ad

लघुकथा : खुशियां परिवार आंगन की -अलका मधुसूदन पटेल,जबलपुर


 लघुकथा : 

खुशियां परिवार आंगन की


दिवाली आई जगमगाहट लाई, भारत की राजधानी या किसी भी बड़े शहर में निकलो तो चारों ओर रोशनी ,सारी रात चहल पहल, मन खुश हो जाता है।

कौशल सोच रहा है---पर घर आओ तो---।                चौदहवीं मंजिल में दो कमरों का घर, छोटी सी बालकनी।

कितने दिये जलाएं क्या सजावट करें ? जाने मन क्यों इतना उदास हो उठा ?

जब यहां अच्छी नौकरी लगी, तो आना ही पड़ा, माना तनख्वाह बहुत ज्यादा है, सुख सुविधाएं असीमित। 

पर---परिजनों के साथ दिवाली का मजा--- मन में उथल पुथल मचा रहा। गांव में बड़ी कोठी, हाँ, छोटे शहर में भी बड़ा घर। कितने भी दीपक जलाओ , सजावट करो कम ही लगते--- त्यौहार का उत्साह उल्लास असीमित।

यहां----कोई आतिशबाजी नहीं,पॉल्युशन ज्यादा,बाहर का खाना मिलावटी, घर के सब कामवाले छुट्टीपर---ओह.!

सोचता है---बस किसी तरह सपरिवार घर पहुचें, भाभी--माँ के हाथ की मिठाई कचौड़ी, पिताजी भाई--बहिन साथ धमाचौकड़ी।

वही तो असली दीवाली होगी। 


 - अलका मधुसूदन पटेल,जबलपुर म प्र

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post