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पाप और पुण्य: - उषा सक्सेना-भोपाल


 

पाप और पुण्य:

    पुण्यः पुण्येन कर्मणा भवति,पापःपापेन

      अर्थः-पूर्व जन्म के कर्मों केआधार पर ही मनुष्य पुण्यमय अर्थात् अच्छे कर्म करने वाल जीवन पाता है ।वह उत्तरोतर पुण्यवान सत्कर्मी बनकर इस संसार में यश को पाता है ।दूसरी ओर पाप कर्मों का फल भी पाप कै गर्त में गिराता हुआ अंत में पतन की ओर ले जाकर अपयश को ही देता है । ऐसा व्यक्ति निरंतर पाप कर्म करता हुआ अपने जीवन को ही कलंकित कर लेता है ।वह उससे उबर ही नहीं पाता। क्यों कि उसके पाप के बोझ की गठरी इतनी भारी हो जाती है कि वह उसके बोझ तले ही दब कर रह जाता है ।

उसके पापकर्मों के कारण उसे जो अपयश मिलता है इस कारण सभी उससे घृणा करने लगते हैं। अपने परिवार और समाज के लिये वह एक कलंक बनकर सभी को कलुषित कर देता है। एक सड़ी मछली की सड़ांध सारे तालाब के पानी को दूषित कर देती है । ऐसा ही पाप कर्म करने वाला व्यक्ति अपने आस पास के सम्पूर्ण वातावरण को दूषित कर देता है ।

 इसके ठीक विपरीत एक पुण्य कर्मी व्यक्ति का उदात्त चरित्र सभी के लिये एक उदाहरण बनकर उसके आस पास के वातावरण को भी सुवासित कर देता है ।जिसकी सुगंध दू-दूर तक उसके यश को विकीर्ण करती उस व्यक्ति के प्रति सभी के मन में एक आदर और सम्मान का भाव उत्पन्न करती है । यह तो मनुष्य के अपने हाथ में है कि वह कैसा और क्या बनना चाहता है । उसके चिंतन की दिशा  उसके सोच -विचार को अपने प्रभाव से प्रभावित कर उसे वैसा बना सकती है ।

मानव जीवन में ही व्यक्ति अपने कर्म के आधार पर अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है ।  अब यहतो उसके अपने स्वयं के ऊपर निर।भर करता है कि वह परिस्थितियों का दास न बन कर स्वयं अपने अनुकूल  परिस्थितियों का निर्माण करे ।

महान् संत तुलसीदास जी के शब्दों में:-

"सकल पदारथ करतल माहीं 

  कर्म हीन नर पावत नाहीं।"


  - उषा सक्सेना-भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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