काव्य :
पटाखों की धूम
दोहे
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*लगी फिरकनी घूमने,*
*अलबेली सी चाल,*
*देख ठगी सी रह गई,*
* *लड़ियों वाली माल*।।
*अलबेला त्योहार यह*,
*झरते फूल अनार।*
*प्रीति निभाये फुलझड़ी*,
*लाये नई बहार ।।२।।*
*टिकली बड़ी उदास थी,*
*देख दिये की जंग ।*
*आओ हम भी मिल जलें,*
*कर दे सबको दंग*।।3।।
*हुये विकल राकेट सब,*
*जम न पाई धाक ।*
*पर्यावरण की आन में*,
*खोई अपनी साख* ।।4।।
*धूम- धड़ाका सा मचा*,
*बाल वृंद सब दंग।*
*उल्लासित हैं मगर,*
*सजे दियों के संग ।।५।*
*तितली पूछे बम से,*
*क्यों करता तू शोर।*
*तिमिर भारी यह रात है*,
*जल्द सुहानी भोर।।6।।*
*झड़ते फुल अनार के*,
*देख दीप सौगात।*
*ठुमकी सी ये फुलझड़ी*,
*शरमाये निज गात।।7।।*
*धूम पटाखों की मची*,
*लड़ी लगाए आस।*
*सीना ताने सब खड़े,*
*टिकली करती हास।।8।।*
*बने अखाड़े से लगें,*
*गली -मुहल्ले आज।*
*सभी अचंभित से खड़े*
*हर घर इनका राज।।*
- श्यामा देवी गुप्ता दर्शना
वरिष्ठ साहित्यकार,भोपाल
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