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जामताड़ा अब इतिहास: साइबर ठगी का नया अड्डा आपके आसपास- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)


 

जामताड़ा अब इतिहास: साइबर ठगी का नया अड्डा आपके आसपास

[साइबर अपराध का विकेंद्रीकरण: शहरों से गांव तक]

[डिजिटल इंडिया और साइबर अपराध: ग्रामीण क्षेत्र में फैलता संकट]

          साइबर अपराध अब किसी शहर या जिले तक सीमित नहीं रहा। कभी झारखंड का जामताड़ा साइबर ठगी का पर्याय बन चुका था। वहां से निकलने वाली फिशिंग कॉल्स, फर्जी निवेश योजनाओं और बैंक डिटेल्स चुराने के मामलों की खबरें पूरे देश में चर्चा का विषय बनती थीं। लेकिन आज यह खतरा केवल बड़े शहरों या साइबर हब तक सीमित नहीं रहा। ग्रामीण भारत में भी इसका दायरा तेजी से बढ़ गया है। हाल ही में मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के छोटे से घटवा गांव से दो युवकों की गिरफ्तारी ने यह सच फिर साबित कर दिया कि साइबर ठगी अब शहरों और बड़े कस्बों तक सीमित नहीं है। दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए ये युवक कथित रूप से बड़े साइबर फ्रॉड नेटवर्क का हिस्सा थे। यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर चिंता का विषय है, बल्कि पूरे देश में साइबर अपराध के विकेंद्रीकरण का भी संकेत देती है।

जामताड़ा, जो कभी साइबर फ्रॉड का हब माना जाता था, अब पांचवें स्थान पर खिसक चुका है। पहले यहां युवा लोगों को लुभाकर बैंक डिटेल्स मांगते, फर्जी निवेश योजनाओं या लॉटरी जीत का झांसा देकर ठगते थे। लेकिन अब यह प्रवृत्ति बदल गई है। उत्तरी भारत के छोटे कस्बे और जिले, जैसे हरियाणा का मेवात, राजस्थान के भारतपुर और मथुरा, बिहार के गोपालगंज, झारखंड के देवघर और धनबाद, अब साइबर ठगी के नए हब बन गए हैं। यहां तक कि आईटी और कॉरपोरेट हब गुरुग्राम में भी यह अपराध तेजी से फैल रहा है।

ये नए हब जामताड़ा मॉडल की तरह काम करते हैं। युवा समूह बनाकर, फर्जी ऐप्स, व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को लुभाते हैं। कई बार वे गरीबी और बेरोजगारी का फायदा उठाकर युवाओं को ठगी के नेटवर्क में शामिल कर लेते हैं। देवघर जिले में फर्जी कॉल सेंटर्स की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है और यह जामताड़ा को पीछे छोड़ चुका है। अब ग्रामीण क्षेत्र भी इस जाल में फंस रहे हैं, जहां कई लोग अपने स्मार्टफोन और इंटरनेट का उपयोग करके आसानी से अपराध में शामिल हो जाते हैं।

ग्रामीण भारत में साइबर ठगी का चेहरा अब पूरी तरह बदल चुका है। मप्र के बड़वानी जिले के घटवा गांव की हालिया घटना ग्रामीण भारत में साइबर ठगी के बदलते चेहरे का ताजा उदाहरण है। यह गांव ठीकरी तहसील में स्थित है, जो सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में आता है। यहां के दो युवकों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया, जो कथित रूप से साइबर फ्रॉड नेटवर्क में शामिल थे। इनके अपराध केवल स्थानीय नहीं थे; इनके झांसे में आए पीड़ितों का प्रभाव दिल्ली और अन्य बड़े शहरों तक फैला था। मध्यप्रदेश में 2021 से 2025 तक साइबर ठगी के मामलों का आंकड़ा 1,000 करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है, जबकि रिकवरी रेट केवल 0.2% है। बड़वानी जिले में हाल ही में 82,000 रुपये की ठगी का मामला सामने आया था, जिसमें ठग ने खुद को क्राइम ब्रांच अधिकारी बताकर पीड़ित को डराया।

साइबर ठगी अब शहरों से बाहर निकलकर गांवों में भी फैल चुकी है। ग्रामीण युवा स्मार्टफोन और इंटरनेट के जरिए इसमें आसानी से शामिल हो रहे हैं, लेकिन कानूनी जागरूकता की कमी उन्हें गंभीर जोखिम में डाल रही है। दिल्ली पुलिस की कार्रवाई में यह भी सामने आया कि कई नेटवर्क विदेशों तक फैले हुए हैं, जैसे म्यांमार, जहां युवाओं को फ्रॉड नेटवर्क में ट्रैफिक किया जा रहा है। डिजिटल इंडिया की सफलता ने इंटरनेट को हर कोने तक पहुंचा दिया, लेकिन साइबर सुरक्षा शिक्षा पीछे रह गई। ई-कॉमर्स, डिजिटल वॉलेट्स और क्रिप्टो जैसी नई तकनीक ने ठगों को नए अवसर दिए। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में साइबर क्राइम में 31.2% की वृद्धि हुई। बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में 17,000 से अधिक मामले दर्ज हुए, लेकिन छोटे कस्बे जैसे भरतपुर और नूह अब शीर्ष स्थान पर हैं। 

साइबर ठगी के प्रभाव अब केवल आर्थिक नुकसान तक सीमित नहीं रहे। लाखों लोग अपनी मेहनत की कमाई खो रहे हैं, उनके सपने, भविष्य और आर्थिक सुरक्षा खतरे में हैं। नए स्कैम्स, जैसे ‘डिजिटल अरेस्ट’, अब लोगों को घर पर ‘अरेस्ट’ दिखाकर डराने की तकनीक इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे मानसिक तनाव और सामाजिक कलंक बढ़ रहा है। यह केवल व्यक्तिगत पीड़ा नहीं है, बल्कि समाज और देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना पर भी गंभीर असर डाल रहा है।

समाधान की दिशा में पुलिस सक्रिय हो रही है। दिल्ली पुलिस ने हाल ही में 800 से अधिक संदिग्धों को गिरफ्तार किया और कई फर्जी कॉल सेंटर्स को बंद किया। लेकिन यह केवल शुरुआत है। ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में जागरूकता की बेहद आवश्यकता है। सरकार को साइबर सुरक्षा शिक्षा और प्रशिक्षण को व्यापक स्तर पर लागू करना होगा, कड़े कानून बनाने होंगे, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना होगा ताकि अपराधियों की जड़ें कमजोर हों। सकारात्मक पहल के रूप में, इंश्योरेंस कंपनियां अब साइबर फ्रॉड कवर देने लगी हैं, जो पीड़ितों के लिए राहत और सुरक्षा का जरिया बन सकता है।

मप्र के बड़वानी जिले के घटवा गांव की घटना एक गंभीर चेतावनी है, साइबर ठगी अब जामताड़ा की मोनोपॉली नहीं रही। यह पूरे देश में फैल चुकी है, और अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह एक महामारी का रूप ले सकती है। इस जाल से बाहर निकलने का केवल एक ही रास्ता है — व्यापक जागरूकता, साइबर शिक्षा और वैकल्पिक रोजगार के अवसर प्रदान करना। डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रहना अब हर नागरिक की जिम्मेदारी बन गई है। जामताड़ा अब इतिहास बन चुका है, और साइबर ठगी का नया ठिकाना अब आपका अपना गांव है। यदि हम अभी नहीं चेते, तो बहुत देर हो जाएगी, और कीमत हमारी सुरक्षा और भविष्य को चुकानी पड़ेगी।

  -  प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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