काव्य :
दिसम्बर
साल का आखिरी महीना
दिसम्बर फिर आ गया
पुरानी यादों को दोहरा गया
पिछले बरस तुम थे, मैं थी
बहुत ठंढ थी
कंपकपाते अपने हाथों
तुम्हारे हाथों में सौंप कर
मैंने की थी गर्माहट महसूस
रात रानी हमारे कोट पर
शबनम की बूंदो को टपका कर भिगों रही थी
मैं बार-बार उसे झाड़ रही थी
तब तुमने कहा था ------"मत झाड़ो इन्हें।
मेरा प्यार भींग रहा है। कभी सूखेगा नहीं "
तब कहाँ पता था
इस दिसम्बर में तुम नहीं होंगे
बस यादें ही यादें रह जायेगी
रास्ते वही है, अकेली घूमती हूँ
सप्तपर्णी की सुगंध में बावली हुई।
- डॉ मंजू लता , नोयेडा
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