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प्रयागराज और तीर्थराज के नाम के पीछे छिपा रहस्य - उषा सक्सेना भोपाल,


 

प्रयागराज और तीर्थराज के नाम के पीछे छिपा रहस्य

 - उषा सक्सेना

वरिष्ठ साहित्यकार 

भोपाल (मध्य-प्रदेश)

          कोई भीव्यक्ति हो या स्थान किसी का वह नाम अपने आप में निहित उसके सार तत्व रुपी गुण को छिपाये रहता है ।आईये आज हम प्रयाग के इस अर्थ को समझें । प्र+याग =प्र का अर्थ है प्रथम या विशेष रूप से ,याग का अर्थ है यज्ञ इसका दूसरा अर्थ उत्सर्ग या बलिदान से भी है । यज्ञ के अंत जब यज्ञकर्ता के द्वारा अंत में जो समापन के समय भेंट में समर्पित किया जाता है वही बलिदान है जिसे याग कहते हैं ।

पौराणिक कथा:-

   इसके विषय में कहा जाता है कि सृष्टि की रचना और उसके विस्तार के लिये ब्रह्मा जी ने अपने सभी मानस पुत्रों एवं देवताओं तथा ऋषि मुनियों का एक सम्मेलन बुलाया । उस सम्मेलन में सभी ने अपनी अपनी सोच और चिंतन के अनुसार विचार रखे। यह सृष्टि में उस समय का प्रथम ज्ञान यज्ञ था।इसी में सभी के वैचारिक मानस मंथन के पश्चात स्वयं ज्ञान की देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ।

सभी के सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी की पुत्री के रूप में ही उन्हे सभी ने स्वीकार किया । उनके रूप सौंदर्य और ज्ञान को देख कर ब्रह्मा जी स्वयं उन पर विमोहित होगये और उन्हें केवल अपने ही आधिपत्य में लेना चाहा । यही उनका मोह था जिसे उनके मन ने स्वत: उसे केवल अकेले ही भोगना चाहा । जब कि वह ज्ञान सभी के वैचारिक मानस मंथन की उत्पत्ति थी ।यहीं से व्यष्टिवाद और समष्टिवाद की उत्पति हुई । जो सबका है उस पर किसी एक अकेले का कभी भी आधिपत्य कैसे हो सकता है ।सरस्वती ने अपने सृजन कर्ता पिता के रूप में उनकी प्रदक्षिणा करते हुये उनकी वंदना की ।

अब वह जिस ओर जाती ब्रह्मा 

जी उसी ओर लालायित दृष्टि से  उन्हें निहारने लगते। इस तरह चतुर्मुखी ब्रह्मा के चार वेद रूपी मुख उनके चारों दिशाओं में उन्हें देखने से प्रकट होगये । यह देख कर की अभी भी मेरा सृजन कर्ता मुझसे विमुख नही हुआ वह आकाश की ओर शब्द बन कर उसमें लीन होगई  । ब्रह्मा जी आखेटक बनकर उनके पीछे भागे इस भागने के लिये उनके पांचवे मुख का सृजन हुआ जो भोग की लिप्सा में लिप्त काम प्रवृत्ति को जाग‌त करने वाला था । 

  यह देखकर उनके सभी मानस पुत्रों ने अपने पिता ब्रह्मा जी की भर्त्सना की । निंदा करते हुये वह

सभी त्राहि-त्राहि करने लगे ।

यह देखकर भी उनका लालसा  लोलुप मन शांत नही हुआ और सरस्वती को पाने के लिये आकाश की ओर उछले ।अब सरस्वती जो की ज्ञान की देवी थी किसी एक के प्रभुत्व में कैसे रहती । इसलिये वह नदी बन कर प्रवाहित हुई । ब्रह्मा जी नद बन कर उनके पीछे दौड़े तो वह अपनी प्रवाहित धारा की दिशा बदल कर सरस्वती विलुप्त होकर अंत: स्त्रावी होगई । यह देख देवर्षि नारद ने कटु शब्दों में अपने पिता की भर्त्सना की ।

      सभी के मना करने पर भी जब वह नही माने तो शिवजी ने क्रोध में भर कर अपने त्रिशूल से उनके उस पांचवे वेद रूपी सिर का उसको काटकर शिरोच्छेदन कर दिया ।ग्लानि वश ब्रह्मा जी ने अपने उस शरीर का त्याग कर दिया किंतु मन में सरस्वती को अपने ही आधीन करने की लालसा के कारण अगले जन्म में उनकी अंतिम इच्छा की पूर्ति के लिये सरस्वती ने स्त्री रूप धारण कर उनकी पत्नी बनना स्वीकार किया । इस प्रकार से सरस्वती जी उनकी पुत्री पहले और बाद में सृजन कर्ता के रूप 

में उनका आधिपत्य स्वीकार कर पत्नी बनी । 

         उस यज्ञ में याग के रूप में ब्रह्माजी का प्रथम यज्ञ के साथ  ही बलिदान होने के कारण उस स्थान को *प्रयागराज* कहा गया ।

*तीर्थराज* :-

           अब पुन: यक्ष प्रश्न अपना जवाब मांगता तीर्थ-राज का है । 

यदि हम संधि विच्छेद करें तो -  

ती+अर्थ =तीर्थ ,ती का अर्थ यहां पर तीर तट या किनारा से है और अर्थ का सार तत्व  मतलब से  ।इस प्रकार से इसका अर्थ है वह  पवित्र स्थान जहां व्यक्ति को मुक्ति मिले ।ब्रह्मा जी को सर्वप्रथम यहां पर ज्ञान यज्ञ के द्वारा जो बोध हुआ उसके पश्चात ही उस भोगवाद से मुक्ति मिली । इसलिये इस स्थान को तीर्थराज कहा गया। यह ऋषि मुनियों के ज्ञान यज्ञ की तपस्थली है जहां ज्ञान की कोई सीमा नही ।आप अपने ज्ञान को केवल अपने तक सीमित रख व्यष्टि वादी न बनें जो है वह हमने इस समाज से ही अर्जित किया है अत:उस पर समान रूप से सभी का अधिकार है ।अब यह तो पात्र की पात्रता पर निर्भर है कि उस ज्ञान सागर में गोता लगाकर कौन कितने मोती चुनता है । गंगा यमुना के बीच ही तो गुप्त सरस्वती मानस मंथन से  प्रचण्ड रूप में प्रवाहित हुई यह स्थान उस गुप्त रहस्य को प्रकट करता है । 

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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