगी।"
साथ ही रमेश चौरसिया 'प्रशांत', डॉ. रामभरोसा पटेल 'अनजान', डॉ. बी. एस.रिछारिया 'हर्षित', पं. हरिशंकर जोशी 'संतू', सीताराम साहू 'निर्मल', प्रमोद सारस्वत, श्रीकांत द्विवेदी, रामशरण शरण, नीतेंद्र सिंह परमार, पत्रकार विकास दीक्षित, टीकमगढ़ से आए पं.अनमोल व्यास, रामशरण शरण, श्रीमती हंसा परमार, प्रतिभा चतुर्वेदी, शिवा सक्सैना, डॉ. संध्या श्रीवास्तव, एवं अनेक साहित्यकारों ने शोभा जी के काव्य संग्रह को शुभकामनाएं आशीर्वाद स्नेह देकर गौरवान्वित किया एवं आयोजन के अंत तक शामिल रहे।
आप सभी ने पुस्तक *प्रणयधारा* एवं रचनाकार *शोभा शर्मा* को अपने आशीष, स्नेह ऊर्जा से सिक्त किया। सभी सम्माननीयों के आतिथ्य, स्वागत, मान,पान, सम्मान एवं पुस्तक पर समीक्षाओं, चर्चाओं का दौर चार से अधिक घंटों तक चला।