काव्य :
देखो क्या तस्वीर बनी है आज हमारे देश की
विधा-गीत(प्रदीप छन्द)
देखो क्या तस्वीर बनी है,आज हमारे देश की।
उछल रहे हैं नेता सारे जकड़े जड़ परिवेश की।
धोखा देकर धन संग्रह कर,करते भोग विलास हैं। चार-चार पेंशन हैं लेते,बनते जन के खास हैं।
करते हैं ये केवल जय जय,अपने सुख परमेश की। देखो क्या तस्वीर बनी है आज हमारे देश की।
दंभ द्वेष पाखंड झूठ छल,इनके प्रिय हथियार हैं।
इनके बल पर राजनीति का,करते ये व्यापार हैं।
संसद में ये ऐसे लड़ते,जैसे बिगड़े छात्र हों।
स्वार्थ साधते केवल अपना,जैसे छँटे कुपात्र हों।
इनको कब रहती है चिंता,नित मरते दरवेश की।
देखो क्या तस्वीर बनी है,आज हमारे देश की। डिग्रीधारक न्याय मांगते,रहते आधा पेट हैं।
पांच किलो राशन की लाइन,में लगते ग्रेजुएट हैं। अनपढ़ नेता मौज काटते,छल से जाते जीत हैं।
केवल सत्ता हथियाने के,हरदम गाते गीत हैं।
सत्ता पाते ही छलियों को,भाती रात विदेश की।
देखो क्या तस्वीर बनी है,आज हमारे देश की।
हिन्दू मुस्लिम कार्ड खेलकर,ये नफरत को बो रहे।
अंध भक्ति में मार काट कर,निर्धन जन सब रो रहे। कौन उठाए प्रश्न प्रश्न पर,होता बड़ा बवाल है।
प्रश्न उठाता जो भी उस पर होता खड़ा सवाल है।
है अदावत शिक्षामित्र से,योगीराज विशेष की।
देखो क्या तस्वीर बनी है,आज हमारे देश की।
- रजनीश मिश्र 'दीपक' खुटार शाहजहांपुर उप्र
.jpg)
