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सोशल मीडिया के फूहड़ पत्रकार का बेशर्म तर्क ! - आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार ,नर्मदापुरम


 सोशल मीडिया के फूहड़ पत्रकार का बेशर्म तर्क !

-   आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार


       जहां सबेरा है, वही बसेरा है ओर बसनेवाले कई किस्म के है। आजकल यू-ट्यूबर- व्हाट्सअप, इस्ट्राग्राम कुटुंबएप, फ़ेसबूक आदि पर विशेष प्रकार की वाहियात अक़्लमंद ज्ञानी बेशर्मियों की कब्जेवाली मीडिया खरपतवार गाजरघाँस की तरह फ़ेल चुकी है, इससे बचने के सारे उपाय असफल है। जिसने कभी कागज कलम छुआ नहीं वही गूगल गुरु की प्रेरणा से गीतकार, साहित्यकार ओर पत्रकार बन गया है ओर खुद को किसी बड़े उस्ताद से कम नहीं आँककर बिंदास खबरे लिखते समय सामने वाले को गधा समझता है, इन नामुराद लंगड़ी-लूली,अंधी-बहरी कार्टूननुमा अवसरवादी मीडिया ने पूरे भारत को अपनी चपेट में ले लिया है, अगर आपका शहर, गाँव उसकी चपेट में नहीं आया है तो आप किस्मतवाले है? पर आपकी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा की आप किस्मतवाले है, क्योकि यह बीमारी कोरोना से ज्यादा घातक है, अगर आपने सोसल डिस्टेन्स कायम रखने के लिए मोबाइल ओर एलेक्ट्रानिक उपकरणों से दूरी बनायी है तो बात अटपटी होने से किसी के गले नहीं उतरेगी क्योकि हर गरीब भिखारी से लेकर अमीर आदमी मोबाइल का दीवाना है ओर आज हर घर में 2 साल की उम्र के बच्चे से लेकर मृत्युशैया पर लेटा 100 साल का बूढ़ा व्यकित भी मोबाइल की स्क्रीन में चौबीसों घंटे मुंह गढ़ाए बैठा है। इसी से यह बात प्रमाणित हो चुकी है की करोड़ों मोबाइल में दस प्रतिशत लोग अक्लमंदी के शिकार है ओर उनके दिमाग में भरा कचरा किसी सनसनीखेज समाचार, रपट या ज्ञानवर्धक लेख से कम नहीं इसलिए वह मीडिया बेशर्मी से समाज के सामने अपना कचराज्ञान बाँटकर अपनेआप को बुद्धिमान साबित करने की होड में लगा है। वे सभी जानते है की न तो उनके माता के कुलवंश मे ओर न ही उनके पिता के कुलवंश में किसी ने कभी कोई नाम किया है फिर भी वे अपने को चाणक्य व विधुर सा नीतिज्ञ समझ मेड इन पत्रकारों के लेबल उछालते हुये मस्त है।

       एक समय फाउंटेन पेन पत्रकारों की शान था आज सारे पेन गुमनामी के अंधेरे में खो गए है। मीडिया में बहती गंगा में हाथ धोने की प्रतिस्पर्धा लगी है तभी इस दौड़ में हरेक अवसर पाना चाहता है। अधिकांश वे लोग जो शार्ट कट से धन कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है वे अपनी सारी कड़वाहट पचाकर मीडिया ज्वाइन आर रहा है , इसलिए यह स्वार्थपरक युग उनका युग हो गया है जो हर अवसर को भुनाना चाहता है । विशेषकर मेरा शहर व तथाकथित पत्रकारों की एक बड़ी जमात तैयार हो चुकी है और इस जमात में इनकी संख्या में दिनोंटिन इजाफा हो रहा है, जो जनता का शोषण ओर प्रशासनिक अधिकारियों पर निगरानी रख सफेदपोशों के साथ गढ़बंधन कर बड़ी परेशानी का कारण बनते जा रही है। एक ओर मुख्यधारा के रूप में माने जाने वाले ईलेक्ट्रानिक चैनल है तो दूसरी ओर प्रिंट मीडिया संस्थानों में कार्य करने वाले कठपुतली कामगार पत्रकारों की सिंगल बेनरों को कंधे पर उठाए आसानी से मैनेज हो जाने वाले पत्रकार जो एकला चलो की नीति पर अकेले सुनी सड़कों पर चलते ओर भीड़ के सामने बिजली सा कड़कते ,बिस्फोट सा फूटते ओर भैंसा सा गर्राते दिखेंगे ओर सांड को देखकर मिमियाते मिलेंगे। कट केमरा एक्शन का उपयोग करने वाले टीवी चैनलों के नए एंकर दिखने में शर्माने-लजाने वाले होंगे ओर सबको निबाहने वाले होते है जबकि थोड़ा सा पुराने हुये एंकर जानीवाकर के साथ भयंकर दिखाई देते है जो विलायती नस्ल की झबरीली कुतिया को पाकर प्रसन्न उसी में रमे रहते है ओर जब वह टाँगे पसारती है तो उस समय वे फिल्मी पंचम गीतों को बेसुरा गाते-सहलाते अपनी अंगुलिया फेरते खुश होते है ओर कुतिया भी अपने को धन्य समझती निहाल हो उठती है, कुतिया पपी को मिलने वाले इस आदर सत्कार से भले एंकर की घरवाली नाराज हो पर सुबह शाम झबरीली पपी को घुमाते समय के चर्चे आफ़िसों में होते है ओर पपी की तारीफ़ों के पुल बांधते एंकर साहब घर बैठे लिफाफा ओर गिफ्ट पाते है ओर अन्य एंकर-संवाददाताओं के गिफ़्टों का ठेका लेकर उनके लिफाफे ओर गिफ्ट भी हजम कर जाते है।

       आप सोच रहे होंगे की अब जीवनरस में क्या शेष या विशेष रह गया है जिसे व्यक्त किया जाये। अभी तक की बाते सही मायने में पत्रकार या मीडियाकर्मियों की थी जो आपको दिल को तर-तर करती सुपथ मार्ग की प्रतीत होती होंगी ओर उसमें बेशर्म जैसी कोई बात नही होगी, यदि हुई है तो उस बेशरम मीडिया की बात आनी चाहिए बात उनकी है जो अपने पैरों पर कभी भी खड़े नही हो सकते, ओर न ही चल सकते है तो फिर बिना चले तरक्की कैसे करेंगे, ऊपर उठने-बड्ने के लिए नसेनी या सीढ़िया तो चढ़नी ही होगी? कितनी भी तिकड़म लगाओं? कितनी भी कोशिश करो? कितनी भी चतुराई दिखाओं? बिना टांग उठाए ये सारी चतुराई व्यर्थ ही है ? टांग नही  उठा सकते हो तो हाथ ही उठा ले, हाथ में मुसलचंद मोबाइल को पकड़ ले, मोबाइल उठाते ही मूर्ख से भी मूर्ख मतिमंद भी चार्ज हो उठता है ओर वे ज्ञानचंद बुद्धिप्रकाश बन जाते है। इस प्रकार तमाम मूर्खचंद मीडियाकर्मी विध्यासागर हो जाते है ओर ये सभी गूगलगुरु की कृपा का प्रसाद पाकर खुदकों पत्रकार सम्पूर्णानन्द मान व्हाट्सअप, फ़ेसबूक,यू-ट्यूबर पर अपनी खबरों-सूचनाओं का महाजाल बुनकर एक बात के छह छह अर्थ बताकर उलझी बातों को सुलझाने ओर सुलझी बालों को उलझाकर अपनी मूर्खता के पट खोलते है ओर समझते है की पाठकों के दिमाग उनकी कलम के इस मूर्खज्ञान ने गिरवी रख लिए है। इन तथाकथित पत्रकारों के इस गूगलगुरु स्वरूपा भानुमती के पिटारा ज्ञान के खोफ से घबराय लोग तत्काल उनके खिलाफ आई सूचनाओं- खबरों के प्रकाशन ओर प्रसारण न किए जाने हेतु संधि कर सुख पाते है। ये सारे लोग अपने को हद दर्जे का ईमानदार बतलाकार संस्पेंश पैदा करते है इनमें सबसे बड़ा भ्रष्ट खाऊ होता है वह कमीशन तय कर मैनेज करने का काम करता है। वह इनके कम बोलने पर इन्हे बेईमानी के तराजू में तोलते समय बोली ज्यादा लगाकर इन्हे कृतकृत कर देता है ओर अपना नंबर आने पर ये ही दो कोडी के लंगू भंगु अपने को कम तोलते है, कम नापते है,कुल मिलाकर ये अपने को ईमानदार बिकाऊ न होना बताकर बाजार में खुलेआम नीलाम कर एक इंसान होने का दर्जा छोड़ मात्र एक बिकाऊ सामग्री में शामिल हो जाते है।

       प्रश्न पैदा होता है की मीडिया में प्रिंट-चेनल कमजोर क्यों हुआ ओर गूगल गुरु का कचरा ज्ञान के भस्मासुर यू-ट्यूब आदि सभी प्रकार के सोसल मिडिया की पत्रकारिता से भस्मीभूत कब होंगे?सभी जानते है आपका हो या मेरा शहर सभी को स्मार्ट शहर बनने का भूत सवार है जिसके हर गली चौराहे पर अत्याधुनिक पावरफुल केमरे लगा दिये गए है ताकि हर प्रमुख सड़क व चौराहे पर लगे कैमरों की मदद से आम आदमी की बाइक एवं कार आदि के सम्बन्ध में यातायात नियमों का उल्लंघन करने के बाबत चालान होने के मामले प्रकाश में आने पर दंडित किया जा सके। इन कैमरों से छोटे वाहन आटो / लोडर/ओवरलोड वाहनों आदि की निगरानी कर जुर्माना कर राजस्व प्राप्त किया जा सके किन्तु प्रशासन इन बातों में कालनेमि साधु बनकर मीडिया का गुरु बनना चाहता है पर मीडिया इनका बॉस बन सार्वजनिक स्थानों के प्रमुख व्यावसायिक संस्थानों के केमरे की नजर से नजराना वसूल करते या शहर के सभी थाना क्षेत्रों में अवैध कारोबार ओर अनैतिक गतिविधियां जिसमें आईपीएल सट्टा, मुंबई सहित लोकल सट्टा-जुआ, शराब ठेकों पर समय से पहले ओर बाद की खुली बिक्री या उनके अवैध कच्ची-पक्की शराबों के चलित केंटीन के घर घर शराब पहुँच सेवा के नजारे हो अथवा रेत माफिया, शराब माफिया, अवैध खनन माफिया ओर पशु तस्करों के रात्रिकालीन प्रयुक्त किये जाने वाले वाहनों, टैक्टरों- डम्फरों जेसीबी आदि की क्लिपिंग की सूचना या ब्रेकिंग की जल्द ही पर्दाफास की पट्टी चला कर आगाह कर व्हाट्सअप ग्रुप, फेसबूक, यू-ट्यूब पर खलबली मचा देते है ओर सौदेवाजी होने पर गायब हो जाते है।

              बेशरम के तरह सिर उठाय उग आने वाली इस मीडिया से अवैध नर्सिंग होम हो या मेडिकल स्टोरों की आड़ में नामी गिरामी डाक्टरों का कारोबार हो किसी से छुपा नहीं है । शहर के भीतर या बाहरी होटलों पर तथाकथित शराब के साथ हरउम्र की लड़की सप्लाई का फलता फूलता कारोबार में सफेदपोश नेताओं की हिस्सेदारी, पुलिस का कमीशन ओर इस सौदेबाजी की खबर रख वसूलीबाजों का खेल सोसल मीडिया के यू-ट्यूटर पर उछालने का भय दिखाने वाले सोसाल्मीडिया प्लेटफार्म के पत्रकारों की मंशा के मायने समझे जा सकते है। अवैध हास्पिटलों होम्स पर निगरानी, अवैध निर्माणों, अतिक्रमण, विकास कार्यों में किया भ्रष्टाचार ओर इन सबमें लिप्त समस्त विभाग ओर उनमें चल रही योजनाओं व निर्माणकार्यों व इसमें संलिप्त अधिकारियों की कुंडली रख उनसे न्योछावर लेना किसे पता नहीं है। धृतराष्ट्र की भूमिका ओर दुर्योधन की महत्वाकांक्षा जीते सोशल मीडिया- यू-ट्यूब पत्रकार उपरोक्त विषयक खबरों की खोज में कार्यरत रहते हैं। परिणाम यह होता है कि भ्रष्टाचार की पुष्टि करने वाले नजारे उनके कैमरों की जद में आ ही जाते हैं। विचारणीय पहलू यह है कि जिनको वेतन मिल रहा है वो भी अलग से कुछ पाने की चाहत हमेशा रखते हैं फिर तो बिना वेतन के अपना समय खर्च करने वाले यू-ट्यूब से तथाकथित पत्रकारों के मन में कुछ मिलने की चाहत पनपना स्वाभाविक है! किन्तु देखने को यह मिल रहा है कि उनकी मंशा पूरी न होने पर ये तंत्र की पोलखोलने में जुट जाते हैं। जिन तथाकथित पत्रकारों के कैमरे में कटु खबर है वे वसूलीबाज पत्रकार की संज्ञा पा चुके यू-ट्यूबर पर अपनी मंशा पूरी न होने पर देखते ही देखते घने काले बादलों के तरह छा जाएंगे ओर ये सोसल मीडिया पर बरसात करना शुरू करेंगे , इनके साथी इन बरसाती बादलों को अपनी अपनी कमेंट्स से उड़ाकर ले जाएँगे । यह सब दृश्य जिस विभाग का होता है उसके सारे जिम्मेदार इससे डरेंगे... तब डराने वालो की टीम की सोची समझी योजना के तहत अधिकारी जाल में फंस जाता है ओर इनकी कमेंट्स सूत्रों से पता चला है, पता लगा रहे है ,,, बात यही है पक्का कर बताते है .... इस पर काम चल रहा है के बाद बात टांय टांय फिस्स हो जाती है यानि इनका वसूली का मकसद पूरा हुआ। सोशल / डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से इन माफिया को बचा लेती है ओर जो माफिया इन्हे घास नही डालता उनकी खबरे सनसनीखेज खबर बन सेकड़ों हजारों तक पहुचाने ये सभी ग्रुपों में कापी कट पेस्ट कर ग्रुपों में चैट जारी रख घाँस न डालने वाले के मुह पर कालिख पोतते हुये उच्चाधिकारियों ओर नेताओं को समालोचना में घसीट लाएँगे। कुछ खबरनवीश अगले दिन अपने अखबार में कालिख पोतने की बात को इन पोतने वालों के तारीफ़ों का पुल बांध सातवे आसमान पर बैठा देंगे ... हल्ला मचेगा ... प्रशासन कार्यवाही करने जांच कराएगा ओर जांच जारी रहेगी ओर सोशल मीडिया का तूफानी पत्रकार को साधते ही ....उसके स्वर बदल जाएँगे की असल आग पानी में लगी थी, बाली बात ही गलत है। असल मेरी आंखों की बीमारी के रहते यह बिना अर्थ के शब्द सुनने ओर लिखने की चूक  से जवानी में लगी आग की जगह पानी में लगी आग भूल से लिखा गई जिसका मुझे खेद है ।

 - आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार

श्री जगन्नाथ धाम काली मंदिर के पास, ग्वालटोली

नर्मदापुरम मध्यप्रदेश मोबाइल 9993376616

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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