काव्य :
श्री गणेश गजानन स्वामी
सिद्धी विनायक देवा
प्रथम पूज्य गणपति
करते हम तेरी सेवा
रिद्धि सिद्धि के धारी तुम
दुख हरता हो नाथ
चार भुजा तुम एकदंत
करते मूषक सवारी
आज्ञापालन कर माता की
दिया न प्रवेश पिता
रूष्ट शिवजी ने मस्तक काटा
माँ गौरा ने जिद करके फिर
जीवन दान दिलाया
मोदक लड्डू प्रिय है तुमको
हम सब भोग चढ़ाते
शुभ कार्य मे सबसे पहले
आपको ही बुलाते
बुद्धि दाता, भाग्य विधाता
करते शत शत वन्दन
अखूरत अलपत अमित अनन्त
नाम कई धरे
गज वक गज वक्त्र गणाध्यक्ष गौरी सुत प्यारे
महेश्वर मंगलमूर्ति मूषक वाहन
हम किस नाम पुकारे
सिद्धि दाता सिद्धिविनायक सुरेश्वर
सद्बुद्धि के दाता
नाथ कैसे करू मैं सेवा
मुझे समझ नही आता
प्रलय हो रहा इस धरती पर
तुम ही हो रखवाले
लम्ब कर्ण लम्बोदर स्वामी
क्या क्या करूं बखान
आन विराजो घर घर मे
पीर हरो सब जन की
तुम पीर हरो सब जन की
- चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर
मंदसौर मध्यप्रदेश