कहानी :
कैसे थे दिन
छुट्टी का दिन था। बहुत दिनों बाद इस रविवार को घर के सभी सदस्य मौजूद थे। क्योंकि घर के मुखिया रवि सक्सेना अक्सर दौरे पर रहा करते थे।
कामिनी आज बहुत ख़ुश थी। वो मन ही मन कई प्रोग्राम बना रही थी। जिसमें चारो का भागीदारी होता। लंच में चिकेन बिरयानी तथा रायता बनाने को सोचा। डिनर के लिये उसका ईरादा था कहीं बाहर जा कर खाना खाने का।
ऐसी ही योजना बनाते हुए वह रसोई में गुनगुनाते हुए
बेसन का हलवा बनाने लगी। हलवा बनाने के बाद उसने टेबल पर नाश्ते का सामान करीने से लगा दिया। उधर गैस पर चाय के लिये पानी चढ़ा दिया।
नाश्ते के बाद इस घर में सब को चाय की तलब होती है। नाश्ता करने के बाद सब अपने-अपने कमरे में चले गए।
जूठे बर्तन तथा कुछ खाने के सामान टेबल पर रह गया था, जिसे बाई(नौकरानी)को हटाना था। जब वह समेट रही थी तो उसका छः साल का लड़का देख रहा था। वैसे तो उसने बहुत चीजें खाई थी लेकिन चीज़ स्लाईस को कभी नहीं खाया था। उसकी निगाह उसी पर अटकी थी। जैसे ही उसकी माँ किचेन में गई झट से उसने चीज़ स्लाईस का एक पीस उठा लिया, और खाने लगा।
इतने में कामिनी आ गई और उसने न आव देखा न ताव तड़ातड़ उसके गाल पर चाटा मारने लगी। कहने लगी-----
"लालची कहीं का। चोरी करता है। आज खाने का सामान चुराया कल तू और भी कुछ चोरी कर सकता है। बच्चा बेचारा चीख़-चीख़ कर रोने लगा। कामिनी उसकी माँ पर भी चिल्लाने लगी--------"मना किया था इसे मत लाया कर, चोर को।
कामिनी की बातों को सुन कर उसे बहुत दुःख हुआ।
बोली------"मैडम जी आप अमीर लोग हो। रोज़ ऐसी चीजें खाते हैं। मेरे बच्चे ने पहली बार देखा तो उसे लालच आ गया। आगे से ऐसा नहीं करेगा, मैं समझा दूँगी।
कामिनी------"अरे!तू क्या समझायेगी तू भी ऐसी होगी"
बाई-----" मैडम जी आप ने मेरे ऊपर लांछन लगाया। इतने दिन से काम कर रही हूँ एक ग्लास पानी भी बिना पूछे नहीं पिया। फ़िर भी इतना बड़ी बात आप ने कह दी।
मैं अब आप के घर काम नहीं करुँगी। हम गरीब जरूर हैं पर स्वभिमानी और खुद्दार हैं। बच्चे को लालची कहा, मारा मैं चुप रही। मुझ पर ऊँगली उठाई ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती"।
आप को शायद पता नहीं मैं भी खाते-पीते घर से थी। पर मेरे पति की मृत्यु कैंसर से हो गई। रिश्तेदारों ने नाजुक वक्त का फ़ायदा उठाया और जमीन जायदाद अपने नाम करवा लिया। दर-दर भटकने को। गाँव में काम नहीं मिलता तभी शहर आना पड़ा। कल कैसे सुनहले दिन थे और आज कैसे दिन हैं। सोचा भी न था कि ऐसे भी दिन आएंगे।
अच्छा आप किसी और को काम पर लगा लेना। मैं चली। नमस्ते।
- डॉ मंजू लता , नोयेडा