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हर शहर की हवा अब खतरनाक—क्या हम जागेंगे? - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)


 

हर शहर की हवा अब खतरनाक—क्या हम जागेंगे?

[हर सांस पर सवाल: क्या हम अपनी जिंदगी दांव पर लगाएंगे?]

[फेफड़ों की हाहाकार: क्यों भारत की राजधानी बन गई जहरीली]

    सांस लीजिए, लेकिन डरिए—हर सांस में जहर है। दिल्ली की सड़कों पर, भोपाल की गलियों में, इंदौर के चौराहों पर—हवा अब दोस्त नहीं, कातिल बन चुकी है। दिवाली की रात, जब दीयों की लौ और पटाखों की चमक ने आसमान को रंगों से भर दिया, उसी रात हवा चीख उठी—यह उत्सव नहीं, मौत की दावत है। दिल्ली में एक्यूआई 400 को लांघ गया, भोपाल में पीएम-2.5 महज दो घंटों में 65 से 680 तक उछला—10 गुना जहर। स्वच्छता का तमगा पहनने वाला इंदौर भी नहीं बचा, एक्यूआई 323 तक पहुंचा। ये आंकड़े महज संख्याएं नहीं, हमारे फेफड़ों की चीख हैं। क्या हमारी खुशियां इतनी सस्ती हैं कि हम अपनी सांसों को दांव पर लगा दें?

दिल्ली, हमारी राजधानी, अब जहर की राजधानी है। 21 अक्टूबर को सीपीसीबी ने बताया—औसत एक्यूआई 346, लेकिन अशोका विहार में तो 714। यह 'गंभीर' नहीं, 'मौत का मंजर' है। डब्ल्यूएचओ कहता है, पीएम-2.5 का सुरक्षित स्तर 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, मगर दिल्ली में यह 24 गुना ज्यादा था। पटाखों ने पीएम-2.5 और पीएम-10 को 1,500 माइक्रोग्राम तक पहुंचाया। सुप्रीम कोर्ट के 'ग्रीन पटाखे' के आदेश हवा में उड़ गए; सड़कों पर वही जहरीले पटाखे फटते दिखे। सुबह धुंध ने सूरज को निगल लिया, विजिबिलिटी 100 मीटर से कम। बच्चे अस्थमा से जूझ रहे हैं, बुजुर्ग फेफड़ों की तकलीफ में तड़प रहे हैं। पड़ोसी शहर भी डूबे—गुड़गांव 402, फरीदाबाद 412। पराली, वाहनों का धुआं, और कारखानों का जहर—सबने मिलकर हवा को कातिल बना दिया। आई-क्यू-एयर की चेतावनी साफ है—दिल्ली अब दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। क्या हम अपनी सांसों को बचाने के लिए अब भी नहीं जागेंगे?

भोपाल अब सांसों का दम घोंट रहा है। कभी झीलों और हरियाली का गहना, यह शहर अब जहर की चपेट में है। 20-21 अक्टूबर की रात, पटाखों ने हवा को मौत का प्याला बना दिया। एमपीपीसीबी और सीपीसीबी के आंकड़े चीखते हैं—शाम 6 बजे पीएम-2.5 65 था, रात 8 बजे तक 680—महज दो घंटों में 10 गुना जहर। सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और सूक्ष्म कणों ने हवा को कातिल कर दिया। एक्यूआई 181 तक पहुंचा—'अस्वास्थ्यकर' का ठप्पा। गरीब बस्तियों में आंखें जल रही हैं, गले खराश से तड़प रहे हैं, बच्चे खांसी में डूबे हैं। विशेषज्ञ चेताते हैं—ठंडी हवाएं और स्थिर मौसम प्रदूषकों को कैद करते हैं, और पटाखे इस जहर को विस्फोटक बनाते हैं। यह एक रात की कहानी नहीं—हर साल भोपाल की सांसें और कमजोर हो रही हैं। क्या हम अपने शहर को इस तरह मरने देंगे?

इंदौर, स्वच्छता का गर्व, अब प्रदूषण की आग में झुलस रहा है। 21 अक्टूबर को एमपीपीसीबी ने खुलासा किया—एक्यूआई 261, लेकिन छोटी ग्वालटोली में 362, एयरपोर्ट पर 320—'गंभीर' की कगार पर। दिवाली से पहले एक्यूआई 153 था, मगर पटाखों ने इसे दोगुना कर दिया। पीएम-2.5 191 माइक्रोग्राम—डब्ल्यूएचओ के मानक से 12 गुना ज्यादा। वाहन, धूल, और निर्माण कार्य पहले से 70% जहर उगलते हैं; पटाखों ने इस आग में घी डाला। एक रात की चमक ने हवा को जहर का गोला बना दिया। स्वच्छता का तमगा क्या हमारी सांसें बचा पाएगा?

यह सिर्फ भोपाल या इंदौर की मार नहीं—2025 की दिवाली ने पूरे भारत को झकझोरा। गाजियाबाद 324, नोएडा 325, लखनऊ 250, उदयपुर 250। पीएम-2.5 फेफड़ों से खून में घुसता है, दिल के दौरे, कैंसर, स्ट्रोक को बुलावा देता है। डब्ल्यूएचओ की चेतावनी—भारत में हर साल 16 लाख मौतें प्रदूषण की भेंट चढ़ती हैं। एक घंटे के पटाखे महीनों के ट्रैफिक जितना जहर फैलाते हैं। ठंडी हवाएं स्मॉग का जाल बुनती हैं, मगर असली कसूरवार हमारी लापरवाही है। क्या हम अपनी सांसों को यूं ही जहर बनने देंगे?

यह संकट सिर्फ आज का नहीं, हमारी आने वाली पीढ़ियों का है। बच्चों में अस्थमा 30% बढ़ रहा है, बुजुर्ग हार्ट अटैक से जूझ रहे हैं, युवा कमजोर पड़ रहे हैं। आर्थिक नुकसान अरबों में। मगर रास्ता है—पटाखों को अलविदा कहें—लेजर शो, दीये, सामूहिक उत्सव अपनाएं। 'ग्रीन पटाखे' भी नहीं, पूर्ण प्रतिबंध चाहिए।  सरकारें जागें—ड्रोन से निगरानी, एनसीएपी (नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम) को ताकत, इलेक्ट्रिक वाहन, हरियाली। हम भी बदलें—एन-95 मास्क, एयर प्यूरीफायर, कम बाहरी व्यायाम। स्कूलों में प्रदूषण की पढ़ाई हो, इंदौर की तरह हर शहर स्वच्छता से प्रदूषण को मात दे। हर कदम मायने रखता है—आज का कदम, कल की सांसें बचाएगा।

दिवाली रोशनी का उत्सव है, जहर का अड्डा नहीं। 2025 की धुंध में डूबी दिल्ली, भोपाल का बढ़ता धुआं, इंदौर का गहराता संकट—यह खतरे की घंटी है। अगर आज नहीं चेते, तो अगली दिवाली और स्याह होगी। संकल्प करें—अगली दिवाली हरे-भरे आसमान की होगी। दीये की लौ जलाएं, पटाखों की चिंगारी नहीं। हवा को शुद्ध रखें, ताकि हर सांस जिंदगी बने, मौत का सबब नहीं। यह महज त्योहार का मसला नहीं, हमारी हस्ती की जंग है। बदलाव का पहला कदम हमारा है—अभी, इसी क्षण।

 - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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