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काव्य : डिस्पोजल - चन्दा डांगी ,मंदसौर


 काव्य : 

डिस्पोजल


संस्कृति में हमारी 

जब से आया डिस्पोजल 

ज़िन्दगी डिस्पोजल हो गई 

डिस्पोजल की तरह आकर्षण शरीर का 

थी

देखते ही इलू इलू करते 

मां बाप परिवार को छोड़ 

एक दूजे से जुड़ते 

कभी बात सगाई तक 

पहूंचती 

कभी शादी तक 

घर हो भी जाए शादी 

चार , छः दिन या महीने 

में नौबत तलाक तक पहुंच जाती 

रिश्ते डिस्पोजल हो गये है 

हम चालीस साल पुरानी 

चीजें भी सहेज कर रखते थे 

चाहे जितना मनमुटाव हो 

रिश्तों में दरार तक न आती 

न मां बाप को वृद्धाश्रम भेजते 

न तलाक होता 

कर दो ज़िन्दगी से अलविदा डिस्पोजल 

लौटा दो फिर वही पुराना ज़माना 

न पर्यावरण बिगड़ेगा न परिवार।


- चन्दा डांगी रेकी ग्रेंडमास्टर 

     मंदसौर मध्यप्रदेश

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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