[प्रसंगवश – 24 अक्टूबर: विश्व पोलियो दिवस]
रोग से रक्षक तक: पोलियो-मुक्त भारत की अदृश्य यात्रा
[दो बूँद ज़िंदगी की — आँसुओं से उम्मीद तक का सफर]
[अंधकार से उजाले तक: भारत की पोलियो उन्मूलन क्रांति]
कभी एक ऐसा दौर था जब किसी माँ की गोद में खेलता बच्चा अगले ही दिन चलने की ताकत खो देता था—उसका बचपन वहीं ठिठक जाता था, उसकी हँसी का स्वर मौन में बदल जाता था। वह बीमारी थी पोलियो—मानवता की सबसे क्रूर परीक्षा। लेकिन आज, विश्व पोलियो दिवस (24 अक्टूबर) पर, यह तारीख महज कैलेंडर का अंक नहीं, बल्कि अदम्य इच्छाशक्ति का प्रतीक है—जहाँ विज्ञान, सेवा और समर्पण ने असंभव को मात दी। डॉ. जोनास साल्क की जन्मजयंती को समर्पित यह दिन 1955 के चमत्कारी टीके की याद दिलाता है, जिसने करोड़ों जिंदगियों को नई उड़ान दी।
“पैरालिसिस का राक्षस” पोलियो ने 125 देशों में तांडव मचाया—गरीब-अमीर, जाति-धर्म न देखा। सूक्ष्म पोलियोवायरस ने स्नायुतंत्र को चूर-चूर कर दिया, जीवनभर की अपंगता थोप दी। मुंह से फैलता यह विष दूषित पानी-भोजन से घुसता, 1980 के दशक में सालाना 350000 बच्चे शिकार। भारत का दर्द सबसे गहरा—1980 में 200000 मामले—दुनिया का आधा पोलियो यहीं। मुजफ्फरपुर-गोरखपुर जैसे इलाकों में गर्मी का कहर—सुबह उठे बच्चे पैरों से महरूम, माताओं की चीखें आसमान छूतीं—कोई दवा नहीं। यह चिकित्सा आपदा से कहीं ऊपर, सामाजिक कलंक था—गरीबी की मार से लड़कियाँ सबसे ज्यादा बेबस, पोषणहीन बचपन में लाचार।
1995 में शुरू हुआ पल्स पोलियो अभियान ने इतिहास रच दिया। यह केवल स्वास्थ्य योजना नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति थी। "दो बूँद जिंदगी की" सिर्फ नारा नहीं था, बल्कि वह वचन था जिसने हर माँ के दिल में आशा जगाई। अभियान की शुरुआत में ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) की कीमत लगभग 8 डॉलर प्रति डोज़ थी, लेकिन भारत सरकार ने इसे मात्र 8 सेंट तक सस्ता कराया। गुमनाम योद्धाओं में 20 लाख से अधिक स्वयंसेवक और 10 लाख आशा कार्यकर्ताएँ शामिल थे। वे ऊंटों पर राजस्थान के रेगिस्तान पार करतीं, नावों से असम के ब्रह्मपुत्र नदी पार करतीं और हिमालय की बर्फीली चोटियों पर चढ़तीं। धार्मिक बाधाओं का सामना करते हुए मुस्लिम बहुल इलाकों में "टीका हलाल नहीं" की अफवाहें फैलीं, लेकिन इमामों ने फतवा जारी कर सहयोग किया। हिंदू गांवों में "गाय का दूध ही दवा" की मान्यता तोड़ी गई। 2003 में उत्तर प्रदेश के एक गांव में 200 स्वयंसेवकों पर पथराव हुआ, लेकिन वे भागे नहीं—अगले दिन दोगुने संख्या में लौटे।
भारत की यह जीत 2014 में पूरी हुई, जब डब्ल्यूएचओ ने घोषणा की कि भारत पोलियो-मुक्त है। यह विजय केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं थी। अभियान ने प्रतिवर्ष 23 करोड़ बच्चों को टीकाकरण दिया, जो दुनिया का सबसे बड़ा प्रयास था। इसने जन्म के समय टीकाकरण दर को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 90 प्रतिशत कर दिया। महिलाओं की भूमिका उल्लेखनीय थी—70 प्रतिशत कार्यकर्ता महिलाएँ थीं, जो लिंग समानता की अनकही कहानी बयान करती हैं। पोलियो उन्मूलन ने स्वास्थ्य व्यवस्था की मजबूत नींव रखी। उसी घर-घर सर्वे ने 2020 में कोविड वैक्सीन के 200 करोड़ डोज पहुँचाए। लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि 1980 से 2010 के बीच 2 लाख से 4 लाख बच्चे पोलियो से अपंग बने। उनकी कहानियाँ कभी भूली नहीं जा सकतीं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पोलियो के मामले 99.9 प्रतिशत गिर चुके हैं—1988 के 350000 से घटकर 2023 में मात्र 12 (डब्ल्यूपीवी-1) एवं लगभग 500 (सीपीडीपीवी) रह गए। लेकिन खतरा अभी भी बरकरार है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में डब्ल्यूपीवी-1 के लगभग 100 प्रतिशत मामले दर्ज होते हैं, जबकि कुल पोलियो मामलों (सीपीडीपीवी) का 90 प्रतिशत हिस्सा इन दोनों देशों से आता है। तालीबान की अस्थिरता और युद्ध ने वहाँ टीकाकरण को बाधित किया। 2023 में अफगानिस्तान में कुल 6 मामले सामने आए, जिनमें से 2-3 कंधार प्रांत से थे। वहाँ लड़कियों के स्कूल बंद होने से माताएँ टीका लेने से डरती हैं। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में 2022 में कुल 20 मामलों में से 14 पाए गए। सीमा पर ड्रोन हमलों ने तनाव बढ़ाया, जिससे मिलिटेंट्स ने स्वास्थ्य टीमों पर हमले किए। एक अनकही कहानी यह है कि 2012-13 में पाकिस्तान में 35 स्वास्थ्यकर्मियों की हत्या हुई, जिसके बाद अभियान रुका लेकिन फिर निर्बाध चला।
और सबसे बड़ा छिपा खतरा है “वैक्सीन-डिराइव्ड पोलियोवायरस” (सीवीडीपीवी)। ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) में कमजोर जीवित वायरस होता है, जो स्वास्थ्य समुदायों में उत्परिवर्तित हो सकता है। 2023 में 13 देशों—यूके, इथियोपिया, इजराइल सहित—में 300 से अधिक सीवीडीपीवी मामले सामने आए। भारत में 2010 के बाद कोई मामला नहीं पाया गया, लेकिन सतत निगरानी आवश्यक है। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि 2026 तक इंजेक्शन वैक्सीन (आईपीवी) की ओर मजबूत शिफ्ट जरूरी है, वरना सीवीडीपीवी महामारी का रूप ले लेगा। जलवायु परिवर्तन ने नया जोखिम पैदा किया है—बाढ़ और सूखे से दूषित पानी बढ़ेगा, जिससे वायरस तेजी से फैलेगा। अफ्रीका के नाइजीरिया में 2020 की बाढ़ ने 10 नए मामले जन्म दिए।
24 अक्टूबर हमें चेतावनी देता है कि पोलियो तब तक समाप्त नहीं होगा, जब तक वैश्विक टीकाकरण कवरेज 95 प्रतिशत न हो जाए। अभी 100 से अधिक देशों में यह मात्र 84 प्रतिशत है। पोलियो का आर्थिक बोझ भारी है—प्रत्येक अपंग बच्चे पर आजीवन लगभग 1 लाख डॉलर का खर्च आता है, जबकि उन्मूलन से 40 बिलियन डॉलर की वैश्विक बचत होगी। लेकिन इसकी असली ताकत मानवता में निहित है। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने पोलियो उन्मूलन के लिए 5 बिलियन डॉलर दान दिए, लेकिन जमीनी नायक वे 100 करोड़ भारतीय हैं। रोटरी इंटरनेशनल के 1.2 मिलियन सदस्यों ने 2.5 बिलियन डॉलर से अधिक जुटाए— और उनकी जमीनी मेहनत को अक्सर कम आंका जाता है। यह सामूहिक मानवीय प्रयास ही पोलियो उन्मूलन की सफलता का आधार है।
आज जब तकनीक हमें चाँद तक ले जा रही है, पोलियो की लड़ाई अभी भी पैदल स्वयंसेवकों की मेहनत पर टिकी है। 1952 में अमेरिका में 58,000 मामले थे—आज वहाँ शून्य हैं। भारत ने साबित किया कि गरीब देश भी असंभव को संभव बना सकते हैं। भविष्य आशाजनक है— डिजिटल ट्रैकिंग ऐप्स सुनिश्चित करते हैं कि कोई टीका छूटे नहीं, और अफगानिस्तान में ड्रोन वैक्सीन पहुँचा रहे हैं। लेकिन चुनौतियाँ बाकी हैं। सोशल मीडिया पर “टीका चिप लगाता है” जैसी अफवाहें फैल रही हैं। इस विश्व पोलियो दिवस पर संकल्प लें— हर बच्चा सुरक्षित हो, कोई माँ भयभीत न रहे। हमारी जिम्मेदारी है—अफवाहों को तोड़ें, निगरानी मजबूत करें, और दान दें। पोलियो उन्मूलन इंसानियत की जीत है। हमने इसे लगभग हासिल कर लिया है। हर बूँद आशा है, हर प्रयास मानवता का प्रतीक। जब आखिरी पोलियो वायरस मरेगा, तब पृथ्वी सचमुच स्वस्थ होगी। यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई—हर स्वस्थ मुस्कान हमारी जीत है। इसे अमर रखें।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)
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