काव्य :
दोस्त
दोस्त हो यदि,तो,जमीन पर आ जाओ
पैसे और ओहदे का,गुमान न दिखाओ
महल दुमहला,कार,बैंक बैलेंस भूल जाओ
साथ हंसो,रोओ,चेहरों पे मुस्कान ले के आओ
पकवान,पिज्जे,स्वीट्स,महंगे ड्रिंक्स भूल जाओ
चाय,रोटी,सादी सब्जी भी मजे देंगी,दोस्ती तो निभाओ
चेहरे की हंसी के पीछे के,दर्द को तो समझो
बिन मांगे,मदद भरा हाथ तो बढ़ाओ
बड़ों से संबंध,पैसे,नेता,न साथ कभी देंगे
मुसीबत में दोस्त,पुराने दोस्तों को तुम बुलाओ
घमंड ,अकड़ छोड़ो, जुडो मन की जमीं से दोस्तों
*ब्रज*,जीवन है सिखाता दोस्त *कृष्ण सुदामा* बन जाओ
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल
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