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काव्य : विडंबना - डा.नीलम ,अजमेर


काव्य : 

विडंबना


ओढ़ाकर सितारों का आँचल

चाँद की टिकुली

सजा गया

न था लकीरों की

किस्मत में

मगर भरकर सिंदूर

मांग में अपना

बना गया।


न जाने खुदा ने

ये क्या खेल रचाया

मिलाया जिसे सदियों

सिर्फ उसका नाम

संग रचाया

हर बार मिलाया

मगर चंद कदमों का

साथ था

सात कदम तो किसी

और को चलाया।


सदियों प्रेम के किस्सों 

में गवाई गई हूँ

मगर प्रियतम से कभी

न मिलायी गई हूँ

सीता-सी परित्यक्ता

कभी

कभी राधा-सी 

प्रतिक्षारत

मीरा-सी आराध्या बन

हर बार हलाहल

पीने वाली

हीर-लैला-सी सिसकियों

में डूबी रही हूँ।


हाँ हर बार कोई

अनजाना,अपरिचित

माँग मेरी भर गया

सात जन्मों का रिश्ता

मगर कभी न रहा

निभाती रही हर रिश्ता

अपना मानकर

मगर हर बार रिश्ता

पराया ही रहा

माँ-बाबा के घर 

पराई बेटी बन पली-बड़ी

ससुराल में भी

पराये घर की ही रही

कभी वजूद अपना

न मिला

बस पराये हाथ का

सिंदूर ही मिला।


  -   डा.नीलम ,अजमेर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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