काव्य :
शरद पूर्णिमा 2025
श्रेष्ठ रत्नत्रय दिवस अवतरण.
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इंजी. अरुण कुमार जैन
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त्रि रत्नो का दिवसअवतरण, शुभ अवसर यह युग का,
श्री विद्यासागर,माँ ज्ञानमती जी, समय सागर गुरुवर का.
शरद पूर्णिमा चौबीस, छियालिस,वर्ष अठावन आये, धन्य धरा यह प्रमुदित हर मन, जड़, चेतन मुस्काये.
धवल रश्मियाँ शीतल पावन,
अंतर्मन में आयीं,
दिव्य, प्रखर व भव्य गुणों से,
रोम- रोम विकसायीं.
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ज्ञानमती माँ,आचार्यश्री जी,
श्री समय सागर कहलाये,
त्याग, तपस्या, नई चेतना, भारत भू पर लाये.
ऐसा योगी कुछ न लेता,
देता झोली भर-भर.
प्रतिभास्थली, हथकरधा, दयोदय करुणा रत्नाकर.
भाग्योदय,पूर्णायु,शांतिधारा
से खुशियाँ आयीं,
रामटेक, माड़िया जी, कुंडलपुर ने निधियाँ दिलवायीं.
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अयोध्या, प्रयागराज, हस्तिनापुर माताजी ने ही दिया है,
मांगीतुंगी प्रभुआदिनाथ जी,
युग निर्माण किया है.
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वर्तमान में पथ दर्शाते,
श्री भरत,राम के जैसे.
आचार्य श्री जी के स्वरूप
पूज्य समय सागर जी ये.
दें पथ दर्शन व संरक्षण,
हम आगे बढ़ते जाएं,
शरद पूर्णिमा श्रेष्ठ रत्नत्रय
को नित शीश झुकायें.
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सत्य,अहिंसा,त्याग, साधना,
गंगा,सेवा करुणा की,
नव निधियों को देने वाले,
हम करें वंदना इनकी.
श्रेष्ठ गुणों के ये संवाहक,
विस्तृत धरा, गगन से,
शुभ्र व उन्नत हिमगिरि जैसे,
यश,धैर्य महासागर से.
शरद पूर्णिमा शत वंदन है, पावन श्री चरणों में,
पद रज, अनुकम्पा, संरक्षण,
सब पाएं हर पल, युग में.
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