मन के हारे हार, मन के जीते जीत
मनुष्य के जीवन में विजय और पराजय का वास्तविक आधार उसका मन है। परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी प्रतिकूल हों, यदि मनोबल अटूट रहे तो मार्ग अपने आप प्रशस्त होता जाता है। यही कारण है कि लोकसूक्ति “मन के हारे हार, मन के जीते जीत” जीवन का गहनतम सत्य मानी जाती है।
पूर्ण दोहा इस प्रकार है—
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
साँची कहूँ तो मानिए, यह बाती है प्रवीत॥”
एक अन्य लोकप्रिय रूप में यह दोहा इस प्रकार भी कहा जाता है—
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
कहा कबीर सुनो भइया, मन ही की परतीत॥”
इसका निचोड़ यही है कि बाहरी संघर्ष तभी जीते जाते हैं जब भीतर का मन दृढ़ और अडिग हो।
महाकवि मैथिलीशरण गुप्त इस मनोबल की महिमा को रेखांकित करते हैं—
“जिस में विश्वास नहीं उसको,
इस जग में राहत किसको?”
महादेवी वर्मा मन की दिशा के महत्व पर प्रकाश डालती हैं—
“मन यदि अँधियारा होगा,
पथ में प्रकाश कहाँ से आए?”
इसी संदर्भ में यह प्रेरक पंक्ति मन की जिजीविषा को कुछ इस तरह उकेरती है—
“निराशा मन में मत पालो,
मन स्वयं राह खोज लेता है।”
संपूर्ण संस्कृत वाङ्मय भी मन की शक्ति का असाधारण ढंग से महिमा मंडन करता है—
“उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।”
अर्थात कार्य केवल इच्छाओं से नहीं, प्रयास और मनोबल से सिद्ध होते हैं।
एक अन्य श्लोक मन की दृढ़ता का महत्व दर्शाता है—
“मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।”
अर्थ—मनुष्य की बंधन और मुक्ति, दोनों का कारण मन ही है।
इसी तरह अंग्रेज़ी विचार भी इसी सिद्धांत को पुनः प्रतिध्वनित करते हैं—
*“Your mind is your first battlefield; win there, and victory follows everywhere.”*
*“Success begins the moment you believe you deserve it.”*
हेनरी फ़ोर्ड के प्रसिद्ध शब्द प्रेरणा देते हैं—
*“Whether you think you can or you think you can’t — you are right.”*
इतिहास में महान उपलब्धियाँ कभी मात्र संसाधनों के बल पर नहीं मिलीं; वे उन मनों ने अर्जित कीं जो पराजय को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं थे। मन की दृढ़ता ही हर चुनौती को अवसर में बदल देती है।
अतः सार यह कि मन को सकारात्मक, साहसी और संकल्पवान रखना ही जीवन-विजय का मूल रहस्य है। जो अपने मन को जीत लेता है, वह संसार की हर चुनौती पर विजय पा लेता है—यही इस सूक्ति का शाश्वत संदेश है।
- डॉ. अनिता जैन ’विपुला’ , उदयपुर, राजस्थान
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