ad

काव्य : बवाल हो गया - प्रमोद सामंतराय, सरायपाली


 काव्य :

बवाल हो गया


खामोश रहते थे हमेशा

लोगों की सुन सुनकर,

एक बार जो कहने लगे हम

तो जैसे बवाल हो गया ।


सारा जमाना था तैयार

हमारी ही छाती में मूंग दलने को,

जरा सा करवट क्या बदली हमने

तो जैसे बवाल हो गया ।


सारी उम्र बीत गई

लोगों के सपने पूरे करने में,

हमने जो देख लिया एक ख्वाब

तो जैसे बवाल हो गया ।


हमारे ही इन पंखों से

जाने कितनों ने भर ली उड़ाने,

एक बार जो खुद को उड़ाना चाहा

तो जैसे बवाल हो गया ।


खिलौना समझ कर हमारे दिल से

न जाने खेलते रहे कितने,

जरा सा दरवाजे क्या बंद किये दिल के

तो जैसे बवाल हो गया ।


 - प्रमोद सामंतराय

सरायपाली महासमुंद (छ.ग.)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post