काव्य :
ग़ज़ल
रहबर बनकर आते क्यूँ हो
रस्ते से भटकाते क्यूँ हो
उम्मत के हो रखवाले जब
ज़ालिम से घबराते क्यूँ हो
रत्तीभर भी जीत न मुमकिन
झूठ कसम फिरखाते क्यूँ हो
बात नहीं है जब कोई भी
धीमे से मुस्काते क्यूँ हो
ख़ौफ़ नहीं है दुनिया का जब
रात गये फिर आते क्यूँ हो
- हमीद कानपुरी,कानपुर
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काव्य
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