सरोकार:
स्वास्थ्य पर जीडीपी के लक्ष्य की तुलना में केवल 0.27 प्रतिशत ही खर्च
- डॉ. चन्दर सोनाने , उज्जैन
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर बनी संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा सामने आया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में 2025 तक स्वास्थ्य पर खर्च को जीडीपी का 2.5 प्रतिशत खर्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, किन्तु यह लक्ष्य की तुलना में केवल 0.27 प्रतिशत ही है। इसे दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि वर्ष 2025-26 के बजट से जीडीपी के तय लक्ष्य की तुलना में यह 11 प्रतिशत ही है। अर्थात लक्ष्य से 89 प्रतिशत पीछे है।
संसद की स्थाई समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि पिछले तीन साल से अर्थात 2022-23 से स्वास्थ्य बजट जीडीपी का 0.27 प्रतिशत ही बना हुआ है। इसमें कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का बजट 2013-14 में 35,063 करोड़ रूपए था, जो 2025-26 में बढ़कर 95,957.87 करोड़ रूपए हो गया। यहां केन्द्र सरकार का कहना यह है कि बजट में 174 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। किन्तु केन्द्र सरकार ने ही अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में जो लक्ष्य तय किया था उससे यह बहुत पीछे है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में बनी थी। उस समय हमारे देश की आबादी करीब 135 करोड़ थी, जो अब 2025 में करीब 145 करोड़ से भी अधिक होने का अनुमान है। आबादी बढ़ने के अनुसार स्वास्थ्य मद में जो बढ़ोत्तरी होनी थी, वह नहीं हो पाई।
स्वास्थ्य खर्च पर केन्द्र सरकार के दावे और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर बनी संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट में बड़ा अंतर सामने आया है। देश की बढ़ती हुई आबादी के मान से और आमजन को स्वास्थ्य सुविधा मिल सके इसके लिए बजट की जिस तरह से बढ़ोत्तरी होना चाहिए वह पिछले तीन साल से नहीं हुई है।
समिति की रिपोर्ट से एक बात और सामने आई है, वह यह कि 31 जनवरी 2025 तक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय अपने संशोधित अनुमान का केवल 81.32 प्रतिशत ही खर्च कर पाया था। इस प्रकार 18.68 प्रतिशत राशि खर्च होने से बच गई थी। इस प्रकार करीब 16,000 करोड़ रूपए वित्तीय वर्ष के अंतिम दो महीनों के लिए बचे। जबकि समिति ने पहले ही चेताया था कि अंतिम तिमाही में भारी खर्च की प्रवृत्ति वित्तीय अनुशासन को प्रभावित करती है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर बनी संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट ने सरकार का ध्यान इस बात पर भी आकर्षित किया है कि स्वास्थ्य बजट को जीडीपी के 2.5 प्रतिशत लक्ष्य तक ले जाने के लिए समयबद्ध और चरणबद्ध कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए, जो नहीं की गई। इसी प्रकार वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में बचे हुए बजट की राशि के खर्च की प्रवृत्ति पर प्रभावी नियंत्रण तंत्र लागू किया जाना चाहिए, जो नहीं किया गया। समिति ने एक और महत्वपूर्ण बात पर ध्यान आकर्षित किया है, वह यह कि पीएम-एबीएचआईएम जैसी प्रमुख योजनाओं में कम बजट के उपयोग पर जवाबदेही तय की जानी चाहिए यानी लापरवाही करने वाले अधिकारी के विरूद्ध कार्यवाही की जानी चाहिए, जो नहीं किया गया।
समिति की रिपोर्ट में कोविड महामारी के बाद भी उससे शिक्षा नहीं लेने की बात कही है। कोविड के बाद पीएम आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन को स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने की प्रमुख योजना के रूप में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन इसके बावजूद साल 2024-25 के दौरान इस योजना में बजट उपयोग 63 प्रतिशत ही रहा। अर्थात बजट की 37 प्रतिशत राशि खर्च ही नहीं की गई। समिति ने इस पर यह भी कहा कि महामारी के बाद भी हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन में जो अपेक्षित गति दिखनी थी, वह नहीं दिखी।
देश के आमजन सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भर है। केन्द्र सरकार की यह महति जिम्मेदारी भी है कि वह सामान्यजन को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराएं। इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में 2025 तक स्वास्थ्य व्यय को जीडीपी का 2.5 प्रतिशत करने का लक्ष्य तय किया गया है। इसलिए भी यह आवश्यक था कि लक्ष्य के अनुसार सरकार स्वास्थ्य पर पर्याप्त राशि का प्रावधान करें, ताकि आमजन उसका लाभ ले सके। केन्द्र सरकार को चाहिए कि प्राथमिकता के आधार पर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करने का लक्ष्य सुनिश्चित कर उसे व्यवहारिक रूप में भी क्रियान्वित करें।
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