काव्य :
लाचारी है
क्या लाचारी है ।
कुछ दुश्वारी है।
कट ही जाओगे।
वो दो धारी है।
दवा नहीं लगती।
क्या बीमारी है।
हाथों में तंगी।
खड़ी उधारी है।
नहीं मिला संबल
फिरती मारी है।
पेट नहीं भरता।
पर खूंख्वारी है।
उसका क्या बिगड़े।
जज से यारी है।
- आर एस माथुर , इंदौर
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