ad

समकालीन कथा-साहित्य 2025 : एक सिंहावलोकन -दीपक गिरकर, इंदौर


समकालीन कथा-साहित्य 2025 : एक सिंहावलोकन

            समकालीन हिंदी कथा साहित्य समाज और जीवन के बदलते यथार्थ का सजीव दर्पण है। समकालीन कथाकारों ने पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों में हो रहे तनाव, विघटन और जटिलताओं को गहराई और ईमानदारी के साथ प्रस्तुत किया है। वे न केवल बाहरी घटनाओं, बल्कि पात्रों के आंतरिक संघर्ष, मानसिक और भावनात्मक उथल-पुथल को भी उजागर करते हैं। स्त्री विमर्श, दलित और अल्पसंख्यक प्रश्न, भूमंडलीकरण, बाजारवाद और दो पीढ़ियों के वैचारिक अंतर जैसे विषयों को कथाएँ केंद्र में लाती हैं। समकालीन कहानी जीवन के भोगे हुए सत्यों और सामाजिक असमानताओं से सीधे टकराती है, पाठकों को सोचने और सामाजिक यथार्थ का मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करती है। इस दौर की कहानी न केवल यथार्थवाद पर आधारित है, बल्कि भाषा, शैली और शिल्प में नवाचार और प्रयोगशीलता के माध्यम से जीवन की जटिलताओं को सजीव और प्रामाणिक रूप में चित्रित करती है। प्रमुख कथाकार जैसे गीतांजलि श्री, चित्रा मुद्गल,  नासिरा शर्मा,  बलराम, संजीव, पंकज सुबीर,  डॉ. हंसा दीप, सुधा ओम ढींगरा, तेजेन्द्र शर्मा,  प्रज्ञा रोहिणी,  अशोक वाजपेयी,  उदय प्रकाश,  ममता कालिया,  आशा शर्मा ‘विपुला’,  सुषम बेदी,  प्रभा खेतान,  मुद्राराक्षस,  निलय उपाध्याय, शशिभूषण द्विवेदी, विजयदान देथा, रामस्वरूप किसान, ज्ञानरंजन,  नैना जायसवाल,  सूर्यबाला, मधुरेश,  विनोद कुमार शुक्ल,  काशीनाथ सिंह, सत्य व्यास,  मानव कौल,  मृदुला गर्ग,  उषा प्रियंवदा,  अस्ग़र वजाहत,  अनामिका,  रत्नकुमार सांभरिया, गंगाराम राजी,  बसंती पंवार,  नंदकिशोर आचार्य, सांवर दइया, डॉ. अजय शर्मा, गीता श्री, मनीषा कुलश्रेष्ठ, मनीष वैद्य, तेज प्रताप नारायण,  गुलाब कोठारी, सुधा अरोड़ा,  संतोष दीक्षित, ज्ञानचन्द बागड़ी,  अलका सरावगी,  जया जादवानी, डॉ. उर्मिला शिरीष, निधि अग्रवाल, डॉ. राजेंद्र रत्नेश, लक्ष्मी शर्मा,  शिवेंद्र, मृदुला श्रीवास्तव, ममता सिंह, अनिता रश्मि, पल्लवी विनोद, मुकेश पोपली,  संतोष श्रीवास्तव, सुधा जुगरान, प्रितपाल कौर, जयंती रंगनाथन, एम.एम. चन्द्रा, पारमिता षड़ंगी, कविता वर्मा, आभा श्रीवास्तव,  सूर्यकांत नागर, अश्विनी कुमार दुबे, ज्योति जैन, सीमा व्यास, अरुण अर्णव खरे,  दिलीप जैन, शेर सिंह आदि ने अपने कथ्य और शैली के माध्यम से समकालीन जीवन की यथार्थता और मानवीय संवेदनाओं को उभारते हुए हिंदी कथा साहित्य को समृद्ध किया है।


*वर्ष 2025 में प्रकाशित समकालीन हिंदी कथा साहित्य जो मेरे द्वारा पढ़ा गया :*


राजपाल एंड संस से प्रकाशित कथाकार पंकज सुबीर का कहानी संग्रह "ख़ैबर दर्रा" मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक यथार्थ और मनोवैज्ञानिक गहराई का प्रभावशाली दस्तावेज़ है। उनकी किस्सागोई की शैली आम जिंदगी के निकट है, जिसमें पात्र, परिवेश और घटनाएँ अत्यंत जीवंत और सजीव प्रतीत होती हैं। राजनीति, साम्प्रदायिकता, मूल्यहीनता, अवसरवाद, पितृसत्ता, भ्रष्ट व्यवस्था, प्राकृतिक सौंदर्य, थर्ड जेंडर और होमोफोबिया जैसे विविध सामाजिक मुद्दे उनकी कहानियों में सहज रूप से उपस्थित होते हैं। कथाकार इंसानी भावनाओं, स्मृतियों और जीवन–संघर्षों को इतनी बारीकी से उकेरते हैं कि पाठक हर कहानी के साथ खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है। इस संग्रह की कहानियाँ -  “एक थे मटरू मियाँ एक थी रज्जो”, “हरे टीन की छत”, “ख़ैबर दर्रा”, “वीरबहूटियाँ चली गईं”, “देह धरे का दंड”, “निर्लिंग”, “आसमान कैसे–कैसे”, “कबीर माया पापणीं” और “इजाज़त@घोड़ाडोंगरी”—केन्द्र में इंसानी जटिलताएँ, मासूम प्रेम, सामाजिक विसंगतियाँ और बदलते मूल्य आते हैं। सुबीर सामाजिक अन्याय, मीडिया की दिखावटी दुनिया, प्रकृति से बढ़ती दूरी, लिंग–पहचान की पीड़ा और रिश्तों में आए बदलाव को बेहद संवेदनशीलता और प्रभावशीलता से प्रस्तुत करते हैं। संग्रह की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसकी हर कहानी न सिर्फ विचार जगाती है, बल्कि पाठक को भीतर तक छू जाती है। पंकज सुबीर का कथा-शिल्प, भाषा का सहज प्रयोग और कथानक की पकड़ उन्हें समकालीन हिन्दी कहानीकारों में विशिष्ट बनाती है। 

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित गीतांजलि श्री का "सह-सा" उपन्यास छोटे-छोटे प्रसंगों से निर्मित मानव-नियति और विविध जीवन-संदर्भों के सह-अस्तित्व की कथा है, जिसमें एक परिवार के भीतर की खामोश संघर्ष-स्थितियाँ और दिशाहीनता संवेदनशीलता से उभरती हैं। सेतु प्रकाशन समूह से प्रकाशित रत्नकुमार सांभरिया का उपन्यास "नटनी" केवल एक उपन्यास नहीं, बल्कि साहित्य की वह प्रकाश-रेखा है जो अँधेरे में डूबे समुदायों पर प्रकाश डालकर उन्हें उनकी आत्मगाथा कहने का साहस देती है। यह कृति हाशिये के समाज को केंद्र में रखकर मानवीय गरिमा, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक पहचान के प्रश्नों को नई तीव्रता के साथ उभारती है। सेतु प्रकाशन समूह से प्रकाशित  कथाकार तेज प्रताप नारायण के उपन्यास 'बदलते अक्षांश' की कथा का केन्द्र पूर्वांचल का एक गाँव है लेकिन इसके कथा-क्षेत्र का विस्तार अमेरिका और यूरोप तक है। तकनीक के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त कुछ युवाओं के सामाजिक अनुभवों, जीवन संघर्षों और भविष्य की सम्भावनाओं के माध्यम से कथा को विस्तार दिया गया है।  सेतु प्रकाशन समूह से प्रकाशित राजू शर्मा के उपन्यास "हलफनामे" में भारतीय समाज का असाधारण आख्यान रचा है। यहाँ एक तरफ शासनतन्त्र की निर्दयता और उसके फरेब का वृत्तान्त है तो दूसरी तरफ सामान्यजन के सुख-दुख-संघर्ष की अनूठी छवियाँ हैं। इस उपन्यास में यथार्थ के भीतर बहुत सारे यथार्थ हैं, शिल्प में कई-कई शिल्प हैं, कहानी में न जाने कितनी कहानियाँ है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अलका सरावगी का उपन्यास "कलकत्ता कॉस्मोपॉलिटन : दिल और दरारें" कॉस्मोपॉलिटन कलकत्ता की जटिल गाथाओं और विविध जीवन-स्थितियों को उजागर करता है। यह ‘सुनील बोस/मोहम्मद दानियाल’ की पहचान, संघर्ष और सच-झूठ के द्वंद्व के माध्यम से शहर के सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय विविधताओं को मार्मिक और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है।

सेतु प्रकाशन समूह से प्रकाशित संतोष दीक्षित के उपन्यास "ख़लल" आज की एक विकट समस्या की शिनाख्त करता है। उपन्यास सियासत और पूँजी के गठजोड़ को उजागर करता है, जो गरीबों को विस्थापित कर कंपनियों के लिए भूमि हड़पना चाहती हैं। मुआवज़े और रोजगार के सब सपने छल साबित होते हैं, और समुदाय दोहरे विस्थापन - ज़मीन और सौहार्द दोनों के खोने का शिकार बनता है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अनामिका का उपन्यास "दूर देश के परिन्दे" स्वतंत्रता-पूर्व और आसपास के वर्षों में विश्व-प्रसिद्ध पुरुषों के जीवन में आई स्त्रियों की कथा प्रस्तुत करता है। ये स्त्रियाँ उस समय की महिलाओं के लिए प्रेरणा बनती हैं, क्योंकि उनके सहचर्य में धैर्य, ममता, सहिष्णुता और त्याग जैसे गुण स्त्री और पुरुष दोनों में संतुलित रूप से विकसित होने की संभावना दिखती है।  सेतु प्रकाशन समूह से प्रकाशित ज्ञानचन्द बागड़ी का उपन्यास "दिल्ली दयार" मुण्डका गाँव के एक परिवार के माध्यम से 1977 से वर्तमान तक हुए सामाजिक बदलावों - जाति, परंपरा और संबंधों के रूपांतरण को दिखाता है। बेबे की जीवन-यात्रा भेदभाव से इंसानियत की ओर बढ़ते समाज का प्रतीक बनकर उभरती है। सरल भाषा और व्यापक सामाजिक संदर्भ इसे पूरे गाँवों की बदलती कथा बना देते हैं। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित प्रत्यक्षा का उपन्यास "शीशाघर" विभाजन और बिखराव के बावजूद अंदरूनी मानवीय एकता की कथा कहता है, जो पात्रों को दूरियों और देशों के बावजूद आपस में गहरे रूप से जोड़ती है। यह आज के समय की संवेदनाओं की प्रतिध्वनि है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित वन्दना राग का उपन्यास "सरकफंदा" भारत के अतीत और वर्तमान के बीच फैली कथा कहता है, जहाँ भविष्य पर लगातार शिकंजा कसता है। यह उपन्यास हमारे समय के यथार्थ की सघन, आवेग-भरी कलात्मक दुनिया का आईना है।

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित जया जादवानी का उपन्यास "इस शहर में इक शहर था" विभाजित सिन्ध और उसके लोगों की गहरी कसक एवं पीड़ा का मार्मिक आख्यान प्रस्तुत करता है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित सुजाता का उपन्यास "दरयागंज वाया बाज़ार फ़त्ते ख़ाँ" तीन पीढ़ियों के माध्यम से विभाजन झेलने वाले मुल्तानी लोगों की अनकही दास्तान खोलता है - उनकी ज़बान, तहज़ीब और अपनी पहचान खोने के भय सहित। उपन्यास विभाजन की ज्ञात त्रासदी से आगे बढ़कर इन छिपी कथाओं को उजागर करता है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित सविता भार्गव का उपन्यास "जहाज़ पाँच पाल वाला" तीन स्वयंमुख़्तार स्त्रियाँ - वर्तिका, चारुचित्रा और एमिली की कथा कहता है, जिन्होंने पितृसत्तात्मक बाधाओं, घर-परिवार और परंपरा के विरोध के बावजूद अपनी राह बनाई और रंगमंच एवं जीवन दोनों में एक क़ाबिले-रश्क स्थान स्थापित किया। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित शोभा लिम्बू का उपन्यास "शुकमाया हांगमा" लिम्बू आदिवासी समुदाय की एक सशक्त, स्वाभिमानी स्त्री की वास्तविक कहानी पर आधारित है। बर्मा युद्ध की पृष्ठभूमि में यह कृति विस्थापित लोगों की पीड़ा और क्षत-विक्षत मन को मार्मिक रूप से प्रस्तुत करती है, साथ ही हिन्दी पाठकों के लिए कम परिचित ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिदृश्य उजागर करती है।  राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित बलराम का कहानी संग्रह "शुभ दिन" में "शुभ दिन" कहानी  पति-पत्नी के संवेदनशील दाम्पत्य का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती है, जहाँ प्रेम, संवेदनशीलता और करुणा का समाहार है। कथा का नायक स्त्रीचेता पुरुष है, जो पत्नी के संकेतों को समझता है और उसके भावों का सम्मान करता है। यह कहानी ओ हेनरी की ‘द गिफ्ट्स ऑफ द मेजाई’ जैसी मार्मिकता लिए हुए है। समकालीन हिन्दी कहानी में "शुभ दिन"  और बलराम की अन्य कहानियाँ ऐसे संवेदनशील पुरुषों की कल्पना करती हैं, जो स्त्री की भावनाओं को समझकर उसके साथ सजीव, सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रख सकते हैं।

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित डॉ. राजेंद्र रत्नेश का उपन्यास "निर्लेप नारायण" श्रावक उमरावमल ढढ्ढा की जीवनी पर आधारित है, जिनका जीवन सरल, सीधा और उदाहरणीय था। बड़े परिवार और पुरखों की संपत्ति के बावजूद उन्होंने भोग-विलास में नहीं रहकर अपने जीवन को दान, नैतिकता और इंसानियत के मार्ग पर समर्पित किया। वे धर्म, जाति और संप्रदाय से ऊपर मानवीय मूल्य को प्राथमिकता देते थे और सम्यक् अर्थों में महावीर मार्ग के अनुयायी थे। व्यवसाय, वकालत और वृत्तिका में सफलता न मिलने के बावजूद उन्होंने अमीरी छोड़कर साधारण जीवन अपनाया, और अपनी भव्य हवेली के बावजूद सीधी-सादी, निर्विकारी जिंदगी जिया।  शिवना प्रकाशन से प्रकाशित लक्ष्मी शर्मा का उपन्यास "लीला गाथा-एक कुप्रसिद्ध इंदौरी औरत की" लीला इंदौर की एक निम्न मध्यम वर्गीय बस्ती की सच्ची, संघर्षशील महिला की कथा है। लक्ष्मी शर्मा ने अपनी भावभीनी लेखनी से सन सत्तर के इंदौर की उस बस्ती और उसके निवासियों के जीवन, संघर्ष और संस्कृति को जीवंत किया है। कथा में लीला के कठिन वैवाहिक और सामाजिक अनुभवों के बावजूद उसका व्यक्तित्व और संघर्ष उसे और उज्जवल बनाते हैं। उपन्यास इंदौर को स्वयं एक पात्र बनाकर पाठक को उसी समय-काल में ले जाता है और पात्रों के सुख-दुख को महसूस करने का अवसर देता है।

अद्विक प्रकाशन से प्रकाशित "11 कहानियाँ सूर्यकांत नागर" वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर के कहानी संग्रह में संकलित कहानियाँ सामान्य, निम्न और निम्न-मध्यवर्गीय व्यक्ति के जीवन-संघर्ष, नैतिक द्वंद्व और मनोवैज्ञानिक उलझनों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती हैं। लेखक पात्रों की बाहरी परिस्थितियों के साथ उनके आंतरिक मनोभावों को भी गहराई से उकेरते हैं, जिससे कथाएँ जीवंत और विश्वसनीय बनती हैं। ‘त्रिशंकु’, ‘तमाचा’, ‘कायर’, ‘तबादला’ और ‘खबर से बाहर’ जैसी कहानियाँ ईमानदारी, कायरता, पूर्वाग्रह, व्यवस्था की विफलता और टूटते विश्वास पर तीखे प्रश्न उठाती हैं। सरल, सहज और व्यंग्यात्मक भाषा में लिखी गई ये कहानियाँ मानवीय मूल्यों और सामाजिक चेतना को केंद्र में रखती हैं। यह संग्रह समकालीन हिंदी कथा-साहित्य में नागर की सशक्त और प्रतिबद्ध रचनात्मक उपस्थिति को रेखांकित करता है। शिवना प्रकाशन से प्रकाशित सुधा जुगरान का उपन्यास "मन के चौहट्टे पर बोनसाई"  मध्यम वर्गीय परिवार और कामकाजी युवाओं के जीवन का सामाजिक यथार्थ दर्शाता उपन्यास है। सुधा जुगरान ने आठ मुख्य पात्रों - सुनंदा, समर, सोमी, रोमिल, रियाना, अनुपम, रिजुल और मेहुल के माध्यम से दाम्पत्य, परिवार और मित्र संबंधों में उत्पन्न द्वंद्व और संवादहीनता का मार्मिक चित्रण किया है। उपन्यास उत्तराखंड के प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिवेश में भी गहराई से सेट है, जिससे पाठक कथानक में पूरी तरह डूब जाता है। लेखिका की मनोवैज्ञानिक समझ, पात्रों की स्वाभाविकता और सामाजिक सरोकार उपन्यास की प्रमुख विशेषताएँ हैं। शिवना प्रकाशन से प्रकाशित प्रियंका ओम का उपन्यास "साज़-बाज़" केवल एक प्रेम-कथा नहीं, बल्कि आत्म-प्रतिबिंबित दस्तावेज़ है, जिसमें नायिका देविका के माध्यम से लेखिका ने अपने भीतर की संवेदनाओं और द्वंद्वों को व्यक्त किया है। यह उपन्यास भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक यात्रा है, जो आधुनिक स्त्री की स्वतंत्रता, प्रेम और आत्म-अस्तित्व की जटिलताओं को संवेदनशीलता से चित्रित करता है।

न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित आभा श्रीवास्तव का कहानी संग्रह "पच्चीसवां प्रेम पत्र"  की कहानी "पच्चीसवां प्रेम पत्र" स्त्री जीवन, प्रेम और सामाजिक यथार्थ का संवेदनशील चित्रण है। कहानी में मीना अपने लॉकर में हार खोजते हुए अतीत की परतों को खोलती है और राहुल, उसका पहला प्रेम, स्मृति में जीवित हो उठता है। चौबीस प्रेम पत्र माँ द्वारा जला दिए गए थे, लेकिन माउथ ऑर्गन में लिपटा पच्चीसवां पत्र अतीत की यादों और अधूरे प्रेम को पुनर्जीवित करता है। यह केवल मीना की कहानी नहीं, बल्कि उस पीढ़ी की कथा है, जिनके पहले प्रेम को सामाजिक और पारिवारिक प्रतिबंधों ने पीछे छोड़ दिया। कहानी में प्रेम केवल रोमांस नहीं, बल्कि भावनात्मक संघर्ष, विरह और संवेदनाओं का जटिल मिश्रण है। सरल, स्पष्ट और संवादप्रधान भाषा के माध्यम से लेखिका ने प्रेम, वियोग, आत्म-सम्मान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मार्मिकता को प्रभावशाली ढंग से कथानक में पिरोया है। यह संग्रह न केवल प्रेम और वियोग की दास्तान है, बल्कि स्त्री की अस्मिता, संवेदनशीलता और संघर्ष का सजीव चित्रण भी प्रस्तुत करता है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित निधि अग्रवाल का कहानी संग्रह "प्रेम एक पालतू बिल्ली" जीवन की जटिलताओं, संघर्ष और मानवीय संवेदनाओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है। कहानियाँ पात्रों के भीतर की लड़ाई, अकेलेपन, पीड़ा और आशा को जीवंत रूप में दिखाती हैं। उनकी लेखनी सरल, संवेदनशील और प्रभावशाली है। यह संग्रह केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन, प्रेम और मानवीय संघर्षों की गहन विचार यात्रा कराता है।

शिवना प्रकाशन से प्रकाशित मनीष वैद्य के कहानी संग्रह "गुलाबी इच्छाएँ" में स्वच्छंद, निश्छल और संवेदनशील प्रेम की जीवंतता प्रस्तुत होती है। ये कहानियाँ पाठक को प्रेम की गहराइयों, अधूरी इच्छाओं और बचपन की मासूम यादों से जोड़ती हैं। हर कहानी अपने प्रतीकात्मक और भावपूर्ण स्वरूप से प्रेम के विभिन्न आयामों को उजागर करती है। ग्रामीण परिवेश और प्राकृतिक दृश्य पात्रों की अनुभूतियों के साथ सहज रूप से गूंथे गए हैं। यह संग्रह प्रेम को नए दृष्टिकोण और कलात्मक अभिव्यक्ति के साथ प्रस्तुत करता है, जिसमें जीवन, स्मृति और मानवीय संवेदनाओं का सुंदर मिश्रण है।  शिवना प्रकाशन से प्रकाशित "एक ख़ला है सीने में" (किन्नर विमर्श की कहानियाँ) किन्नर समुदाय के जीवन, संघर्ष और सामाजिक बहिष्कार को उजागर करता है। इस संकलन की 22 कहानियाँ किन्नरों के अधिकार, आत्म-सम्मान और मानवीय संवेदनाओं को सामने लाती हैं। परिवार और समाज द्वारा त्याग और भेदभाव झेल रहे किन्नरों की पीड़ा, आशा और संघर्ष को कथाकारों ने यथार्थ और संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया है। संपादक सुधा ओम ढींगरा ने इन कहानियों में समाज के प्रति सक्रिय दृष्टिकोण और किन्नरों के जीवन की जटिलताओं को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। यह संग्रह पाठक को अंत तक बांधे रखता है और किन्नर जीवन की हृदयस्पर्शी वास्तविकता से रूबरू कराता है। संकलन का संपादन सुपरिचित प्रवासी साहित्यकार, कथाकार सुधा ओम ढींगरा ने किया हैं।

शिवना प्रकाशन से प्रकाशित तेजेंद्र शर्मा का कहानी संग्रह "गोद उतराई" की कहानियाँ भारतीय प्रवासियों के संघर्ष, पश्चिमी समाज की जटिलताओं और मानवीय संबंधों की गहराइयों को यथार्थवादी ढंग से उजागर करती हैं। जीवन और अनुभवों - जैसे लंदन प्रवास, विमान परिचालन, कैंसर पीड़ित पत्नी का संघर्ष से प्रेरित, उनकी रचनाएँ भावनात्मक और संवेदनशील हैं। पात्रों के आंतरिक द्वंद्व, संवादों और परिवेश का सजीव चित्रण उनकी कहानियों की खासियत है। संग्रह की 7 कहानियाँ जीवन के यथार्थ, सामाजिक और पारिवारिक जटिलताओं, अकेलेपन, मानसिक संघर्ष और मानवीय संवेदनाओं को उद्घाटित करती हैं। उदाहरण के लिए, “गोद उतराई” कहानी दंपत्ति द्वारा बच्चे को गोद लेने और एजेंसी की धोखाधड़ी से उत्पन्न भावनात्मक संघर्ष को संवेदनशीलता से प्रस्तुत करती है। शिवना प्रकाशन से प्रकाशित डॉ. हंसा दीप का कहानी संग्रह "अधजले ठुड्डे" में 17 कहानियाँ हैं, जिनमें जीवन की विविध परिस्थितियों, मानसिक संघर्षों, अकेलेपन और मानवीय संवेदनाओं का सटीक चित्रण मिलता है। उदाहरण के लिए, "अधजले ठुड्डे"  कहानी में पात्र की आंतरिक उथल-पुथल, गुस्सा और मानसिक शांति की तलाश प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत की गई है। उनका कथा-संसार यथार्थवाद, काव्यात्मकता, भाषा की सुंदरता और भावनात्मक गहराई से भरा है।हंसा दीप की लेखनी समाज की जटिलताओं और मानवीय भावनाओं को बेहद सूक्ष्म और प्रभावशाली ढंग से उजागर करती है। वे अपने पात्रों को आम जीवन और परिवेश से उठाकर जीवंत बनाती हैं, जिनमें व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक द्वंद्वों की गहरी छाया दिखाई देती है। उनके पास गहरी मनोवैज्ञानिक समझ है, जो पात्रों के अंतस को स्पष्ट रूप से चित्रित करती है। 

डॉ. परिधि शर्मा के कहानी संग्रह "प्रेम के देश में" में 15 कहानियाँ शामिल हैं, जिनमें "प्रेम के देश में" रीमा के प्रेम और परिवार के बीच संघर्ष, "आर्थिक सर्वेक्षण" में सरकारी योजनाओं और समाज की विफलता, "उम्मीद" में वृद्ध दंपत्ति का अकेलापन, "तोहफा" में बच्चों की असुरक्षा और समाज की असंवेदनशीलता, तथा "वजूद" में रोजा की आत्म-पहचान और आंतरिक द्वंद्व जैसे विषय प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किए गए हैं। डॉ. परिधि शर्मा की लेखनी जीवन और समाज की जटिलताओं को सूक्ष्म और संवेदनशील ढंग से चित्रित करती है। उनका यह संग्रह नारी मन की पीड़ा, सामाजिक दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ, आंतरिक द्वंद्व, प्रेम, त्याग और मानवीय संवेदनाओं की गहराई को उजागर करता है। नीरज बुक सेंटर से प्रकाशित शेर सिंह का कहानी संग्रह "चेन्ना माया" में 17 कहानियाँ संकलित है। शेर सिंह अपनी कहानियों में जीवन के छोटे-छोटे प्रसंगों को बड़ी सहजता और सर्जनात्मक क्षमता के साथ प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्र यथार्थवादी और जीवंत हैं, जिन्हें ऐसा लगता है कि लेखक उनके साथ रहा हो। कहानियाँ पहाड़ी परिवेश, खासकर कुल्लू और उसके आसपास के ग्रामीण जीवन, सामाजिक समस्याओं, गरीबी, स्त्री पीड़ा, अंधविश्वास और शोषण की वास्तविक झलक पेश करती हैं।  डायमंड बुक्स से प्रकाशित अनिल गोयल का उपन्यास "नया सवेरा" 1975 में लगे आपातकाल की घटनाओं पर आधारित एक मर्मस्पर्शी कथा है, जो इतिहास, तथ्य और हृदयस्पर्शी नेहाख्यान के माध्यम से उस काली रात का यथार्थ उजागर करती है। इक्कीस माह तक चले आपातकाल में जेलों में बंद किए गए लाखों लोगों की पीड़ा, असंवैधानिक अत्याचार और समाज पर पड़े संकटों को यह उपन्यास जीवंत करता है।

शिवना प्रकाशन से प्रकाशित अर्चना पैन्यूली के कहानी संग्रह "पुराने घर में आखिरी दिन"  प्रवासी जीवन, स्त्री विमर्श और मानवीय संवेदनाओं को चित्रित करता है, जिसमें डेनमार्क और भारत के बीच के सांस्कृतिक अनुभवों का गहरा चित्रण है।  शिवना प्रकाशन से प्रकाशित उजाला लोहिया का उपन्यास "नींद और जाग" जुड़वाँ भाई-बहन की कथा है, जिन्हें विज्ञान और अध्यात्म दोनों विरासत में मिली है। दोनों की जीवन दृष्टि और लक्ष्य भिन्न हैं, लेकिन समय और अनुभव उनके लक्ष्यों को भी बदल देते हैं। यह उपन्यास अध्यात्म और विज्ञान के मिश्रण, आधुनिकता और परंपरा, मानसिक और भौतिक क्षमताओं की तुलना और संभावनाओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है।  नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित गुलाब कोठारी के उपन्यास "स्त्री देह से आगे" में दर्शाया है कि मां, बहन, पत्नी और पुत्री सभी रूपों में स्त्री की दिव्यता शाश्वत है; उसका रौद्र रूप भी उतना ही प्रभावशाली और विध्वंसक है। आज यह अंतर्निहित दिव्यता शिक्षा और संचार माध्यमों के आवरणों में दब गई है। लेखक ने प्राचीन वाङ्मय के उदाहरणों के आधार पर वैज्ञानिक दृष्टि से इन आवरणों को उद्भासित किया है। सर्व भाषा ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित "नंदिता अभिनव" कथाकार अशोक लव द्वारा लिखित एक चर्चित समकालीन हिंदी उपन्यास है, जो आधुनिक भारतीय समाज, राजनीति और युवाओं के बदलते मूल्यों को दर्शाता है, जिसमें नंदिता नामक मुख्य पात्र के संघर्षों और समाज के कटु यथार्थ को दिखाया गया है; यह उपन्यास वैश्विक परिदृश्यों (जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध) और देश की सामयिक समस्याओं को छूता है और सशक्तिकरण व सामाजिक बदलाव की बात करता है। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित अश्विनीकुमार दुबे के कहानी संग्रह "सफल प्रेम विवाह की असफल दाम्पत्य कथाएँ" की कहानियाँ भावनाओं, परिस्थितियों और संबंधों की जटिलताओं को सामने रखती हैं, जहाँ हर उत्तर के साथ कई नए प्रश्न जन्म लेते हैं। भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों, परंपराओं और अपेक्षाओं का बंधन माना जाता है। इसी कारण जब कोई विवाह असफल होता है, तो उसे सामाजिक विफलता के रूप में देखा जाता है, न कि मानवीय अनुभव के रूप में।  कहानी संग्रह स्त्री-विमर्श के क्षेत्र में भी एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप करता है। यह पुरुषसत्ता को बहुत पीछे छोड़ते हुए कथित नारीवादी आग्रहों से आगे बढ़ता है और ‘पॉप फ़ेमिनिज़्म’ पर गंभीर विमर्श के द्वार खोलता है। यहाँ स्त्री केवल विमर्श का विषय नहीं, बल्कि सामाजिक संरचनाओं को प्रश्नांकित करने वाली चेतन सत्ता के रूप में उपस्थित है। आईसेक्ट पब्लिकेशन से प्रकाशित धर्मपाल महेंद्र जैन का उपन्यास "इमिग्रेंट" समकालीन प्रवासी जीवन की कठोर सच्चाइयों का सशक्त दस्तावेज़ है। यह कृति शिक्षा के बाज़ारीकरण, आप्रवासन नीति, नस्लीय भेदभाव और कॉर्पोरेट शोषण के गठजोड़ को उजागर करती है। नायक अमित के संघर्ष के माध्यम से लेखक तथाकथित “कनाडियन ड्रीम” के पीछे छिपे यथार्थ को सामने लाता है। सरल, तथ्यपरक भाषा और स्पष्ट वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ यह उपन्यास मनोरंजन से अधिक सामाजिक चेतना जगाने का कार्य करता है। प्रवासी साहित्य में "इमिग्रेंट" एक प्रासंगिक और विचारोत्तेजक हस्तक्षेप है।

संजीव की कहानी "यह दुनिया अब भी सुन्दर है" एक मार्मिक कहानी है जो कोरोना काल की भयावहता के बीच इंसानियत और प्रेम की मिसाल पेश करती है। पुलिसकर्मी श्रीनिवासन अपनी बीमार पत्नी कन्नीमनी के साथ साइकिल यात्रा पर निकलता है, कठिनाइयों का सामना करता है, पर आपसी प्रेम, त्याग और उम्मीद के सहारे मंजिल तक पहुँचता है। कथा विषम परिस्थितियों में मानवीय रिश्तों की गहराई और जीवन की सुंदरता को उजागर करती है। पंकज सुबीर की कहानी "समय‑नदी के उस पार" उस "समय की नदी" के प्रतीक के माध्यम से बुज़ुर्गों, यादों, पारिवारिक टूटन जैसी संवेदनशील विषयों को सामने लाती है। कहानी एक बेटे की नज़र से अपने बूढ़े पिता की असहज वापसी, परिवार में दूरी, बदलती पीढ़ी व परिवेश, स्मृति और भूल के बीच अंतर जैसी बातों को बयां करती है। पंकज सुबीर की कहानी "प्रेम क्या होता है?"  प्रेम को केवल रोमांटिक रूप में नहीं, बल्कि मानवीय जुड़ाव, देखभाल और संवेदना के रूप में प्रस्तुत करती है। पंकज सुबीर की कहानी "रपटना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन …" जो कि वनमाली कथा पत्रिका के नवम्बर - दिसम्बर 2025 अंक में प्रकाशित हुई है, में पूरे सरकारी तंत्र की पोल व्यंग्यात्मक तरीके से खोली है। हंस में प्रकाशित मनीष वैद्य की कहानी "रक्तबीज" मनुष्य के भीतर छुपी हिंसा, क्रूरता और प्रतिशोध की प्रवृत्तियों को संवेदनशील और सजीव तरीके से उजागर करती है। पुराणिक प्रतीक बकासुर के माध्यम से यह दिखाती है कि ये भावनाएँ हमारे भीतर स्वाभाविक रूप से जन्म लेती हैं। कहानी का वर्णन इतना प्रभावशाली है कि यह पाठक के मन में लंबे समय तक गूंजती रहती है और बार-बार पढ़ने की इच्छा जगाती है। "काजली" कहानी जो कि वनमाली कथा पत्रिका के नवम्बर - दिसम्बर 2025 अंक में प्रकाशित हुई है, में मनीष वैद्य ने अनवेकर बाबू के पात्र के माध्यम से कार्यालय की पूरी दुनिया को पाठक के सामने खोल दिया है। इस पात्र के दृष्टिकोण और अनुभवों के जरिए लेखक ने कार्यालय के भीतर छिपी जटिल मानवीय स्थितियों, संघर्ष, तनाव, लालच और कमजोरियों का सजीव चित्रण किया है। अनवेकर बाबू जैसे पात्र हमें दिखाते हैं कि कार्यालय केवल कागज़ों और नियमों का ढांचा नहीं है, बल्कि यह मानव मन की विभिन्न प्रवृत्तियों - ईर्ष्या, लालच, अहंकार, भय और प्रतिशोध  का एक अदृश्य खेल भी है।  मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी "हरा समन्दर गोपी चन्दर" जो कि वनमाली कथा पत्रिका के नवम्बर - दिसम्बर 2025 अंक में प्रकाशित हुई है, नायक के भीतर भावनात्मक और रचनात्मक बदलाव को दर्शाती है। मारिया से हुई मुलाकात ने लार्स के अंदर के खालीपन को भर दिया और उसे अपने उपन्यास को पूरा करने की संभावना दिखाई। यह पाठक को मानवीय अनुभव, संवेदनाएँ और सृजनात्मक प्रेरणा के सूक्ष्म पहलुओं से अवगत कराता है। पल्लवी विनोद की कहानी "ब्रह्मकमल" जो कि वनमाली कथा पत्रिका के नवम्बर - दिसम्बर 2025 अंक में प्रकाशित हुई है, स्त्री को केवल पदार्थ समझने और स्त्री को स्त्री के रूप में समझने के बीच के अंतर को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से उजागर करती है। यह कहानी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से स्त्री के अस्तित्व, उसकी भावनाओं, उसकी पहचान और उसके अधिकारों को सामने लाती है।

 - दीपक गिरकर

समीक्षक

28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,

इंदौर- 452016

मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com 

मोबाइल : 9425067036

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post