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भोपाल में सालाना कविता भंडारा का सफल आयोजन हुआ


 

भोपाल में सालाना कविता भंडारा का सफल आयोजन हुआ


- “ज़िन्दगी में मिले हमदम बहुत हैं, 

         इसीलिए मेरे दिल में ग़म बहुत हैं”


- “सच बोलना आदत में शुमार हो गया

         इसीलिए मैं उनका गुनहगार हो गया”,


- “चरैवेति मंत्र है मेरा, सदा चलता रहूंगा। 

- दीप हूं मैं तम हटाने, निरंतर जलता रहूंगा।।


- “ममता के बीज बोती है 

- बस वही तो माँ होती है”, 


- “आहट तेरे आने की आई 

- महफ़िल बन गई तन्हाई”, 

 “शक्कर वाले के नाम से प्रसिद्ध स्वर्गीय बाबूलाल जी सोनी लीला देवी सोनी की पावन स्मृति में उनके साहित्यकार सुपुत्र बिहारी लाल सोनी “अनुज” प्रत्येक वर्ष भारतीय साहित्य एवं कला परिषद के तत्वाधान में एक “कविता भंडारा” आयोजित करते हैं। जिसमें भोपाल और आसपास की जगहों के रचनाकार आते, रचना पाठ करते और प्रस्थान करते रहते हैं। यह अनवरत क्रम पाँच-छह घंटे चलता है। 

आयोजक परिवार से जुड़े निष्णात संचालक श्री विमल भण्डारी ने की शुरुआत करते हुए पिछले चालीस सालों  “सालाना कविता भंडारा” के इतिहास पर प्रकाश डाला। कार्यकर्म दो सत्रों में संपन्न हुआ। पहला सत्र रामराव वामनकर की अध्यक्षता और अशोक धमेनिया के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। 

दूसरा सत्र गोकुल सोनी की अध्यक्षता और सुरेश पटवा के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। आरम्भ में बिहारी लाल सोनी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत करने के बाद भारतीय साहित्य एवं कला परिषद भोपाल का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर बिहारी लाल सोनी द्वारा भोपाल की पुरानी साहित्यिक संस्था “अखिल भारतीय कला मंदिर भोपाल” के इतिहास पर लिखी पुस्तक का लोकार्पण किया गया। 

अध्यक्ष राम राव वामनकर ने बिहारी लाल सोनी परिवार की साहित्य के प्रति निष्ठा और समर्पण की प्रशंसा की और “कर प्रवंचना ओरों से फिर चाहता विश्वास बावरे मन”, और अशोक धमेनिया ने “देवासुर समर बीच मंथन हुआ है खूब” रचना सुना सराहना बटोरीं। 

गोकुल सोनी ने कहा कि अपने माता पिता की स्मृति में प्रतिवर्ष बहुत बड़ा साहित्यिक आयोजन करके श्री बिहारीलाल सोनी जी सच्चे अर्थों में अपने माता पिता के ऋण से उऋण होने का कार्य कर रहे हैं। उनका यह उपक्रम अनुकरणीय और स्तुत्य है। उन्होंने “चरैवेति मंत्र है मेरा, सदा चलता रहूंगा। दीप हूं मैं तम हटाने, निरंतर जलता रहूंगा।। रचना पाठ किया। 

सुरेश पटवा ने बिहारी लाल जी की साहित्यिक रुचि और रचनाकारों को मंच देने की उत्कृष्ट भावना की सराहना की और “ज़िन्दगी में मिले हमदम बहुत हैं, इसीलिए मेरे दिल में ग़म बहुत हैं”, ग़ज़ल सुनाई। सत्यदेव सोनी ने दूसरे सत्र का संचालन किया और “काम ऐसा करो जग नमन को उठे”, 

विमल भंडारी ने “कैसे लिखूँ पत्र बाबू जी जीवन की मुस्कान खो गई”, मंजू पटवा ने “बैंक में धन देह में जान है”, दिनेश गुप्ता मकरंद ने “यार वो कभी हमारा हुआ करता था”, डॉक्टर प्रतिभा ने “साथ बैठे गुनगुना लें”, हीरा लाल पारस ने “आदमी का क़द कितना छोटा है”, अरुण कुमार देव ने “मानवता की जड़वत बूंदे शून्य हुईं”, नंदिनी पटेल ने “मैं भी भारत की छाया हूँ”, गोपाल देव नीरद ने “बनाकर गुल को सुहाग छोड़ जाती है”, कमलेश नूर ने “आँखों में मेरी प्यार का मंजर नहीं देखा”, मुज़फ़्फ़र सिद्दीकी ने “मैं तुम्हारे साथ हूँ”, कमलेश तिवारी ने “सर शब्दों में गीत सजे हों”, राम मोहन चौकसे ने “मुझे बहुत याद आती हैं मेरी माँ”, चरणजीत सिंह कुकरेजा ने “सच बोलना आदत में शुमार हो गया इसीलिए गुनहगार ही गया”,मीनू पांडे ने “पिता तुम्हारी तस्वीर मुसकायेंगी”, होशियार सिंह जी ने “ये कथा है रघुनाथ की”, कैलाश मेश्राम ने “आहट तेरे आने की आई महफ़िल बन गई तन्हाई”, 

विशाखा राजुरकर ने “सच है घर आए हुए घर आए हुए लगते हैं”, डॉक्टर राजेश तिवारी ने “हड़ताल सरकार कराए”, अशोक व्यास ने “मेरे लिए तुम्हारा होना अपने आपको पूरा खोना”, कमल किशोर दुबे ने “गीता रामायण गुरुवाणी माँ की महिमा गाती है”, 

करुणा राजुरकर ने “मिलकर हम लोग जतन ऐसा कुछ करें”, अशोक प्रियदर्शी ने “द्वार दस्तक दे सुबह की पहली किरण”, चंद्रभान सिंह चंदर ने “प्रेम का ये गणित तुम ना पढ़ पाओगी”, शिव कुमार दीवान ने “रोटी मिली छीनी ज़िन्दगी”, लक्ष्मी कांत जावने में “पिता का जूता एक अजूबा”, अशोक पंडित ने “कभी कभी चेहरे तस्वीर से बाहर निकल आते हैं।”, 

सुंदर लाल प्रजापति ने “किस्सा ए ग़म जिन्हें सुना पाते”, पुरुषोत्तम साहित्यार्थी ने “निर्मोही तेरी सुधि करते”, विनोद जैन ने “कोई कहता जग है सपना”, 

महेश अग्रवाल ने “समुंदर सोच कर इस बात पर हैरान रहता है”, सरोज लता सोनी ने “हम कभी माता पिता का ऋण चुका सकते नहीं”, प्रदीप मणि तिवारी ने” नीतिराज चौरे ने “माँ की ममता का कोई मोल नहीं”, नमन चौकसे ने “आग तले है मोम की हवेली”, शिवम् सोनी ने “माता पिता गुरु नमन करी”, 

कैलाश आदमी ने “ममता के बीज बोती है बस वही तो माँ होती है”, अखिलेश लोधी ने “आ गए बाप के पैर में छाले” सुनाईं। 

कार्यक्रम ई-७/१२० अशोक सोसाइटी अरेरा कॉलोनी में संपन्न हुआ।


सुरेश पटवा 

संयोजक

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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