काव्य :
पूर्णिका
रहना न अब मुझे,तेरे दीदार के बिना।
जीवन अधूरा मेरा,तेरे प्यार के बिना।
बिन सब्र सुकूं कोई,न पा सका यहां,
चलता नही गुजारा,संसार के बिना।
दर्द ए जहां में कोई, बे-दर्द न मिला,
भाती न जिंदगानी, कर्तार के बिना।
तेरे बगैर चैन भी, पाया नहीं कान्हा,
मैं जी नहीं पाऊं,तेरे आधार के बिना
राधे के नहीं दास,आप दास प्रेम के,
भक्तों से हार जाते,तकरार के बिना।
श्यामा के संग हृदय में आइए प्रभु,
निर्मल रहेंगे कैसे,सरकार के बिना।
- सीताराम साहू'निर्मल' , छतरपुर मप्र
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