काव्य :
यदि मन में है शांति हमारे'
अंतर का गृह युद्ध हमेशा,मन से ही तो होता है।
यदि मन में है शांति हमारे, बीज खुशी का बोता है।
छोटी छोटी बातों पर ही, हम आपा खो देते हैं।
अपनी सहन शक्ति को तजकर, हम झट से रो देते हैं।
एक बात की बीस सुना, हम पर शोले भड़काते हैं।
इक छोटी चिन्गारी से हम, खुशियाँ सार जलाते हैं।
इसके बदले यदि हम सोचें, मौन श्रेष्ठ हल होता है।
यदि मन में है शांति हमारे, बीज खुशी का बोता है।.
मन से ही हम प्रेम बांट कर, अपने मित्र बढ़ाते हैं।
मन से ही हम कटुक वचन कह, उनको शत्रु बनाते हैं।
मन से ही हम अपने भीतर, सुख दुख मूल जगाते हैं।
मन से ही सब अपनों को हम, दर्द खुशी पहुँचाते हैं।
मन जब चाहे जन हँसता है, मन जब चाहे रोता है।
यदि मन में है शांति हमारे, बीज खुशी का बोता है।
सारा सुख दुख इस दुनिया में, हम मन से उपजाते हैं।
रम्य गृह परिवार के रहते, हम रोते चिल्लाते हैं।
स्वस्थ चारु मानव तन पाकर, भी ना हम मुस्काते हैं।
केवल दोष देख औरों के, उन पर रोष जताते हैं।
ऐसा करने से उनके सँग, हर्ष हमारा खोता है।
यदि मन में है शांति हमारे, बीज खुशी का बोता है।
- रजनीश मिश्र 'दीपक' खुटार शाहजहांपुर उप्र