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काव्य : उसके नयनों से तो,आँसू बरसे बहुत हैं -श्रीपति रस्तोगी,लखनऊ


 काव्य : 

उसके नयनों से तो,आँसू बरसे बहुत हैं


शहर में मेरी,अमीरी के चर्चे बहुत हैं,

जेब है तो खाली,मगर खर्चे बहुत हैं।1।


इश्क के बीमारों की,लगी हैं लाईने,

फुर्सत नहीं है,हकीम को,पर्चे बहुत हैं।2।


मुस्कुराकर के वो जब,है देखता मुझे ,

तो लग जाते लोगों को,मिर्चे बहुत हैं।3।


हुस्न को भी इश्क की,रहती है तलाश,

असल प्यार को,यहाँ सब तरसे बहुत हैं ।4।


रूह से रूह का रिश्ता ही,होता है सच्चा,

वरना तो जमाने में,प्यार के किस्से बहुत हैं।5।


फना हुई शमा,तो हुई है रौशन ये महफिल,

वैसे तो पढ़ी गई,रोशनी की नज्में बहुत हैं।6।


लोग कहते हैं,इश्क है दरिया आग का,

तभी तो सफ़र में,मेरे पाँव झुलसे बहुत हैं।7।


भीगा दुपट्टा,विरह की गवाही दे रहा है

 नयनों से उसके तो,आँसू बरसे बहुत हैं।8।


चकोर तो चाहता,बस,स्वाती की बूंद को,

वरना आस्माँ से ,बादल तो बरसते बहुत हैं।9।


प्रेम की अग्नि तो बस प्रेम से ही बुझेगी 

वरना युं तो इश्क के दरिया बहते बहुत हैं।10।


श्रीपति रस्तोगी,लखनऊ 

                                    

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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