हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण पर्व है दीपावली
उत्सव मानव जीवन में महत्वपूर्ण हैं, कल्पना करें यदि उत्सव नहीं होते तो जीवन कैसा नैराश्यपूर्ण होता ? उत्सव उत्साह एवं उल्लासपूर्ण जीवन का एक अभिन्न भाग है।
हमारी संस्कृति में अनेक उत्सव हैं जो किसी न किसी रूप में आस्था के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं।
दीपावली हमारी संस्कृति में एक विशेष महत्वपूर्ण पर्व है, जो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के अपने पिता के बचन को निभाते हुए चौदह वर्ष वनवासी जीवन में आततायी राक्षसों का वध करने के उपरांत वापस अयोध्या लौटने की ख़ुशी में मनाया जाता है । इस उत्सव में वैभव दात्री माँ लक्ष्मी की विशेष पूजा का प्रावधान है।
दीपावली आगमन से पूर्व सभी अपने घरों में साफ़-सफाई, रंगाई, पुताई करते हैं अतः यह स्वच्छता, स्वास्थ की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
साफ-सफाई के उपरांत इस प्रकाश पर्व के लिए सजे हुए बाजारों से पूजन सामग्री, दीये एवं घर को सजाने के सामान खरीद कर लाते हैं, यह उल्लासपूर्ण पर्व धनतेरस से प्रारंभ होता है, धनतेरस को लोग महालक्ष्मी पूजन सामग्री, मिट्टी के दीपक, नए बर्तन, भगवान् की नूतन छवि (फोटो/कलेंडर), मिठाई, खील आदि खरीद कर लाते हैं, अर्थात् इनका लघु व्यवसाय कर वे (छोटे छोटे व्यवसायी) भी हर्षोल्लास से परिवार के साथ उत्सव मनायें। (इसमें मतभेद हो सकता है लेकिन मेरे निजी विचार से पूजन सामग्री फुटपाथ पर बैठे या घूम-घूमकर चलने वाले छोटे से छोटे विक्रेता से खरीदना इस पर्व की सार्थकता को सुदृढ़ करेगा)।
इस सामग्री से दीपावली (अमावस) के दिन महालक्ष्मी पूजन होता है, पूजन के पश्चात् आस-पड़ौस, मित्र परिचितों में प्रसाद वितरण किया जाता है। हालांकि आज इसमें दिखावे के कारण विकृतियाँ आईं हैं, प्रसाद का स्थान गिफ्ट/उपहारों ने लेकर समाज में एक अलग ही परिवेश तैयार किया है, जो समाज के निम्न और मध्यम वर्ग के जनमानस के हृदय को कचोटता है, निश्चित ही यह परिवेश समाज में भेद पैदा करता है और समाज को बाँटने की नींव रखने का कार्य करता है, आज इतना बड़ा पुनीत एवं महत्वपूर्ण पर्व मात्र उपहार बांटने का कार्यक्रम मात्र बनता जा रहा है, जो भविष्य में समाज एवं संस्कृति के लिए विध्वंसक हो सकता है।
स्वच्छता, प्रकाश, प्रेम एवं सौहार्द का यह पर्व सभी के जीवन में प्रकाश लेकर आये, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपनी दो पंक्तियाँ समर्पित करता हूँ :–
लेश-मात्र भी जहाँ तमस हो, दीप वहीँ ले जायें,
समरस सब समाज हो जाए, राग-द्वेष मिट जाए।
मधुर-सुधा बरसे रसना के एक-एक अक्षर में,
दीप जलें घर-घर में....।।
- डॉ नवीन जोशी ‘नवल’,बुराड़ी, दिल्ली
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